समाजवादी पार्टी में  चल रहे सत्ता संघर्ष में अखिलेश यादव फिर भारी पड़े है. संसदीय बोर्ड की बैठक में उन्होंने माफिया डान मुख़्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय के फैसले को रद्द करा दिया.akhilesh

परवेज आलम, लखनऊ से

बैठक के बाद सपा महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने इस बात की घोषणा कर दी. विलय के रद होने के साथ ही अखिलेश मंत्रीमंडल से बर्खास्त किए गए बलराम यादव की वापसी की भी घोषणा कर दी गयी. बलराम यादव को मुख़्तार की पैरवी करने की वजह से अखिलेश के गुस्से का शिकार होना पड़ा था.

 

इसके साथ ही पार्टी ने इस बात का फैसला भी किया है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रथयात्रा के जरिये पूरे प्रदेश में घूमेंगे. अखिलेश यादव की रजामंदी न होने के बावजूद मुख़्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय की घोषणा कर दी गयी थी. जिस समय सपा मुख्यालय में इस बात की घोषणा की जा रही थी उस वक्त अखिलेश जौनपुर में थे. लखनऊ लौटने के तुरंत बाद अखिलेश राजभवन गए और बलराम यादव की बर्खास्तगी की खबर आ गयी.

सपा में वर्चस्व की लड़ाई

इसके साथ ही समाजवादी पार्टी के निर्णयों में वर्चस्व की लडाई एक बार फिर सतह पर आ गयी. मामला बढ़ने पर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह ने संसदीय बोर्ड की बैठक बुला ली. इस बैठक में भी अखिलेश यादव अपने स्टैंड पर अड़े रहे. उनका साथ प्रो. राम गोपाल यादव ने भी दिया . अखिलेश के दबाव में सपा को एक बार फिर अपना फैसला बदलना पड़ा.

डीपी यादव  व राजा भैया मामले में भी अड़े थे अखिलेश

इसके पहले भी 2012 के चुनाव के पहले पश्चिमी यूपी के बाहुबली डीपी यादव पर भी अखिलेश ने ऐसा ही रुख दिखाया था. फिर जब प्रतापगढ़ में पुलिस अधिकारी जिया उल हक़ की हत्या के आरोप बाहुबली मंत्री राजा भैया पर लगे तब भी अखिलेश के दवाव में ही रजा भैया को इस्तीफ़ा देना पड़ा था.

अखिलेश ब्रिगेड के माने जाने वाले आनंद भदौरिया और सुनील साजन को भी मुलायम ने जब पार्टी से निकला दिया तब भी अखिलेश ने अपने तेवर कड़े कर लिए थे, नतीजतन उन दोनों की न सिर्फ वापसी हुयी बल्कि दोनों को विधान परिषद् भी भेजा गया.

मुख्यमंत्री पद सम्हालने के बाद से अखिलेश यादव ने समय समय पर यह साबित करने की कोशिश की है कि उनके निर्णयों के खिलाफ यदि पार्टी जाती है तो वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे और एक बार फिर अखिलेश यादव ने इसे साबित कर दिया है.

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