उच्चतम न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 370 और 35(ए) को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पांच-सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपने के आज संकेत दिये। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ ने कश्मीरी पंडित डॉ. चारु वली खन्ना की याचिका को गैर-सरकारी संगठन ‘वी द सिटीजन्स’ की ऐसी ही एक अन्य याचिका के साथ सम्बद्ध कर दिया। ‘वी द सिटीजन्स’ की याचिका तीन-सदस्यीय पीठ के समक्ष लंबित है, जिसकी सुनवाई इस माह के अंत में होनी है।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि यदि तीन-सदस्यीय पीठ को ऐसा लगता है कि इन याचिकाओं को पांच-सदस्यीय संविधान पीठ को सुपुर्द करना जरूरी है तो वह ऐसा कर सकती है। इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पी एस नरिसम्हा ने भी न्यायालय से आग्रह किया कि सभी संबंधित याचिकाओं की सुनवाई एक साथ की जाये, तो बेहतर है। राज्य सरकार के वकील ने पीठ के समक्ष दलील दी कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय 2002 में दिये अपने फैसले में अनुच्छेद 35(ए) के मुद्दे का प्रथम दृष्ट्या निपटारा कर चुका है। अनुच्छेद 370 जहां जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है, वहीं अनुच्छेद 35(ए) राज्य के स्थायी निवासियों और उनके विशेषाधिकारों को परिभाषित करता है।

 

डॉ. खन्ना ने अनुच्छेद 35(ए) के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद छह को चुनौती दी है। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि अनुच्छेद 370 और 35(ए) संविधान में वर्णित समानता के मौलिक अधिकार का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है, क्योंकि इन अनुच्छेदों के कारण जम्मू-कश्मीर के बाहर का व्यक्ति न तो वहां प्रॉपर्टी खरीद सकता है, न उसे वहां सरकारी नौकरी मिल सकती है और न ही वह स्थानीय निकाय चुनावों में हिस्सा ले सकता है। ‘वी द सिटीजन्स’ ने भी याचिका दायर करके अनुच्छेद 35ए को निरस्त करने का न्यायालय से अनुरोध किया है।

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