अगले महीने होने वाले राष्‍ट्रपति चुनाव को लेकर भाजपा के खिलाफ नयी गोलबंदी की शुरुआत हो रही है। इसके बहाने गैरभाजपा दल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए नये-नये सहयोगियों की तलाश कर रहे हैं। नयी गोलबंदी की कोशिश में नीतीश कुमार भी गैरभाजपा दलों के साथ होंगे, लेकिन राष्‍ट्रपति के लिए भाजपा के वरिष्‍ठ नेता लालकृष्‍ण आडवाणी एनडीए के उम्‍मीदवार होंगे तो नीतीश कुमार आडवाणी के पक्ष में मतदान करेंगे यानी भाजपा के साथ खड़े होंगे।

 

वीरेंद्र यादव

नीतीश कुमार के एक विश्‍वस्‍त सहयोगी ने बताया कि नीतीश कुमार विपक्षी दलों की एकता के प्रबल पक्षधर हैं, लेकिन राष्‍ट्रपति चुनाव को विपक्षी दलों की गोलबंदी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। कम से कम जदयू राष्‍ट्रपति चुनाव को विपक्षी दलों की एकता का माध्‍यम नहीं मानता है। भाजपा में ही कई वरिष्‍ठ नेता नीतीश कुमार के निकट सहयोगी रहे हैं, जिनके साथ नीतीश कुमार का संबंध काफी बढि़या रहा है। उनमें पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्‍ण आडवाणी भी एक हैं। यह भी कह सकते हैं कि अटल बिहार वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे सभी भाजपा नेताओं के साथ नीतीश के बेहतर संबंध रहे हैं। वैसी स्थिति में यदि भाजपा किसी निर्विवाद चेहरे को राष्‍ट्र‍पति उम्‍मीदवार बनाती है तो नीतीश का समर्थन मिलने की पूरी उम्‍मीद है।

2012 में हुए राष्‍ट्रपति चुनाव में नीतीश कुमार ने भाजपा समर्थित उम्‍मीदवार को समर्थन देने के बजाये कांग्रेस उम्‍मीदवार प्रणव मुखर्जी को अपना समर्थन दिया था और एनडीए में होने के बावजूद जदयू ने कांग्रेस उम्‍मीदवार को वोट दिया था। यदि नीतीश कुमार भाजपा उम्‍मीदवार को अपना समर्थन देते हैं तो मीडिया उसे महागठबंधन में दरार के रूप में ही देखेगा। यह स्‍वाभाविक भी है। क्‍योंकि महागठबंधन में दरार की टीआरपी है और खबरों की प्राथमिकता तो टीआरपी ही तय करती है।

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