उच्चतम न्यायालय ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि कोई उम्मीदवार लंबित आपराधिक मुकदमों से संबंधित जानकारी छुपाता है तो उसका निर्वाचन रद्द किया जा सकता है। 

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि को छिपाना उम्मीदवारों के भ्रष्ट कृत्यों की श्रेणी में आता है। सार्वजनिक जीवन से भ्रष्टाचार और राजनीतिक के अपराधीकरण को समाप्त करना समय की मांग है।  शीर्ष अदालत ने कहा कि नामांकन पत्र भरने के वक्त आपराधिक पृष्ठभूमि,  खासकर जघन्य अपराधों अथवा भ्रष्टाचार अथवा नैतिक मूल्यों से संबंधित अपराधों को उजागर करना कानूनी रूप से अनिवार्य है। लेकिन उम्मीदवार इसे छुपाता है तो उसका निर्वाचन निरस्त किया जा सकता है।

न्यायालय का यह फैसला 2006 के उस मामले में आया है, जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के कोयम्बटूर के एक पंचायत सदस्य का निर्वाचन यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि उसने नामांकन पत्र भरते समय लंबित आपराधिक मामलों को छुपाया था। तत्कालीन पंचायत सदस्य ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी।  राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने की दिशा में एक कदम बढाते हुए न्यायालय ने 2013 में व्यवस्था दी थी कि आपराधिक मामलों में दो साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले जनप्रतिनिधि की संसद या विधान मंडल की सदस्यता स्वत: समाप्त हो जाएगी और पूरी सजा काट लेने के छह साल बाद ही वह फिर से चुनाव लड़ सकेगा।

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