नीतीश कुमार के नेतृत्‍व वाली महागठबंधन सरकार अपनी पहली वर्षगांठ मना रहा है। 28 मंत्रियों के साथ नीतीश कुमार शासन कर रहे हैं, लेकिन तीनों दलों के राजनेताओं और कार्यकर्ताओं का पूरा साल यानी 365 दिन ‘सत्‍ता की छींका’ टूटने के इंतजार में ही गुजर गया। जिन पार्टी कार्यकर्ताओं की मेहनत और निष्‍ठा के कारण तीनों दल साथ-साथ सत्‍ता में आए, उन्‍हीं कार्यकर्ताओं को ‘अनिष्‍ठ’ मान लिया गया। उनकी अनदेखी सभी दलों ने शुरू कर दी।niiii

वीरेंद्र यादव

अनिष्‍ठ हो गए कार्यकर्ता

पहले सभी राजनीतिक पदों पर जदयू के कार्यकर्ता ही विराजमान थे, लेकिन राजद और कांग्रेस की हिस्‍सेदारी के नाम पर सरकार ने कुछ को छोड़कर सभी निगम, बोर्ड और आयोग के पदधारकों से इस्‍तीफा मांग लिया। सरकारी शब्दावली में सभी पदधारकों ने स्‍वेच्‍छा से अपना इस्‍तीफा सरकार को सौंप दिया। जदयू के पदधारकों के इस्‍तीफे के बाद उम्‍मीद जगी थी कि निगम, बोर्ड, आयोगों में राजद व कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हिस्‍सेदारी भी होगी। लेकिन इस्‍तीफे के छह माह बाद आज तक एक भी पद पर नियुक्ति नहीं हो सकी है। सभी पद रिक्‍त पड़े हुए हैं।

 

फिर यात्रा पर निकल जाएगी सरकार

सरकार अपनी उपलब्धियों का वर्षगांठ मना रही है और कार्यकर्ता ‘इंतजार का मातम’ झेल रहे हैं। सरकार राजनीतिक यात्रा के बजाय सरकारी यात्रा कर रही है, जिसमें कार्यकर्ताओं के लिए कोई जगह नहीं है। कार्यकर्ता न श्रोता बन सकते हैं और न वक्‍ता। कार्यक्रम का नाम दिया गया है निश्‍चय यात्रा। इसमें सरकार ने नये कार्यकर्ता गढ़ लिए हैं, जिसे जीविका दीदी, सहायिका, सेविका जैसे नाम दिए गए हैं। इन्‍हें भी संभावना के ‘दीये’ दिखाए जा रहे हैं, उम्‍मीदों का ‘उजियारा’ समझाया जा रहा है। ठीक वैसे ही जैसे चुनाव के पूर्व कार्यकर्ताओं को ‘सत्‍ता का सपना’ दिखाया गया था। सत्‍ता में हिस्‍सेदारी का मायाजाल गढ़ा गया था। और जब सत्‍ता मिली तो सरकार ही ‘सत्‍ता जाल’ में उलझ कर रह गयी। कार्यकर्ता भुला दिए गए। कार्यकर्ता पार्टी कार्यालय और अध्‍यक्षों के दरवाजे पर माथा पटक रहे हैं, उपेक्षा का रोना रो रहे हैं। लेकिन सुनने की फुर्सत किसी के पास नहीं है। सत्‍ता की वर्षगांठ के जश्‍न में कार्यकर्ता फिर कहीं खो जाएंगे और सरकार यात्रा पर फिर निकल जाएगी।

By Editor