उर्दू पत्रकारिता के स्तर को हिंदी व अंग्रेजी के समानांतर खड़ा करने के तमाम पहुलुओं पर गौर करने के लिए बिहार उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में वरिष्ठ पत्रकारों ने यह महसूस किया कि मीडिया घरानों के सहयोग और संसाधनों की उपलब्धता के बूते उर्दू पत्रकारिता के उज्जवल अतीत को फिर से प्राप्त किया जा सकता है.जबूत बना कर उर्दू पत्रकारिता के स्तर को फिर से हासिल किया जा सकता है.

 

अकादमी के सचिव मुश्ताक अहमद नूरी ने इस अवसर पर वर्किंग जर्नलिस्टों के अंदर पनपती हीन भावना को ख्तम करने के लिए उर्दू पत्रकारिता के स्तर को ऊंचा बनाने पर बल दिया.

 

इस अवसर पर रेयाज अजीमाबादी ने कहा कि सहाफत( पत्रकारिता) इबादत है लिहाजा इस पेशे की ईमानदारी को बनाये रखना जरूरी है. रैहान गनी ने इस अवसर पर सम्पादन की कला पर अपनी बात रखते हुए कहा कि एडिटरों की मजबूत टीम की कमी के कारण उर्दू पत्रकारिता में एडिटिंग का पक्ष कमजोर होता चला गया है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है. सईद अहमद कादरी ने कहा कि सहाफत को बचाना देश के लोकतंत्र को बचाना है लिहाजा पत्रकारों को इस काम को देश और समाज सेवा का काम समझना चाहिए.

 

अहमद जावेद ने सम्पादकीय लेखन की बारीकियों को समझाया और कहा कि सम्पादकीय दर असल खबरनवीशी का उच्चतर मुकाम है जिसके द्वारा कोई अखबार अपने और अपने पाठकों के नजरीये को पेश करता है. विरष्ठ पत्रकार शहबाज आलम ने कहा कि पत्रकारिता में प्रशिक्षित पत्रकार खबरों के सेंस को समझते हैं. जिसकी कमी उर्दू में दिखती है.

 

इस अवसर पर एआर हाशमी ने हिंदी और उर्दू पत्रकारिता के तुलनात्मक अध्ययन को पेश करते हुए कहा कि उर्दू पत्रकारित में असीम संभावनायें हैं बस जरूरत इस बात की है कि हम पत्रकार अपनी जिम्मेदारियों को समझें. उन्होंने कहा कि उर्दू पत्रकारों जिस दिन यह तय कर लेंगे कि वह अपना बेहतरीन प्रदर्शन देंगे, तो उर्दू पत्रकारिता समानांतर पत्रकारिता बन जायेगी.

इर्शादुल हक ने लाइव रिपोर्टिंग की बारीकियों पर बहस करते हुए कहा कि इंटरनेट की उपलब्धता ने लाइव रिपोर्टिंग को आज की पत्रकारिता का सबसे अहम पक्ष करार दिया और कहा कि लाइव रिपोर्टिंग जोखिम और खतरों से भरी है, इसलिए इसमें संय्यम और जिम्मेदारियों के प्रति संवेदनशीलता जरूरी है. इस अवसर अब्दुल वाहिद रहमानी ने भी अपने विचार रखे.

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