ऐसे ही फैसलों को इतिहास गढ़ना कहते हैं, जो बिहार की महागठबंधन सरकार ने  27 दिसम्बर 2016 को गढ़ा. अब किसी पिछड़ी या अतिपिछड़ी जाति की बेटी या बेटा डायरेक्ट जिला जज या अतिरिक्त जिला जज बन सकता/ सकती है. यह संभव हो सका है न्यायिक सेवा में आरक्षण का दायरा बढ़ाने से.Lalu.nitish

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

वरना 27 दिसम्बर के पहले (अपवादों को छोड़ कर) यह एक दिवास्वप्न जैसा था. 68 वर्षों के संघर्ष, कानूनी अड़चनों के पहाड़ को पार करने और सियासी व सामाजिक जागरूकता की लम्बी दौड़ के बाद पिछड़ों-अति पिछड़ों को यह अधिकार मिल सका है. सामाजिक न्याय की ओर बढ़ाये गये एक और ऐतिहासक कदम के लिए महागठबंधन सरकार को बधाई.

तूटेगी जकड़न

बिहार समेत भारत भर में सामाजिक गैरबराबरी की जकड़न को तोड़ने की दिशा में यह कदम काबिल ए तारीफ है. इस फैसले का सबसे बड़ा असर आने वाले कुछ वर्षों में दिखना शुरू होगा जब इंसाफ की कुर्सी पर दबे कुचले वर्ग का मुंसिफ बैठेगा. और तब पिछड़ी जातियों के  मुद्दई, मुदालय और यहां तक कि मुंसिफ तीनों को यह आभास हो सकेगा कि न्यायिक व्यवस्था में उनकी भी भागीदारी है. इस फैसले ने व्यवस्था में समावेशी भागीदारी को सुनिश्चित कर दिया है.

सामाजिक न्याय की ओर

सामाजिक न्याय की लड़ाई के मामले में बिहार ने हमेशा ही मिसालें कायम की हैं. सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातियों को पहले से आरक्षण है. इसके बाद सत्तर के दशक में पिछड़ों के अलावा अति पिछड़ों को अलग-अलग आरक्षण देने का फैसला हुआ. अतिपिछड़ी जातियों को लिए अलग से कोटा निर्धारण का लाभ यह हुआ कि अनुसूचित जातियों से भी बुरी स्थिति की तरफ ढ़केली जा चुकी इन जातियों को भी व्यस्था में हक मिलने लगा. इसके लिए कर्पूरी ठाकुर जैसे महान नेताओं को याद किया जा सकता है.

इन सब के बावजूद अभी तक न्यायिक सेवाओं में पिछड़ों के आरक्षण का लाभ  सेशन जज और जिला जज जैसे पदों पर नहीं मिलता था. यह आरक्षण केवल मुंसिफ व जुडिसियल मजिस्ट्रेट के पदों तक था. लेकिन अब सीधे तौर पर पिछड़ों के लिए सेशन व जिला जज बनने का मौका मिलेगा.

आरक्षण की इस व्यवस्था से अति पिछड़ों के लिए 21 प्रतिशत, पिछड़ों के लिए 12 प्रतिशत, अनुसूचित जाति के लिए 16 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए एक प्रतिशत कोटा निर्धारित कर दिया गया है.  इसके अलावा इन तमाम कटेगरी में 35 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं को मिलेगा. बिहार में फिलवक्त न्यायिक सेवाओं के 1100 पद रिक्त हैं. जल्द ही इन पदों को भरा जायेगा.

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