पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी बिहार आये तो न सिर्फ राजनीति में रंजिश बढ़ी बल्कि असंसदीय शब्दों के बाण भी चले. ‘डीएनए में खराबी’, ‘दुराचारी’ और  लालू नीतीश पर ‘थूकने’ जैसे शब्दों से बौद्धिक वर्ग को काफी निराशा हुई.narendra-modi-0

इर्शादुल हक सम्पादक,न नौकरशाही डॉट इन

साभार दैनिक भास्कर

मंच पर उपस्थित अभिनेता और नेता, सामने मौजूद ऑडियंस की तालियों से नया जोश और नयी ऊर्जा ग्रहण करते हैं.एक सफल नेता या अभिनेता की यह खासियत है कि वह ऑडियंस की प्रतिक्रिया को भांपते हुए अपना रुख तय कर लेते हैं. अभिनेता के बरक्स नेता के लिए सीमित विकल्प होते हैं क्योंकि उनकी स्क्रिप्ट हर बार पहले से लिखी नहीं होती.

मुजफ्फरपुर की रैली में पधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीएम नीतीश कुमार के ‘डीएनए में खराबी’ वाली जो टिप्पणी की, यकीनन वह इस तरह की भाषा के प्रयोग की तैयारी पहले से करके नहीं आये होंगे. लेकिन न सिर्फ उन्होंने यह टिप्पणी की बल्कि अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए इसे महादलित जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाये जाने की मिसाल से जोड़ा. शायद नरेंद्र मोदी ने ऐसी टिप्पणी की प्रेरणा खुद जीतन राम मांझी से ली हो. क्योंकि मांझी ने उसी मंच से, उनसे पहले नीतीश कुमार को ‘दुराचारी’ कहके संबोधित कर चुके थे. इतना ही नहीं उसी मंच से रामविलास पासवान ने भी एक टिप्पणी पहले कर रखी थी कि जनता लालू और नीतीश पर ‘थूकेगी’.

अमर्यादित टिप्पणियां

लोकतंत्र में ऐसी अमर्यादित टिप्पणियों की अपेक्षा किसी से नहीं की जाती. खास तौर पर तब, जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हमारे सबस शक्तिशाली अधिकारों में स एक है. टिप्पणियों में मर्यादा की अपेक्षा तो तब और बढ़ जाती है जब व्यक्ति प्रधान मंत्री, केंद्रीय मंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री सरीखे हो. एक ही मंच से उन तीनों नेताओं की तीन विवादस्पद टिप्पणियों से भले ही दर्शकों में मौजूद कुछ लोगों ने तालियों से स्वागत किया हो पर हकीकत यह है कि वे पूरे समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते. यही कारण है कि पिछले कई दिनों से इन टिप्पणियों के खिलाफ न सिर्फ प्रतिक्रिया आती रही बल्कि नुक्कड़ों पर बहस का मौजू भी यही टिप्पणियां बनी रहीं. निश्चित तौर पर नरेंद्र मोदी अपनी शानदार भाषण कला से जाने जाते हैं.

पीएम की गरिमा और उनसे अपेक्षा

लेकिन उनकी इस टिप्पणी ने इस बार उनके भाषण की तारीफ करने वालों की संख्या कम कर दी. दूसरी तरफ उनकी विराट छवि के साये में भले ही मांझी और पासवान की टिप्पणियां बहसों के लिए ज्यादा स्पेस नहीं ले पायीं लेकिन ये दोनों नेता भी कटघरे में तो आ ही गये. स्वाभाविक था कि नीतीश और लालू ऐसी टिप्पणियों का जवाब देने के लिए, इसे राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से नहीं चूके. नीतीश ने रात होते-होते प्रेस कांफ्रेंस बुलायी और कह डाला कि ये टिप्पणी सिर्फ एक मुख्यमंत्री का नहीं बल्कि पूरे बिहार का अपमान है. बिहारी जनता इसका सही समय पर जवाब देगी. नीतीश ने इसे बिहारी स्मिता से जोड़ने की कोशिश की. इसी तरह लालू ने भी मोदी की इस टिप्पणी को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की.

25 जुलाई को मोदी मुजफ्फरपुर के कार्यक्रम से महज तीन घंटे पहले पटना में दो कार्यक्रमों में नीतीश के साथ थे. इस दौरान दोनों की मुस्कुराते हुए बात करती तस्वीरें डिजिटल मीडिया पर आ चुकी थीं. आम जन दोनों के इस साकारात्मक पोज पर गदगद थे. कइयों ने यहां तक कहा कि मोदी-नीतीश भले ही राजनीतिक अदावत रखते हों पर अपनी सरकारों के नुमाइंदे की हैसियत से दोनों की वह मुस्कुराती तस्वीरें लोकतंत्र के परिपक्वता की मिसाल है. पर चंद घंटों में हालात बदल जाना चिंताजनक स्थिति थी. क्यंकि बतौर सीएम, नीतीश कुमार ने तो सिर्फ अपने समर्थकों के मुख्यमंत्री हैं और न ही नरेंद्र मोदी ही सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रधानमंत्री हैं. ऐसे में पूरा समाज और पूरा देश इनकी हर बातों का संज्ञान स्वाभाविक तौर पर लेगा. और जाहिर सी बात है कि उच्चस्तर का नेतृत्व अगर विवादस्पद और अमर्यादित शब्दों को प्रोयग करेगा तो एक अवसत दर्जे के नेता से बयानों में गंभीरता की उम्मीद करना बेमानी है.

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