बिहार विधान सभा चुनाव में बमुश्किल छह माह का समय बचा है। राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गयी है। लोग खेमा और पार्टी बदलने व बनाने में जुट गए हैं। इसकी आहट प्रशासनिक गलियारे में भी सुनी जाने लगी है। नयी सरकार की संभावना और समीकरण को लेकर भी चर्चा होने लगी है।ooooooooooo

वीरेंद्र यादव

 

आज सुबह कई आईएएस अधिकारियों से मिलने का मौका मिला। सबसे अलग-अलग मुलाकात हुई। चर्चा कई मुद्दों पर हुई, जिसमें चुनाव के बाद की संभावनाओं पर भी चर्चा हुई। सत्‍ता के साथ बदल जाने का लचीलापन सबसे ज्‍यादा नौकरशाहों में होती है। यह बातचीत में भी दिखी। नौकरशाहों में जनता परिवार के विलय को लेकर ज्‍यादा उत्‍साह नहीं दिखा। कुछ का मानना था कि इन दलों का विलय आसान नहीं है, जबकि कुछ मान रहे थे कि विलय के बाद सामाजिक समीकरण का फायदा मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार को मिल सकता है।

 

प्रतिबद्धता की चुनौती

लेकिन नयी सरकार में नये सिरे से सामंजस की चिंता सबको सता रही है। इनका मानना है कि सरकार बदलेगी तो प्रशासनिक ढांचा भी बदलेगा। पदाधिकारियों की जिम्‍मेवारियों में व्‍यापक फेरबदल होगा। मुख्‍य सचिव व डीजीपी भी बदले जा सकते हैं। उनका यह भी मानना है कि यदि नीतीश कुमार फिर से सत्‍ता में लौटते हैं तो उन पर लालू यादव का दबाव काफी होगा। वैसे में पदाधिकारियों के स्‍थानांतरण व पदस्‍थापन में लालू यादव की अनदेखी संभव नहीं है। यदि भाजपा सत्‍ता में आती है तो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए अधिकारियों को बड़ी संख्‍या में वापस बुलाया जा सकता है और दूसरे लोगों को केंद्र में भेजा जा सकता है। सचिवालय के गलियारे में भी नयी-नयी संभावनाओं को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं और करवट बदलने की बेचैनी भी दिख रही है। यह बेचैनी अधिकारियों की प्रतिबद्धता को लेकर भी देखी जा रही है।

By Editor