समाकालीन काव्यरचनाधर्मिता मेंछंदों के एक महत्त्वपूर्ण कवि के रूप में प्रतिष्ठित कविमृत्युंजय मिश्र करुणेश‘ के गीतग़ज़ल संसार के दर्द को समेट कर जीते हैं। आज के इस लोकप्रिय कवि की ग़ज़लों में यदि दर्द हीं दर्द दिखाई देता हैतो वेदर्द में डूबे इंसान को मरहम लगाती भी दिखाई देती हैं। यही साहित्य है। साहित्य लोगों की आँखों के आँसू पोंछता है। यहजीवन जीने की कला सीखा करसारस्वत ऊर्जा और जीवनीशक्ति का संचार करता है। यह हमारे लिए गौरव की बात है किगीत के शलाकापुरुष आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री और गीतों के राज कुमार गोपाल सिंह नेपाली के राज्य में करुणेश जैसे छंद के यशस्वी कवि पूरी कर्मठता से रचनाशील हैं

यह बातें आज यहाँ साहित्य सम्मेलन में श्री करुणेश की ७७ पूर्ति पर आयोजित अभिनंदनसमारोह की अध्यक्षता करते हुएसम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि हिंदी काव्य में छंदविधा को तिलांजलि दे रहे इस क्षरणकाल में करुणेश जैसे छंद के कवियों ने साहित्य की इस सुकुमार विधा को न केवल बचाए रखा हैबल्कि उसे अपनी साधना की शक्ति दी है। वे मगही और हिंदी के राष्ट्रीय ख्याति के कवि हैंजिनका पिछली सारस्वत पीढ़ी से भी गहरा संबंध और सरोकार रहा है। मोती मानसर के‘, ‘गीत मुझे गाने दो‘ , ‘कहता हूँ ग़ज़ल मैं‘, ‘बहुत कुछ भूल जाता हूँ‘ , ‘ग़ज़ल में भूलाल मन‘ , ‘ग़ज़ल हे नाम‘ आदि उनकी काव्यपुस्तकों में हम करुणेश जी की उच्च साहित्यिकप्रतिभा का अवलोकन कर सकते हैं।

आरंभ में डा सुलभ ने पुष्पहार और वंदनवस्त्र प्रदान कर श्री करुणेश का अभिनंदन किया। इसके पश्चात दर्जनों साहित्यकारों ने तिलक लगाकर तथा पुष्पहार व पुष्पगुच्छ से उनका सम्मान किया और शतायुष्य की कामना की।

समारोह का उद्घाटन करते हुएपटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा ने कहा किकरुणेश जी की रचनाधर्मिता का सम्मान स्तुत्य कवि आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री भी करते थे। इनके गीतसंग्रह गीत मुझे गाने दो‘ का लोकार्पणमुज़फ़्फ़रपुर में उन्होंने ही किया था। शास्त्री जी का इनके प्रति कैसा स्नेह भाव थावह इससे हीं पता चलता है किउन्होंने गाकर इनकी पुस्तक का लोकार्पण किया। करुणेश जी उन कुछ थोड़े से कवियों में हैंजिन्होंने शास्त्री जीनेपाली जीदिनकर जीप्रभात जी जैसे हिंदी के महान कवियों के साथ कविसम्मेलनों की शोभा बढा चुके हैं।

सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्रडा शंकर प्रसादवरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदीडा कल्याणी कुसुम सिंहकवि श्रीराम तिवारीराजीव कुमार सिंह परिमलेन्दु‘, ओम् प्रकाश पांडेय,’प्रकाश‘, कवि घमंडी रामकवि राज कुमार प्रेमीआचार्य आनंद किशोर शास्त्री आदि ने भी अपने मंगलभाव व्यक्त किए और बधाई दी। बधाई देने वालों मेंडा अर्चना त्रिपाठीडा विनय कुमार विष्णुपुरीअंबरीष कांतविश्व मोहन चौधरी संतशालिनी पांडेयबाँके बिहारी सावआनंद किशोर मिश्रशंकर शरण मधुकरनरेंद्र देवअनिल कुमार सिन्हाअविनय काशीनाथसुबोध कुमार युगबोधशशि भूषण उपाध्यायमधुप‘, शैलेश कुमार सिंहराम शंकर प्रसादहरेंद्र सिन्हा के नाम सम्मिलित हैं।

अभिनंदन समारोह के पश्चात करुणेश जी का एकल काव्यपाठ आरंभ हुआजिसमें उन्होंने आधा दर्जन से अधिक अपने सर्वाधिक लोकप्रिय गीत और ग़ज़लों का सस्वर पाठ कर श्रोताओं को आत्मविभोर कर दिया। उन्होंने अपनी ग़ज़ल टूटे दिल में सौसौ अरमान लिए गुज़रा हूँमैं मरघट मरघट में प्राण लिए गुज़रा हूँ” से शुरुआत की। इसके साथ हीं वाहवाह और आहआह तथा तालियों की गड़गड़ाहट का जो सिलसिला आरंभ हुआ वह उनके अंतिम गीत– “ कितने दिन ख़ुद से भी बात की हो गएमन जो था मस्तमस्तबौरबौर बौराया” के बाद हीं समाप्त हुआ। इस बीच उन्होंने ज़ख़्म कुछ भर जाएगाकुछकुछ हरा रह जाएगादेखना साक़ी कहीं कुछ हादसा ऐसा न होसब मरे प्यासेभरा सागर धरा रह जाएगा” आदि ग़ज़लगीतों का पाठ कर सम्मेलन को चिरस्मरणीय ताज़गी प्रदान की।

अतिथियों का स्वागतसम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने तथा धन्यवादज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। मंच का संचालन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।

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