ब्लैकमेलिंग से आजिज महिला शिकायत करने क्राइम ब्रांच पहुंच गई कि पुलिस वाले उससे बारबार पैसे मांग रहे हैं.महिला अपने ब्वायफ्रैंड के साथ रोमांस करते देखी गई थी.पर कांस्टेबुल दिलीप द्वारा खोजे गये साफ्टवेयर ने कमाल कर दिया.

हालांकि उस महिला का कहना था कि वह पुलिस वालों को कुछ गहने और पचास हजार रुपये दे चुकी है.पुलिस महकमे ने अपने एक होनहार कांस्टेबुल के सोफ्टवेयर की बदौलत न सिर्फ ब्लैकमेलर पुलिसकर्मियों को दबोचा बल्कि महिला के पैसे और गहने भी वापस करवा दिये. ब्लैकमेर पुलिस पर कानूनी शिकंजा कसा सो अलग.

दिलीप महज बारहवीं तक पढे हैं(टीओआई भद्रेश )

यह करिश्माई कामयाबी अहमदाबाद के उस कांस्टेबुल द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर की बदौलत हाथ लगी जो न तो कम्प्यूटर शिक्षा में कोई डिग्री रखता है और न ही जिसने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई ही की है.
37 वर्षीय दिलीप सिंह महज एक मेकानिक हैं.लेकिन उन्होंने एक सॉफ्टवेयर डेवलप किया है- ‘पिनाक’ जो सर्च इंजन की तरह काम करता है. और अपराधियों की पहचान और उसके लोकेशन को इंगित करता है.

महिला की शिकायत पर कांस्टेबुल दिलीप सिंह के साफ्टवेयर की मदद से सफेद कपड़े में ब्लैकमेलिंग करने वाले पुलिसकर्मियों को धर दबोचा गया.
डीएनए और टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक दिलिप ने अभी तक कोई दर्जन भर ऐसे साफ्टवेयर विकसित किया है जिसके सहारे 200 से अधिक अपराधियों को दबोचने में मदद मिली है.

दिलिप की इस उपलब्धि पर महकमें के आला अधिकारी उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते. गुजरात के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आशीष भाटिया कहते हैं, पहले हमें ऐसे कामों के लिए निजी फर्मों की मदद लेनी पड़ती थी जिसके एवज हमें मोटी रकम खर्च करनी पड़ती थी. पर दिलीप ने हमारा काम आसान कर दिया है.

दिलचस्प बात तो यह है कि दिलीप ने जब 1998 में पुलिस ज्वायन किया था तो उनकी कम्प्यूटर की न तो कोई जानकारी थी और न ही इसमें कोई रूचि. वह कहते हैं, हालांकि मैं तत्कालीन एसपी के कहने पर कम्प्यूटर में दिलचस्पी लेने लगा क्योंकि उनको लगता था कि मेरे अंदर काफी एकाग्रता है. इसके बाद मैंने उनके कहे अनुसार कम्प्यूटर में दिलचस्पी लेने लगा. नतीजा यह हुआ कि कुछ ही महीनों में मैंने ऐसी अनेक उलब्धियां हासिल कर लीं.

‘अमरबेल’ और ‘एकलव्य’ का करिश्मा

दिलीप ने पिनाक के अलावा ‘अमरबेल’ और ‘एकलव्य’ साफ्टवेयर भी डेवलप किये हैं. ‘अमरबेल’ वैसे अपराधियों का रिकार्ड रखता है जो बेल पर छूट कर गये हैं. जबकि ‘एकलव्य’ द्वार अहमदाबाद के आठ लाख से ज्यादा वाहनों का रिकार्ड सुरक्षित रखता है जिसकी मदद से चोरे के वाहनों को पता लगाने में आसानी होती है.

तो क्या इतनी बड़ी उपलब्धिक के बाद दिलीप अपना करियर कम्प्यूटर के क्षेत्र की तरफ मोड़ना चाहेंगे. दिलीप दो टूक जवाब देते हैं, “ना ना.. पुलिसिंग तो मेरे जीन में बसा है.मैं कुछ और कर ही नहीं सकता”.

दिलीप की इस उपलब्धि पर महकमे ने उन्हें बाजाब्ता कम्प्यूटर का सर्टीफिकेशन कोर्स भी करवाया है.

By Editor