आईजी रैंक के अधिकारी की पत्नी एफआईआर की अर्जी लेकर किसी थानेदार के पास पहुंचें तो थाने में क्या स्थिति होगी कल्पना कीजिए ? कुछ सोचिए नहीं, यहां पढ़िये कि कैसे आपकी कल्पना फेल कर जायेगी.

नूतन सामाजिक कार्यकर्ता हैं
नूतन सामाजिक कार्यकर्ता हैं

 

उत्तर प्रदेश कैडर के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर की पत्नी खुद भी एक जानी पहचानी सामाजिक कार्यकर्ता हैं. लेकिन उनके साथ थानेदार ने जिस तरह का सुलूक किया वह पुलिस के असली चेहरे को बयां करने वाला है. आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने अपनी पत्नी के अनुभव को साझा किया है. पढिए उन्हीं की जुबानी.

 

आज मेरी पत्नी नूतन को लखनऊ पुलिस का ख़ास चेहरा तब देखने को मिला जब वे मेरा एक एफआईआर ले कर थाना हजरतगंज गयीं.

मैं और आशुतोष पांडे पिछले लगभग एक माह से एक ऐसे गैंग के संपर्क में हैं जिसके सदस्य खुद को बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) के अफसर बता कर तमाम लोगों को फोन करते हैं और उनसे बीमा सम्बन्धी किसी भी समस्या का निदान करने का आश्वासन देते हैं. इसी दौरान ये लोग सम्बंधित व्यक्ति से किसी ना किसी बहाने पैसे ले लेते हैं तथा इनके पैन कार्ड, बैंक अकाउंट जैसे महत्वपूर्ण अभिलेख प्राप्त कर लेते हैं, जैसा हम दोनों के साथ भी प्रयास किया गया.

 

हम दोनों लोगों ने पूरा प्रयास कर इस गैंग के तमाम लोगों के फ़ोन नंबर, उनके लखनऊ स्थित एक साथी का नाम और फोन नंबर और उनका दिल्ली स्थित पता ज्ञात कर थाना हजरतगंज के लिए एफआईआर दिया जो नूतन थाने पर ले गयीं.

 

थाने पर इन्स्पेक्टर ने मीटिंग के नाम पर मिलने से मना कर दिया और उपनिरीक्षक श्याम चन्द्र त्रिपाठी और अजय कुमार द्विवेदी से बात करने को कहा. इन दोनों पुलिसवालों ने पहले तो बहुत देर तक नूतन को बैठाये रखा और उनसे तमाम बिलावजह के सवाल पूछे. जब नूतन ने उनके सारे उलटे-पुल्टे सवालों का उत्तर दे दिया और यह भी स्पष्ट कर दिया कि प्रार्थनापत्र के अनुसार ना सिर्फ संज्ञेय अपराध बनता है बल्कि इसका घटनास्थल भी हजरतगंज है तो उन दोनों ने सीधे-सीधे बड़ी बदतमीजी के साथ कहा कि किसी भी कीमत पर एफआईआर दर्ज नहीं की जायेगी. जब नूतन ने कम से कम प्रार्थनापत्र रिसीव करने को कहा तो उन दोनों उपनिरीक्षक ने इसके लिए भी साफ़ इनकार कर दिया और कहा कि वे ऐसे ही हर किसी का प्रार्थनापत्र रिसीव नहीं किया करते हैं कि कोई भी चला आये और उसका प्रार्थनापत्र रिसीव हो जाए. नूतन ने इन्स्पेक्टर से बात करने की कोशिश की पर उन्होंने भी बात करने से मना कर दिया.

 

अब उन्होंने इस पूरी घटना का उल्लेख करते हुए एसएसपी लखनऊ को पत्र लिखा है और एफआईआर दर्ज कराने के साथ इस प्रसंग की जांच कराते हुए दोषी पाए जाने पर गलत आचरण के लिए जिम्मेदार दोनों उपनिरीक्षकों के खिलाफ कार्यवाही की भी मांग की है.

एक ऐसी सामाजिक कार्यकर्ता, जो अपने पति के वरिष्ठ आईपीएस अफसर होने को अपने कार्यों के लिए कभी भी उपयोग नहीं करती, होने के नाते नूतन व्यक्तिगत स्तर पर ऐसे गंदे अनुभवों को अपने कार्य का हिस्सा मान कर चलती हैं लेकिन निश्चित रूप से ऐसी घटनाएं पुलिस के लिए नुकसानदेह हैं.

इस प्रकरण से दो बातें निश्चित रूप से सामने आती हैं –
1. पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के सम्बन्ध में एक सार्वभौम नीति बना कर उसका हर मामले में पालन करने की सख्त जरुरत है
2. पुलिस के व्यवहार पक्ष के प्रति विशेष ध्यान देने की जरुरत है क्योंकि खराब व्यवहार उसके बुरे इमेज को और बदतर करने का काम करता है

By Editor