किरण बेदी अब भाजपा में अपनी किरण बिखेरेंगी. पर किस हैसियत से? क्या विजय गोयल,  हर्षवधर्न और सतीश उपाध्याय जैसे नेता उनकी मातहती कुबूल करेंगे, और क्या अमित शाह को पुराने चेहरों पर भरोसा नहीं? kiran-bedi-bjp-amit-shah-620x400 

 तबस्सुम फातिमा

दिल्ली की भाजपा इकाई में कोई चेहरा नहीं, जो मोदी या अमित शाह को पसंद हो। दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए असानी से किरण बेदी का, ‘मास्टर स्ट्रोक चल कर अमित शाह ने विजय गोयल, सतीश उपाध्याय समेत सारे दिग्गजों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इनमें केन्द्रीय मंत्री हर्षवधर्न भी थे, जिनके लिए दिल्ली की कुर्सी किसी सपने की तरह है। किरण बेदी का मोहरा चलकर भाजपा ने सतीश उपाध्याय को भी राजनीतिक चालों से ध्वस्त कर दिया, जिनपर केजरीवाल ने बिजली कंपनियों के साथ सांठ-गांठ के आरोप लगाये थे। अब दिल्ली का मैदान किरण बेदी के हाथ में जा सकता है.हालांकि अमित शाह इस मामले में अपने पत्ते अभी नहीं खोलना चाहते.

मंच पर ठुमके

ये वहीं किरण बेदी हैं जो अन्ना हजारे के आंदोलन मंच पर ठुमका लगा कर  भाजपा और कांग्रेस के राजनीतिज्ञों का माखौल उड़ाया करती थीं। जाने दीजिए। राजनीति इन नाच ठुमकों से पहले भी पाक नहीं थी।

किरण बेदी के नाम के ऐलान के साथ दिल्ली चुनाव का पूरा रंग ही बदल गया। इसका सीधा असर आम आदमी पार्टी पर पड़ेगा। क्योंकि कांग्रेस इस चुनाव में दूर तक कहीं नजर नहीं आ रही। अजय माकन को कमान दिये जाने के बावजूद दिल्ली के सत्ता-संघर्ष में आज कांग्रेस का नाम लेवा भी कोई नहीं.

आम आदमी पार्टी का दायरा अभी इतना बड़ा नहीं हुआ कि दिल्ली छोड़ कर मंहगाई और बिजली के मुद्दे के अलावा भाजपा को किसी बड़े राष्ट्रीय मुद्दे पर चुनौती दे सके।

मोदी के अलावा कोई चेहरा नहीं

भाजपा को अभी भी केवल मोदी पर विश्वास है। इसलिए झारखंड से जम्मू कश्मीर और अब दिल्ली तक अगर चुनावी गणति में किसी चेहरे को परोसा जा रहा है, तो वह चेहरा मोदी का है। दिल्ली के पोस्टर्स और होर्डिंगस देख लें। इनमें साफ लिखा है। विकास के लिए मोदी के साथ चलें। अर्थात, दिल्ली में कौन मुख्यमंत्री होता है, यह जानना जरूरी नहीं। इसलिए भाजपा अभी तक मुख्यमंत्री के दावेदारों में कोई नाम पेश नहीं कर सकी। यही दूसरे राज्यों में भी हुआ। और यही खेल दिल्ली में भी दूहराया जा रहा है। ‘मोदी के साथ चलो’नारा, यह स्पष्ट करता है कि दिल्ली को केन्द्र में भाजपा की सरकार होने का पफायदा मिलेगा। सम्भव हुआ, तो दिल्ली को सम्पूर्ण राज्य का दर्जा भी मिल जायेगा। दूसरी ओर यही नारा दिल्ली वालों के लिए खुली वार्निंग भी है। यानी मोदी के साथ नहीं चले तो नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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केजरीवाल की आम आदमी पार्टी अनथक मेहनत, ईमानदारी, के बाद भी पशोपेश में है क्योंकि जिस चालाकी की जरूरत थी, उसे एक वर्ष पहले 49 दिन की सरकार पर लात मार कर बैठे-बिठाये केजरीवाल को भाजपा ने मीडिया के सहारे हीरो से जीरो बना दिया। इसलिए 35 से 45 प्रतिशत {यह टीवी चैनल्स के सर्वे हैं} मुख्यमंत्री के तौर पर पहली पसंद होने के बावजूद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी होर्डिंग, पोस्टर्स और मीडिया टीवी चैनल्स की रेस में अभी से पीछे दिख रही है।

शाजिया इल्मी और जया प्रदा से भाजपा को वो लाभ नहीं पहुंचेगा, जो 40 वर्षों के तजुर्बे का लाभ किरण बेदी भाजपा को पहुंचा सकती हैं। यहां कट्टरवादी संगठनों से लेकर कट्टरवादी हिन्दू तक किरण बेदी के स्वागत की तैयारियों में है। गरीबी, मंहगाई, बिजली और पानी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर हिन्दुत्व और साम्प्रदायिकता हावी है। और इसका सीधा लाभ अब भाजपा लेना चाहती है.

केजरीवाल फैक्टर

इसमें शक नहीं कि केजरीवाल के नारों और काम के तौर तरीकों से आम व्यक्ति की मानसिकता जुड़ी है. आम जन को रोजी-रोटी तो चाहिये। दंगे नहीं चाहिये। मंहगाई का प्रेत, बिजली-पानी का बढ़ता बिल जिसे आहत करता है। और यह बेहद मामूली बातें उद्योगपतियों की पार्टी का मैनीपफेस्टो तो हो सकती है, उनकी राजनीति का सच नहीं हो सकतीं।

किरण बेदी को लाने से पहले तक केजरीवाल को नक्सली बताने वाले और जंगल भेजने वाले प्रधनमंत्री के भीतर का डर पूरे भारत ने देखा था। केजरीवाल ने चुटकी भी ली थी, कहीं प्रधनमंत्री, दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने की इच्छा तो नहीं रखते? अब किरण बेदी के बाद राजनीति के इस खतरनाक खेल का चेहरा बदल चुका है

दिल्ली चुनाव देश में बढ़ती साम्प्रदायिकता, आतंकवाद और विकास के कोरे नारों से अलग एक बड़ बदलाव की तस्वीर प्रस्तूत कर सकता था, मगर जहां मीडिया और अर्थतंत्र का पूरा दबाव सर्दी से बचाव करते मपफलर पहने एक व्यक्ति या एक आम आदमी को ध्वस्त करने में लगा हो, वहां किसी भी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जानी चाहिय। यह भूलना नहीं चाहिय कि सत्ता-सल्तनत की सवर्ण कुर्सी पर बैठे व्यक्ति या उद्योगपतियों की नजर में यह मपफलर मैन भले आज तर्कहीनता की तराजू पर एक मजाक हो, लेकिन यही मपफलर मैन भारत के आम आदमी  को प्रतिबिंबित करता है, जिसके जागने भर से बड़ी बड़ी सल्तनतें तबाह हुई हैं, इतिहास के पन्नों पर यह सबूत मौजूद है।

 

दिल्ली  की मौजूदा स्थिति से तीन बातें सामने आई हैं
—- मोदी को दिल्ली के भाजपाई चेहरों पर भरोसा नहीं था ,इसलिए उन्हें अन्ना आंदोलन और आप पार्टी से अलग हुए चेहरों को इम्पोर्ट करना पड़ा।
— किरण बेदी के पहले ही भाषण ने मोदी को खतरे में ला दिया क़ल को यह चेहरा प्रधान मंत्री उमीदवार की दावेदारी भी करे तो हैरत की बात नहीं.
–किरण बेदी की महत्वकांक्षा टॉप पर जाने की होगी लेकिन भाजपा किरण को इस्तेमाल तो करेगी लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं देगी  इस चुनावी दंगल के बाद किरण बेदी मोदी और भाजपा के लिए सरदर्द के रूप में सामने आ सकती हैं तब शायद भाजपा को यह कहावत किरण के बारे में सच लगे कि-आ बैल मुझे मार .

 

 

Tabassum Fatima
Tabassum Fatima

तबस्सुम फ़ातिमा  टेलिविजन प्रोड्युसर और फ्रीलांस राइटर  हैं.  उर्दू- हिंदी साहित्य  में  दखल रखने वाली तबस्सुम महिला अधिकारों के प्रति काफी संवेदनशील हैं. दिल्ली में रहती हैं.

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