कुशावाहा को राहुल की दावत:'तीन राज्यों के CM शपथग्रहण में आपका स्वागत है और गठबंधन में आने का इंतजार भी'

RLSP अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने महीनों चली रस्साकशी के बाद आखिरकार मोदी कैबिनेट से इस्तीफ दे दी है. अब वह महागठबंधन में जायेंगे. कुशवाहा ने यह फैसला पांच राज्यों के चुनाव नतीजे के एक दिन पहले ली है.

अशोक मिश्रा का विश्लेषण

पिछले एक साल से शिक्षा में सुधार के बहाने सूबे की नीतीश सरकार के खिलाफ सड़क पर बयानबाजी कर रहे रालोसपा अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने आज मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. करीब साढे चार साल तक भाजपा की कृपा से सत्ता की मलाई खाने वाले कुशवाहा ने आज जाते – जाते भाजपा की भी मिट्टी पलीद करने में कोई कसर नही छोड़ी.

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हालांकि यह सब कुछ एक दिन में नही हुआऔर इस पूरी फिल्म की पटकथा कुशवाहा ने बहुंत पहले लिख दी सिर्फ उचित वक्त का इंतजार था. यानि पांच राज्यो के चुनाव परिणाम के बाद अगर बीजेपी की हार के बाद वह इस्तीफा देते तो हो सकता था कि महागठबंधन में उन्हें तवज्जो नही मिलता और बीजेपी जीत जाती तो बीजेपी में तवज्जो नही.

 

इसलिये श्री कुशवाहा ने यह खतरा मोल आज लिया है. हालांकि 2000 के विधान सभा चुनाव के बाद कुशवाहा ने 2014 में पहली बार लोकसभा का चुनाव मोदी लहर में जीता. इसके पहले वे 2005 के फरवरी मे मोहिउद्दीन नगर से और नबंबंर में दलसिंह सराय से चुनाव हार चुके हैं. कभी नीतीश के परम प्रिय रहने वाले उपेन्द्र को पहली बार विधान सभा का चुनाव जीतने के बाद नीतीश ने ही विधानसभा में विरोधी दल का नेता अपने विधायको के विरोध के बाद भी बनाया था.. लेकिन 2005 के चुनाव हारने के बाद कुशवाहा जद यू से नाता तोड़ छगनभुजबल के सहयोग से एन सी पी के अध्यक्ष बने .

 

फिर एन सी पी छोड़ी जद यू में आये राज्य सभा सदस्य बने फिर जद यू छोड़ा और अपनी पार्टी बनायी. राजनीति में अति महत्वाकांक्षी रहे कुशवाहा जद यू से अलग रहकर भी नीतीश के कदमो का ही अनुसरण किया. गठबंधन में रहकर गठबंधन के खिलाफ अपनी मर्जी से बोलना राजगीर से लेकर बाल्मिकीनगर तक मंथन शिविर कर हर समय सुर्खियो में रहने की कोशिश कुशवाहा ने हर समय की है. यही वजह है कि साढे चार साल शिक्षा मंत्री रहने के बावजूद कुशवाहा शायद बिहार को कुछ लाभ भले नही पहुंचा पाये लेकिन नीतीश सरकार को घेरने की जरूर कोशिश की.

एनडीए में रहना संभव नहीं था

कुशवाहा चाहते थे कि बयानबाजी कर वे नीतीश के बहाने भाजपा पर भी दबाव बना पायेगें लेकिन हुआ उसका उल्टा.भाजपा और जद यू द्वारा लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग में फिफ्टी – फिफ्टी की घोषणा के बाद कुशवाहा समझ गये कि अब एन डी ए में रहना उनके लिये संभव नही . हालांकि नागमणि जैसे अनेक नेता जो काफी दिनो से बेरोजगार बैठे है उनके बडबोले पन ने कुशवाहा को बाहर निकलने के लिये मजबूर किया. हालांकि राजनीति में कुछ भी असंभव नही.

 

लेकिन फिलहाल कह सकते है कि कुशवाहा का यह फैसला राजनीति की राह आसान बनाने वाली नही है.अब देखना है कि महागठबंधन उन्हें किस रूप में लेता है. लेकिन राजनीतिक पंडितो की माने तो अगर यही फैसला कुशवाहा एकाध महीना पहले लेते तो महागठबंधन में उनकी पूछ अधिक होती और वे शहीद होने में कामयाब भी होते.

 

निकलने का पहले से था बहाने का इंतजार

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मिलने का समय नही देने का आरोप लगाने वाले कुशवाहा ने तब इस्तीफा दिया जब संसद का शीत कालीन सत्र शुरू हो रहा था और एन डी ए गठबंधन की बैठक आयोजित थी. ऐसे में कह सकते है वे चाहते तो अमित शाह और पी एम मोदी से मिल सकते थे. लेकिन आज के फैसले से साफ है कि कुशवाहा एन डी से निकलने का बहाना ठूंढ रहे थे.लेकिन शायद कुशवाहा ने जाने में काफी देर कर दी है.

By Editor