क्या हम अपने बच्चों को बिगाड़ रहे हैं? उन्हें अच्छा नागरिक बनाने की जिम्मेदारियां मां पर भी है

यह जुमला सब जगह मशहूर है कि बच्चे का सबसे पहला स्कूल उसकी मां की गोद होता है. यह बात बहुत ही सही एवं गहरी है और बहुत बड़ी सच्चाई भी है.
जब से मां की गोद वाला स्कूल कमजोर पड़ा है या  कुछ घर आने में बिल्कुल गायब हो गया है या कहीं कहीं यह स्कूल बच्चों के झूठे लाड प्यार में गलत तालीम देने लगा है तब से बच्चे बड़े होकर मां-बाप और यहां तक कि समाज के लिए अच्छा शायरी, अच्छा इंसान और अच्छा बेटा- बेटी बनने की बजाय वह समाज घर और मां बाप के लिए बड़ी मुसीबत बन जाते हैं.
इसकी बहुत बड़ी वजह खासतौर पर मां बाप होते हैं और उसमें मां की जिम्मेदारी बहुत ज्यादा होती है. आज के   दौर के नये हालात में बहुत सी मायें जिम्मेदारी नहीं निभा पा रही हैं. चाहे मां की नौकरियां हो या सोशल वर्क हों या टीवी प्रोग्रामों से बहुत ज्यादा लगाव हो.
इन सबके साथ खूबसूरत और प्यार भरा तालमेल अपने बच्चों के साथ ना हो और कदम कदम पर मां के प्यार का एहसास और उससे सीखने को कुछ ना मिले तो इस बात का खतरा बहुत बढ़ जाता है कि उनके बच्चे बिना सोचे समझे ऐसी राह पर चल पड़ें जो जिंदगी को बर्बाद करने वाली होती है. और फिर  आदतें धीरे-धीरे उन बच्चों की आदत में शामिल हो जाती हैं और फिर वह बच्चे अपनी  गलत ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए मां बाप पर हर तरह से दबाव डालते हैं या फिर गलत तरीके से पैसे कमाते हैं.
यह बिगाड़ कहीं-कहीं इतना खतरनाक  हो जाता है.
 हमारे मुल्क हिंदुस्तान में खानदानी व्यवस्था अभी बहुत ज्यादा नहीं बिगड़ी रही है. परिवार अपनी जिम्मेदारी उचित तरीके से अदा करे तो हम बच्चों में नैतिक शिक्षा का विकास आसानी से कर सकते हैं.  अगर हम नैतिक दायित्व को संजीदगी से उनमें और उनके बच्चों में प्यार भरे अपनेपन के साथ-साथ उनको जिंदगी जीने की अच्छी सीख दे सकते हैं. हालांकि हमें यह सोचना होगा कि कहीं हमारे समाज में  बच्चों को घर के अंदर ही अच्छी शिक्षा देने का सिलसिला कहीं टूट तो नहीं गया है.
  आज के दौर में हम यह देखने को मजबूर हैं कि यही बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो उनके लिए उनके ही मां-बाप बोझ बन जाते हैं.  दूसरे देशों की तरह हमारे देश में भी बुजुर्गों की तादाद बढ़ती जा रही है  और कुछ युवा ऐसे हैं जिन्होंने  मां बाप को अपने लिए बोझ समझ लिया. नतीजा यहा हो रहा है कि ये बुजुर्ग अपनी बची कुची जिंदगी आश्रमों के सहारे गुजरने पर मजबूर हैं.
ऐसे भी बुजुर्ग हैं जिनकी खुद की आमदनी है वह भी अपने घरों में बेटों की तरफ से किसी ना किसी परेशानी का शिकार हैं और कहीं कहीं बेटे बेटी मां बाप के साथ रहने को अपने खुशनसीबी समझने के बजाय हर वक्त इस बात की तिकड़म में लगे रहते हैं कि जो समपत्ति मां बाप के पास बुढ़ापे का सहारा के रूप में है उस पर भी कैसे कब्जा करें.
दर असल ऐसी स्थिति के लिए कोई एक व्यक्ति या परिवार के साथ साथ पूरा समाज दोषी भी है.  अगर हम एक अच्छे समाज को विकसित करें तो हमारी अगली पीढ़ियों में मां बाप के प्रति सम्मान की भावना भी विकसित हो गी.

By Editor