बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर ने पूरा जीवन गरीबों के उत्थान और साम्प्रदायिक सद्भाव में लगा दिया लेकिन सच्चाई यह भी है कि वह अपनी ही पार्टी कांग्रेस के नेताओं की साजिश के शिकार हुए. 18 मार्च 1918 को जन्मे गफूर के बारे में जानें.

अब्दुल गफूर: बिहार के एक मात्र मुस्लिम मुख्यमंत्री
अब्दुल गफूर: बिहार के एक मात्र मुस्लिम मुख्यमंत्री

उमर अशरफ

गफूर के कार्यकाल में ही तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या हुई और उन्हें के कार्यकाल में जेपी आंदोल हुआ. इन दो घटनाक्रमों के बाद उनकी पार्टी के कुछ नेताओं ने उन्हें पद से हटाने का खेल रचा और वे इस खेल में कामयाब रहे. वह बिहार के एक मात्र मुस्लिम नेता हैं जो राज्य के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे.

 

सियासी सफर

अब्दुल गफ़ूर बतौर मुख्यमंत्री 2 वर्षों तक रहे. वह 2 जुलाई 1973 से 11 अप्रैल 1975 तक बिहार के सीएम रहे। 1975 में तत्कालीन प्राधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी जगह जगन्नाथ मिश्रा को मुख्यमंत्री बनवा दिया. कहा जाता है कि गफूर के खिलाफ उनके ही दल में बड़ी साजिश की गयी जिसका उन्हें बखूबी एहसास था.  केदार पाण्डे और जगन्नाथ मिश्र के बीच अब्दुल गफ़ुर पीस कर रह गए पर उन्होने हार नही माना. 1984 मे कांग्रेस के टिकट पर सिवान से जीत कर सांसद बने और वे 1984 के राजीव गांधी सरकार  का अलग खेमा था.  वह इससे पहले  नगर विकास विभाग मंत्री भी रहे और फिर 1996 मे गोपालगंज से समता पार्टी के टिकट पर जीत कर संसद पहुचे.

 

अब्दुल गफ़ुर पहली बार 1952 मे बिहार विधान चुनाव मे जीत कर विधायक बने और वे बिहार विधान परिषद् के अध्यक्ष भी रहे.

18 मार्च 1918 मे बिहार के गोपालगंज ज़िला के सराए अख़तेयार के एक इज़्ज़तदार ख़ानदान मे पैदा हुए अब्दुल गफ़ुर बचपन से ही मुल्क के लिए कुछ करना चाहते थे. गोपालगंज से ही इबतदाई तालीम हासिल की फिर आगे पढ़ने के लिए पटना चले आए, पढने मे तेज़ तो थे ही इसलिए घर वालों ने अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी भेज दिया जहां से आपका सियासी सफ़र शुरु हुआ.

गफूर हिन्दुस्तान को आज़ाद कराने का जज़्बा लिए जंगे आज़ादी मे कूद पड़े जिस वजह कर सालो जेल मे रहना पड़ा. अब्दुल गफ़ूर ने जिन्ना की टु नेशन थेयोरी को ठुकरा दिया और अखंड भारत की तरफदारी की, फिर देश आज़ाद हुआ तो 1952 मे बिहार विधान चुनाव मे जीत कर विधायक बने फिर 2 जुलाई 1973 से 11 अप्रैल 1975 तक बिहार के सीएम रहे। केंद्र मे मंत्री भी बने फिर आखि़रकार लम्बी बिमारी से लड़ते हुए 10 जुलाई 2004 को पटना मे इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.

अब्दुल ग़फ़ूर को उनके गांव सराए अख़तेयार मे दफ़नाया गया। पटना मे अब्दुल ग़फ़ुर के नाम पर ना कोई कालेज दिखता है और ना ही कोई स्कूल , यहाँ तक के एक सड़क भी नहीं.

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