बिहार विधान मंडल का उच्‍च सदन यानी विधान परिषद को चेहरा तेजी से बदला है। विधान परिषद में शुरू से ही कुछ खा‍स जातियों का आधिपत्‍य रहा है। उस आधिपत्‍य को लालू यादव के राज में चुनौती मिलने लगी थी, लेकिन नीतीश कुमार के राज में आधिपत्‍य फिर मजबूत हो गया। विधान परिषद सदस्‍यों की संख्‍या 75 है। इन 75 में से 40 सीटों पर अभी भी चार जातियों का कब्‍जा है।bihar pols

वीरेंद्र यादव

 

वर्तमान विधान परिषद में चार जातियों का आधिपत्‍य स्‍पष्‍ट रूप से दिखता है। परिषद में 11-11 सदस्‍य यादव व राजपूत जाति के हैं, जबकि भूमिहार सदस्‍यों की संख्‍या 10  है। ब्राह्मण सदस्‍यों की संख्‍या 8 है। कुल मिलाकर इनकी संख्‍या 40 होती है। कुशवाहा सदस्‍यों की संख्‍या 6 और कायस्‍थों की संख्‍या 4 है। जातिवार 6 जातियों की संख्‍या 50 हो जाति है। कुर्मी जाति के दो सदस्‍य परिषद में हैं। शेष 23 सीटों पर अन्‍य जातियों का कब्‍जा है। बनिया वर्ग से 9 जातियां हैं। इसमें सभी अलग-अलग जातियों के हैं। यही हाल अत्‍यंत पिछड़ा वर्ग का है। इनकी संख्‍या भी सात है, लेकिन अलग-अगल जातियों के हैं। मुसलमानों के सदस्‍य 4 हैं और चारों अलग-अगल जाति के हैं। दलितों की तीन जातियों के तीन सदस्‍य परिषद में हैं।

 

पांच श्रेणी में बंटी सीट

विधान परिषद में पांच श्रेणी के सदस्‍य होते हैं। स्‍नातक और शिक्षक कोटे के तहत 6-6 सदस्‍यों का निर्वाचन होता है। स्‍थानीय प्राधिाकार कोटे के सदस्‍यों की संख्‍या 24 है, जबकि विधान सभा कोटे के सदस्‍यों की संख्‍या 27 है। 12 सदस्‍यों का मनोनयन राज्‍यपाल मुख्‍यमंत्री के परामर्श पर करते हैं। स्‍नातक,  शिक्षक और स्‍थानीय प्राधिकार कोटे के तहत आमतौर सवर्णों के साथ यादव बड़ी संख्‍या में चुने जाते रहे हैं। स्‍थानीय कोटे के तहत इस बार बनिया बडी संख्‍या में जीतकर आए हैं। विधान सभा और मनोनयन कोटा है,  जिसमें कमजोर व उपेक्षित वर्गों की संभावना दिखती है। उसमें भी जाति की राजनीतिक उपयोगिता का ध्‍यान रखा जाता है।

By Editor