पटना२६ मार्च। आधुनिक हिंदी की अन्यतम कवयित्री महीयसी महादेवी वर्माछायावादकाल की प्रमुख स्तम्भ हीं नहींकविता की महादेवी हैं। मैं नीर भरी दुःख की बदली” की इस अमर कवयित्री ने हिंदी काव्यसागर में गीतों की अनेक निर्झरनियाँ गिराईजिनका उद्गम उनका करुणा से भरा विशाल हृदय हीं था। उनके गीतों ने हज़ारोंलाखों आँखों के आँसू धोए हैं। उन गीतों ने जीवन में राग उत्पन्न करउल्लास और उत्साह के नए रंग और रस प्रदान क़िए हैं।

यह बातें आज यहाँबिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में महादेवी जयंती पर आयोजित समारोह व कविगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुएसम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा किमहादेवी के साहित्य मेंभारतीय महिलाओं की पीड़ा हीं नही लोकमंगल की कामनाएँ भी हैं। समारोह का उद्घाटन वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य ने किया।

इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुएसम्मेलन के साहित्य मंत्री डा शिववंश पांडेय ने कहा किमहादेवी जी ने हिंदी साहित्य की जो सेवा कीउसका संपूर्ण मूल्याँकन अभी भी शेष है। उनके बारे में भारत से अधिक विदेश में लिखा गया है। भारतीय आलोचकों को महादेवी के संबंध में नए आलोक में देखना चाहिए।

सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्तडा शंकर प्रसादडा मधु वर्मा तथा प्रो वासुकीनाथ झा ने भी अपने विचार व्यक्त क़िए।

इस अवसर पर आयोजित कविसम्मेलन का आरंभ कवि राज कुमार प्रेमी ने वाणीवंदना से किया। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र करुणेश‘ ने कहा कि, “मुझमें जो बह रही है आज तक वो इक नदीवो इसलिए किमुझमें मेरी प्यास साथ हैकरुणेश कड़ी धूप में तुम हो न अकेलेरस्ते में गमुहर है अमलतास साथ है। देवेंद्र देव ने जीवन के दर्शन को इन पंक्तियों में अभिव्यक्ति दी किअब देव‘ ख़ौफ़ मौत की दिल को नही रहाहँस देती ज़िंदगी हैमजारों को देखकर

मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति मेजर बलबीर सिंह भसीन‘ ने देशप्रेम की इन पंक्तियों से श्रोताओं की ख़ूब तालियाँ बटोरी कि, ” हिला सकते नहींसत्यनिष्ठादेश प्रेम के अंगद के पाँव कोकदाचारव्यभिचारअनाचार के रावण इस धरती के धरातल से। व्यंग्य के चर्चित कवि ओम् प्रकाश पांडेय प्रकाश‘ ने टूट रहे परिवार और बुज़ुर्गों की अवहेलना को शब्द देते हुए कहा कि, “ बिछी थी चादर जो मखमलीमाँ के लिएपड़ोसन कोपत्नी ने बुला कर बैठा दियारह गई माँ टुकुरटुकुर ताकती

अध्यक्षीय काव्यपाठ करते हुए डा सुलभ ने ज़िंदगी की जद्दोजहद को इन पंक्तियों में व्यक्त किया कि तड़प है की तलब है कि अभी ज़िद है बाक़ीयह दिल भी धड़कता है कि उम्मीद है बाक़ीवो जब से गए हैं दूरदेकर दीद हमेंतब से इन आँखों में कहाँ नींद है बाक़ी

सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्रकवि जय प्रकाश पुजारीडा केशव चंद्र तिवारीऋषिकेश पाठकडा सुधा सिन्हाबच्चा ठाकुरसुनील कुमार दूबेडा पुष्पा जमुआरअमियनाथ चटर्जीडा सीमा यादवशुभ चंद्र सिन्हाडा शालिनी पांडेयमासूमा खातूनसागरिका रायपूनम आनंदनिकहत आराकुमारी स्मृतिविश्वनाथ वर्मादेवेंद्र देवगौरी रानीअश्विनी कुमारपंकज प्रियमशुभ चंद्र सिन्हाडा आर प्रवेशप्राची झाइंद्र मोहन मिश्र महफ़िल‘, नंदिनी प्रनयअभिलाषा कुमारीविश्वरूपमडा बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त ने भी अपनी रचनाओं से कविसम्मेलन को अंत तक जीवंत और रोचक बनाए रखा। सम्मेलन के गत ३९वें महाधिवेशन में सम्मानितों में सम्मिलित पत्रकार साकिब खान को आज सम्मानित किया गया। वे बाहर रहने के कारण सम्मानसमारोह में उपस्थित नहीं हो पाए थे।

अतिथियों का स्वागत वरीय उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त नेधन्यवादज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने तथा मंच संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।

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