भारतीय पत्रकारिता जगत के जानेमाने वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर का निधन बुधवार की रात को दिल्ली के एस्कॉर्ट अस्पताल में हो गया. वे 95 वर्ष के थे. सूत्रों के मुताबिक, बृहस्पतिवार दोपहर 1 बजे लोधी घाट पर अंतिम संस्कार किया जाएगा। बताया जा रहा है कि कुलदीप नैयर पिछले चार दिनों से दिल्ली के अस्पताल में आईसीयू में भर्ती थे. वहीं, नैयर के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक जताया. ट्वीट के जरिये कहा- वह हमारे समय के सशक्त बौद्धिक व्यक्ति थे. वे निडर विचारों वाले थे. उन्होंने आपातकाल के दौरान अपनी आवाज बुलंदी से उठाई थी. देश उन्हें हमेशा याद करेगा. 

नौकरशाही डेस्‍क

वहीं, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट किया- ‘कुलदीप के निधन का समाचार सुनकर दुख हुआ. वे मशहूर लेखक-संपादक थे, साथ ही आपातकाल के दौरान लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ी। उनके पाठक उन्हें याद करेंगे. मालूम हो कि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में काम करने वाले कुलदीप नैयर ने राजनीति से लेकर भारत-पाकिस्तान रिश्ते तक में कई चर्चित किताबें लिखी हैं. इनमें उनकी आत्‍मकथा ‘Beyond the Lines’ प्रमुख है, जिसमें उन्‍होंने कई खुलासे किये. अंग्रेजी में लिखी आत्मकथा ‘Beyond the Lines’ में कुलदीप नैयर काफी साफगोई से तमाम वाकये बयां करते हैं. दरअसल, जब राजीव गांधी से मतभेद के कारण वीपी सिंह को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया तो उन्होंने राजीव गांधी से असंतुष्ट चल रहे आरिफ मोहम्मद खान और अरुण नेहरू के साथ 1987 में जन पार्टी का गठन किया.1988 में इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे.

फिर 11 अक्टूबर 1988 को जन पार्टी, जनता पार्टी और लोकदल में गठबंधन हुआ और  एक नई पार्टी जनता दल का गठन हुआ. जोड़-तोड़ के बाद वीपी सिंह जनता दल के अध्यक्ष बनने में सफल रहे.आखिरकार दो दिसंबर 1989 को जनता दल की सरकार बनने पर वीपी सिंह प्रधानमंत्री बनने में सफल रहे. इंदिरा गांधी ने जब आपातकाल लगाया था तो नैय्यर ने कड़ा विरोध किया था. 1975 से 1977 के बीच करीब 21 महीने तक विरोध प्रदर्शनों में शरीक हुए थे.इस दौरान मीसा के तहत जेल भी गए. तब नैयर उर्दू प्रेस रिपोर्टर थे. 1990 में वीपी सिंह सरकार में वह ग्रेट ब्रिटेन के उच्चायुक्त बने वहीं 1996 में संयुक्त राष्ट्र जाने वाले  भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य भी रहे.1997 में पहली बार नैयर राज्यसभा सदस्य पहुंचे.

बकौल नैयर-अगर मुझे अपनी जिन्‍दगी का कोई अहम मोड़ चुनना हो तो मैं इमरजेंसी के दौरान अपनी हिरासत को ऐसे ही एक मोड़ के रूप में देखना चाहूंगा, जब मेरी निर्दोषता को हमले का शिकार होना पड़ा था. कुलदीप नैयर ने अपने जीवनकाल में कई चर्चित पुस्तकें लिखीं. इसमें इंडिया हाउस(1992), इंडिया ऑफ्टर नेहरू(1975), डिस्टेंट नबर्सः ए टेल ऑफ सब कॉन्टिनेंट(1972), द जजमेंटःइनसाइड स्टोरी ऑफ इमरजेंसी इन इंडिया(1977), वाल एट वाघा-इंडिया पाकिस्तान रिलेशनशिप(2003) प्रमुख हैं. वे शांति और मानवाधिकारों को लेकर अपने रुख के लिए भी देश-दुनिया में जाने जाते थे.

 

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