ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर आज हुई सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने तीन तलाक पर 6 महीने की रोक लगा दी है. कोर्ट ने इस फैसले में ये भी जोड़ा कि  इसे रोकने के लिए सरकार कानून बनाए. हालांकि तलाक-ए-बिद्दत संविधान के आर्टिकल 14, 15, 21 और 25 का वॉयलेशन नहीं करता. वहीं, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आरएफ नरीमन ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताया.

नौकरशाही डेस्‍क

मंगलवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस खेहर ने ये भी कहा कि तीन तलाक पर सभी पार्टियां मिलकर फैसला लें. लेकिन मसले से राजनीति को दूर रखें. तलाक-ए-बिद्दत सुन्नी कम्युनिटी का अहम हिस्सा है.  ये परंपरा एक हजार साल से चली आ रही है. उल्‍लेखनीय है कि तीन तलाक महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है या नहीं, यह कानूनी रूप से जायज है या नहीं? इसे कोर्ट को तय करना था। वहीं, केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि वह तीन तलाक को जायज नहीं मानती और इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है. तो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा था कि वह सभी काजियों को एडवायजरी जारी करेगा कि वे तीन तलाक पर न सिर्फ महिलाओं की राय लें, बल्कि उसे निकाहनामे में शामिल भी करें.

बता दें कि फरवरी 2016 में उत्तराखंड की रहने वाली शायरा बानो (38) वो पहली महिला थीं, जिन्होंने ट्रिपल तलाक, बहुविवाह (polygamy) और निकाह हलाला पर बैन लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर किया था. शायरा को भी उनके पति ने तीन तलाक दिया था. उसके बाद मुस्लिम महिलाओं की ओर से 7 पिटीशन्स और दायर की गई थीं, जिनमें अलग से दायर की गई 5 रिट-पिटीशन भी हैं.

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