आदरणीय उप मुख्य मंत्री  सह पथ निर्माण मंत्री ! इस बात में संदेह नहीं कि आपकी सरकार ने गांधी सेतु के विकल्प के रूप में एशिया का सबसे बड़ा पीपा पुल रिकार्ड समय में बना डाला. जनता इसका भरपूर लाभ भी उठा रही है. बमुश्किल इस पुल की उम्र एक महीना हुई है. लेकिन इस छोटे से समय में यहां दो दर्दनाक एक्सिडेंट हो चुके हैं.

पीपा पुल मौत का पुल न बने! फोटो साभार हिंदुस्तान
पीपा पुल मौत का पुल न बने! फोटो साभार हिंदुस्तान

पहले एक्सिडेंट में बाइक सवार युवक की मौके पर ही मौत हुई थी. दूसरा हादसा रविवार शाम को हुआ. सुलतनागंज के तीन बाइक सवार- छोटू, सोनू और रवि हादसे का शिकार हुए. दो गंभीर रुप से घायल हैं.

 

मुझे पता नहीं कि उनकी जान बच सकेगी या नहीं. दुआ है सब सलामत बच निकलें. इस बात से मुझे इत्तेफाक है कि ज्यादातर एक्सिडेंट लापरवाही के कारण होते हैं. पर इस पीपा पुल की जो बनावट है, हादसे के लिए वह कम दोषी नहीं है. पुल की सड़क लोहे की है.इस पर पतली धारियां हैं. ये खुरदरी धारियां वाहनों के घर्षण से तेजी से चिकनी होती जा रही हैं. ऊपर से गंगा की रेत लोहे की इस सड़क हलकी परत के रूप में जमती जाती है. जो फिसलन को और घातक बनाती जा रही है. ऊपर जिक्र किये गये दोनों हादसों की जिम्मेदार लोहे की इस सड़क की फिसलन ही है. रविवार को बाइकर ने ब्रेक लगाया तो पिछला चक्का नाचता हुआ संतुलन खो बैठा. बाइक सवार तेजी से लहराता हुआ पुल के किनारे बने लोहे की दीवार से जा टकराया. मोटरसाइकल 20 मीटर तक घसीटती चली गयी. सनद रहे कि इस पुल पर यह दूसरी घटना है पर आखिरी नहीं.

दर असल पीपापुल की लोहे की सड़क हलके और सुस्त चलने वाले वाहनों के अनुकूल है. जैसे बैलगाड़ी, रिक्शा और तांगा वगैरह. लेकिन हमने इस पुल को गांधी सेतु के विक्लप के रूप में बनाया है जिस पर मोटर साइकिल और दीगर छोटे वाहन कमसे कम 50 की रफ्तार में चलते हैं.

 

इस पुल को सेफ बनाना ही होगा. वरना ऐसी दर्दनाक दुर्घटनाओं का लोग शिकार होते रहेंगे. इसे सुरक्षित बनाने के लिए तकनीकी विशेषज्ञों से राय ली जा सकती है. संभव है इस पर बालू व तारकोल के मिश्रण को बिछाने से इस सुरक्षित किया जा सकता है.

उम्मीद है सरकार बिना देर किये इस दिशा में कदम उठायेगी.

आपका

इर्शादुल हक,

सम्पादक नौकरशाही डॉट कॉम

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