आज प्रभात ख़बर के पटना संस्करण की पहली ख़बर है-‘ पटना में विधायक अनंत सिंह की 150 करोड़ की ज़मीन ‘। ख़बर में यह भी बताया गया है कि अलग-अलग टुकड़ों में ज़मीन की सारी ख़रीद 2006 से 2014 के बीच हुई है।

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शिवानंद तिवारी, समाजवादी नेता

अख़बार ने सिर्फ़ ज़मीन की क़ीमत बतायी है।इन पर मॉल या होटल आदि का जो निर्माण हुआ है उसकी लागत नहीं बताई गई है।स्मरण होगा कि नीतीश कुमार की सरकार 2005 के नवंबर में बनी थी।
लेकिन नीतीश कुमार लाजवाब नेता हैं। सबके बावजूद अपने को लोगों के समक्ष कैसे पेश करना है, इस कला में उनकी कोई सानी नहीं है।अंदाज ऐसा रहता है मानो इनके जैसा पावन और धवल व्यक्तित्व ने कभी राजनीति में इसके पहले क़दम नहीं रखा होगा। अपनी यह कला सिखाने के लिए अगर वे कोई स्कूल खोलें तो मुझे यक़ीन है कि उसमें नाम लिखवानें के लिए मारा-मारी होगी।

अनंत होने का मतलब


अब अनंत सिंह का ही मामला ले लीजिये ! हत्या के एक मामले में उनका नाम आया। ऐसे मामले में पहली दफ़ा उनका नाम आया हो, ऐसा भी नहीं है।लेकिन ऐन चुनाव के मौक़े पर वह भी महागठबंधन के आधार वोट वाले की हत्याका मामला था। लालू यादव तक बात पहुँची। वे भी सक्रिय हो गए। उन्होंने भी चाभी घुमाई।अब चुप रहना ख़तरे से ख़ाली नहीं था। नीतीश जी का एक तकिया-कलाम है, क़ानून अपना काम करेगा। क़ानून ने काम करना शुरू किया। अनंत सिंह के सरकारी आवास पर ज़ोरदार छापा पड़ा। तरह-तरह के हथियारों से लैश लगभग पाँच सौ पुलिस वालों ने उनके घर को घेर लिया। जिस ढंग से पुलिस ने वह कार्रवाई की उसीसे अनंत सिंह के दहशत और दबंगई का पता चलता है।लेकिन अनंत सिंह उस मामले में जेल नहीं भेजे गए जिसमें उनके यहाँ छापा पड़ा था और गिरफ़्तारी हुई थी। बताया गया कि उक्त हत्या में उनके विरूद्ध अभी कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं मिला है। इसलिए उनको सात-आठ माह पूर्व हुए एक अपहरण के मामले मे जेल भेजा गया है।उक्त अपहरण मामले में वे नामज़द अभियुक्त थे। उस समय भी यह मामला अख़बारों के सुर्खियों में था। बल्कि ख़बरों के मुताबिक़ तो तत्कालीन सीनियर एस पी ने ख़ुशामद करके उस अपहृत को छोड़वाया था।

नीतीश का तकिया कलाम


अब नीतीश जी से कौन पूछे-भइया, उस मामले अब तक आपका क़ानून क्या कर रहा था ? इतना ही नहीं अब तो 2006 से अब तक हत्या या हत्या की कोशिश के कई मामले सामने आ रहे हैं। जो ख़बरें छप रही हैं उनके मुताबिक़ तो प्राय: सभी मामलों में अनंत सिंह नामज़द अभियुक्त हैं।तो अब तक क्यों नहीं उनके विरूद्ध क़ानून अपना काम कर रहा था ? क्या सुशासन में क़ानून हमेशा जागृत नहीं रहता है ? कह सकते हैं कि सुशासन में क़ानून एकहत्थु हो जाता है। राजा के कहने पर ही वह जगता और सक्रिय होता है।और अनंत सिंह के मामले में वह सक्रिय हो चुका है।


अब तो अंदर खाने से ख़बर मिल रही है कि अनंत की भी हालत शहाबुद्दीन वाली होने जा रही है। बाक़ी बची ज़िन्दगी का अधिकांश हिस्सा जेल में ही कट जाय। अब शायद अनंत सिंह का जो इस्तेमाल हो सकता था, हो चुका है। फिर मौक़ा मिला और ज़रूरत हुई तो नए अनंत पैदा कर दिए जाएँगे !


बहुत पहले एक फ़िल्म देखी थी। ‘ पतंग ‘।संजय सहाय ने बनाई थी।गौतम घोष ने उसको निर्देशित किया था।बहुत ज़ोरदार फ़िल्म थी।रेलवे यार्ड मे सामान की चोरी होती थी। रेल के स्थानीय पुलिस अफ़सरों का उसमें हिस्सा होता था।उनमें से एक बहुत मनबढ़ु हो गया था। उसके कारनामों से स्थानीय पुलिस वालों की नौकरी ख़तरे में पड़ गई थी। उनलोगों ने तय किया कि इसका इनकाउंटर कर के अभी जान बचाई जाए। इसके बाद फिर दूसरा खड़ा कर लेंगे। अनंत सिंह के तमाशे को देखकर बहुत पहले देखी ‘पतंग’ की याद आ गई

By Editor