नीतीश की भविष्य की रणनीति और प्रशांत किशोर की भूमिका पर अभी चर्चा का बाजार गर्म है. आखिर क्या रणनीति है नीतीश की?

 

[author image=”http://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम[/author]

भारतीय राजनेताओं में नीतीश कुमार यूं तो एक ऐसे नेता हैं जिनके बारे में थाह लगाना कठिन है. और शायद इसी लिए लालू प्रसाद ने उनके बारे में कई बार कहा है कि ‘नीतीश के पेट में दांत है’. वह राजनीति में अकसर सधी हुई चाल चलते हैं. कम बोलते हैं. उतना ही बोलते हैं जितना बोल लेने से काम चल जाये. कई बार कुछ कहते हैं और कुछ छोड़ देते हैं और सामने वाले के लिए छोड़ देते हैं कि बाकी बातें वह खुद समझ जाये. जिस दिन चुनावी प्रोफेशनल  प्रशांत किशोर को उन्होंने जदयू की सदस्यता दिलाई उस से पहले उन्होंने मात्र यही कहा कि ‘वह  राजनीति की भविष्य की पीढ़ी हैं’.

 

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प्रशांत किशोर ने 2015 विधानसभा चुनाव में नीतीश के लिए चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी थामी थी. प्रशांत, नीतीश के लिए कितने सफल साबित हुए यह विवादित  है. क्योंकि लालू के साथ मिल कर बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद जदयू 70 सीट प्राप्त कर सका जबकि राजद को 80 सीटें मिलीं. लेकिन इस दौरान प्रशांत ने नीतीश कुमार पर अमिट छाप छोड़ी. नीतीश उनसे खासे प्रभावित हुए. चुनाव नतीजों के बाद नीतीश ने प्रशांत को मीडिया के समक्ष पेश किया. मीडिया के सामने यह प्रशांत की पहली सार्वजनिक उपस्थिति थी. अक्सर टी-शर्ट और जींस में रहने वाले प्रशांत उस दिन नेताओं के ड्रेस यानी कुर्ता पाजामा में थे. जानकार बताते हैं कि नीतीश ने इसके लिए प्रशांत को तैयार किया था कि वह कुर्ता पाजामा में आये. तब लोगों को यह आभास नहीं था कि नीतीश की रणनीति क्या है.

 

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2015 में सरकार गठन के बाद नीतीश ने मंत्रिमंडल का विस्तार किया. फिर एक बार अचानक खबर आई कि नीतीश ने, प्रशांत को अपना राजनीतिक सलाहकार मुकर्रर किया है. इतना ही नहीं उन्हें बिहार विकास मिशन का परामर्शी भी बनाया है. इसके लिए प्रशांत को कैबिनेट रैंक की सुविधायें देने की घोषणा भी की गयी. यानी बंगाला, गाड़ी सैलरी- सब कुछ. फिर प्रशांत तीन साल तक दृश्य से गायब रहे. समझा जाता है कि प्रशांत खुल कर सियासत में उतरना नहीं चाह रहे थे. लेकिन कुछ सूत्र बताते हैं कि केसी त्यागी को इस काम में लगाया गया था कि वह प्रशांत को राजी करें.

 

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अब सवाल यह है कि नीतीश क्यों प्रशांत को इतनी तरजीह देते हैं?  दर असल नीतीश अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं की तरह अपने बच्चों को सियासत में आगे करने वालों में से नहीं हैं. उनके बेटे निशांत अनेक बार कह चुके हैं कि उनकी दिलचस्पी सियासत में नहीं है. मुलायम ने राजनीति की विरासत अखिलेश को सौंप दी. लालू प्रसाद भी उसी राह पर चल चुके हैं. पर नीतीश की राजनीतिक शैली कुछ अलग है. इसलिए उन्हें पता है कि राजनीति की कमान अब अगली पीढ़ी को सौंपनी है. किसी भी दल या नेता के लिए यह अनिवार्य भी है कि वह अगली पीढ़ी तैयार करे. नीतीश 68 की उम्र पार कर चुके हैं. छह सात साल की सक्रियता के बाद उन्हें विश्राम चाहिए. इसलिए वह जहां एक तरफ नौकरशाह से नेता बने आरसीपी सिंह को आगे बढ़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ, आरसीपी के बाद वाली पीढ़ी को भी सामने लाना चाहते हैं. अगली पीढियों के हाथ में मशाल थमाना, दर असल खुद को और खुद की  विचार धारा को जीवित रखने के समान है.

ऐसा लगता है कि नीतीश अगली पीढी को कमान सौंपने के दौर से गुजर रहे हैं. इसमें एक पीढी आरसीपी सिंह की है तो दूसरी पीढ़ी का नेतृत्व करने वालों में से एक प्रशांत किशोर भी हो सकते हैं. प्रशांत की पीढ़ी पर कुछ और कहने से पहले यहां याद दिलाना उचित होगा कि कुछ दिनों पहले नीतीश ने कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष व कैबिनेट मंत्री रहे अशोक चौधरी को अपनी पार्टी में शामिल कर चुके हैं. कुछ करीबी सूत्र बताते हैं कि अशोक को जदयू में शामिल करते समय उन्हें कंविंस करने के लिए कहा था कि “अब मैं बूढ़ा हो रहा हूं.. जदयू को आप लोगों को ही संभालना है”. अशोक ने इस कथन में अपने लिए बहुत उज्जवल तस्वीर देखी थी. तभी तो एक राष्ट्रीय पार्टी के बड़े पद को छोड़ कर वह जदयू जैसे क्षेत्रीय दल का दामन थामने चले आये. कहा जाता है कि कुछ ऐसी ही बातें नीतीश की तरफ से राजद के प्रवक्ता रहे प्रगति मेहता को भी समझाई गयी थी. प्रगति पत्रकारिता से सियासत में आये थे. समझा जाता है कि नीतीश ने प्रशांत को भी कुछ इसी तरह समझाया होगा.

हालांकि इस थॉट से असहमति की पूरी गुंजाइश है. क्योंकि सोशल जस्टिस, न्याय के साथ विकास और नीतीश शैली की राजनीति का आधार पिछड़ा वर्ग तो है पर भविष्य में प्रशांत की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है. क्योंकि रणनीतिक स्तर पर प्रशांत के योगदान की संभवानाओं का नीतीश कुमार को बखूबी पता है. ऐसे में उन्हें संगठन में प्रभावशाली जगह तो मिल ही सकती है साथ ही हो सकता है कि उन्हें लोकसभा या राज्यसभा का टिकट भी पार्टी दे कर उनका कद बढ़ाये.

By Editor