भास्कर के इस खुलासे के बाद कि नरेंद्र मोदी के सूट की नीलामी में लगाई जाने वाली बोलियां पहले से तय थीं, अब मोदी और उनका नीला सूट फिर विवादों में आ गया है.

pic Curtsy newindianexpress.com
pic Curtsy newindianexpress.com

तबस्सुम फातिमा

चार करोड़ 31 लाख में सूट की नीलामी हो जाने के बावजूद नीले सूट को लेकर विवादों का सिलसिला अभी थमा नहीं है। जब बराक ओबामा दिल्ली आये तो उनके साथ नीले सूट में मोदी जी के इस सूट पर सभी का ध्यान था जिसने जल्द ही विवाद का रूप अख्तियार कर लिया। क्योंकि इस पर बारीक सुनहरी दारियों में नरेंद्र दामोदर दास मोदी लिखा ता और इसकी कीमत का अनुमान लगाते हुए बताया गया ता कि यह 10 लाख रुपये का हो सकता है. इस विवाद ने इतना तूल पकड़ा कि इसकी भरपाई के लिए मोदी के सलाहकारों ने उन्हें राय दी कि इसे नीलाम कर दिया जाये और नीलामी से प्राप्पत रुपये को ‘क्लीन गंगा फंड’  के हवाले कर दिया जाये.

बौखलाहट में गलत

लेकिन नीलामी में जो तरीके अपनाये गयो वह इतने शर्मनाक थे कि इससे और भी विवाद गहरा हो गया. हालांकि सलाहकारों द्वारा यह फैसला लिया गया कि भारतीय जनता के दिलों से कीमती सूट और इसे लेकर पैदा हुए संदेह के बीज को निकालना आवश्यक है। एक बार हिटलर ने अपने भाषण में कहा था कि ‘‘दुश्मन बौखलाकर गलतियां जरूर करता है।’’ त्रासदी यह कि इस बार बचाव के लिए बौखलाहट में जो तर्क मोदी सरकार द्वारा दिये जा रहे हैं, उसने आग में घी डालने का काम किया है। मोदी जी को मिले हुए कीमती उपहार के साथ सूट की नीलामी के किस्से को गंगा के स्वच्छता अभियान से जोड़ा गया। अब बनारस जाकर उन लोगों से पूछिए जिनके सामने लोकसभा चुनाव से पहले मोदी जी ने गंगा सपफाई को लेकर बड़े-बड़े बयानात दिए थे और ऐसा लग रहा था कि मोदी जी की जीत के साथ ही बनारस के बदनुमा और बेरंग हुए घाटों का नसीब बदल जाएगा। लेकिन सत्ता वेफ 9 महीनों में कभी ऊमा भारती कभी मोदी जी की बयानबाज़ी तो सामने आती रहीं लेकिन किसी ने गंगा घाट का रुख भी नहीं किया।

मोदी जी के कीमती सूट का विवाद आगे बढ़ा तो गुजरात के हीरा व्यापारी रमेश कुमार भाई अचानक प्रकट हुए और बयान दे डाला कि यह सूट तो उन्होंने मोदी जी को उपहार में दिया था। काश यह बयान वह  पहले देते तो इस पर विवाद ही नहीं गहराता.

राजनीति के चोर दरवाजे से रमेश भाई को एंट्री दिलाने से पहले क्या भाजपा के लोगों ने यह नहीं सोचा कि मोदी के बचाव के इस तरीके को भी जनता सिरे से खारिज कर देगी। समूचे विश्व के समाचार पत्रों ने मोदी जी के सूट पर सुनहरी अक्षरों में लिखे उनके नाम नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को भी निशाना बनाया है।

माओत्जेतुंग से मोदी तक

लीबिया के पूर्व तानाशाह मुअम्मर गद्दापफी के सफेद यूनिपफार्म पर सोने की कढ़ाई होती थी। गद्दाफी को नीला रंग पसंद था। कहते हैं माओत्जे तुंग सुंदर पोशाक के लिए बहुत सतर्क रहते थे। अगर वह नीला कपड़ा पहनते तो जनता को भी उनके नक्शेकदम पर चलना होता था। जर्मन नेता हिटलर और इटली के नेता मोसोलेनी की सेना का लिबास स्याह था। ये दोनों अपने कपड़ों पर विशेष ध्यान देते थे। उस ज़माने में हिटलर की मूंछों का अंदाज भी फैशन बन गया था। बदलते समय में राजनीतिज्ञों में लिबास को ले कर अलग दिखने की होड़ लगी है। 2010 में बंगलोर में एक फैशन शो हुआ जिसमें शो के प्रतिनिध्यिों ने विशिष्ट डिज़ाइन किए गए कपड़ों द्वारा राजनीतिज्ञों का ध्यान आकर्षित किया। कपड़ों को लेकर भारतीय प्रधनमंत्रियों की पसंद पर नजर डालें तो जवाहर लाल नेहरू, गुलजारी लाल नंदा, मोरारजी देसाई, वी.पी सिंह, नरसिंहा राव, मनमोहन सिंह की पहली पसंद शेरवानी थी। लाल बहादुर शास्त्री कुर्ता और धेती को बेहतर मानते थे। इंद्रिा गांधी को खादी की साड़ी ज्यादा पसंद थी। चंद्रशेखर का ध्यान कपड़ों पर कभी नहीं रहा। राजीव गांधी की शख्सियत आकर्षक थी। अंतिम दिनों में वह भी कुर्ते पायजामे में नज़र आने लगे थे। वाजपेयी जी भी सादगी पसंद थे। और अक्सर कुर्ते और धेती में होते थे। देवगोड़ा अपने स्थानीय कपड़ों में ही नजर आते थे।

फैशन के शौकमीन

नए फैशन की कल्पना में मोदी जी ने इन सभी प्रधनमंत्रियों की छुट्टी कर दी। लेकिन वह यह भूल गए कि भारत के लागों ने चर्चिल के उस आधनंगे पफकीर को पसंद किया था जो नंगे पैर गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए तत्कालीन 30 करोड़ जनता के साथ अकेले निकल पड़ा था। यह गांधी जी का ही व्यक्तित्व था जो जब दक्षिण अप्रफीका में थे तो थ्री पीस सूट में नजर आए। मगर जब स्वतंत्राता की लड़ाई लड़ने भारत आए, गांवों और शहरों में फैली हुई गरीबी को देखा तो स्वदेशी और स्वराज का नारा दिया। चर्खे पर खुद ही सूत कातते, कपड़ा बुनते और नंगे पांव लाखों की भीड़ के साथ पैदल ही स्वतंत्राता की मशाल उठा कर आगे बढ़ जाते।

सवाल यह है कि सोशल इंजीनियरिंग के हर क्षेत्रा पर गहरी नजर रखने वाले मोदी जी इस हकीकत को वैफसे भूल गए कि गांधी के  देश में उनके दस लाख के सूट और सूट से संबंध्ति सभी तरह की दलीलों को जनता खारिज नहीं करेगी? और वह सूट विवाद में घिरे हिटलर, मसोलिनी, गद्दाफी जैसे शासकों की पंक्ति में शामिल हो जाएंगे, इतिहास की पुस्तकों में आज भी जिनका नाम घमंडी तानाशाहों की सूची में दर्ज है.

By Editor

Comments are closed.