सार्वजनिक क्षेत्र की अठारह कंपनियों (पीएसयू) में बेतरतीब निवेश के कारण बिहार सरकार को पिछले तीन वर्ष में 1159.75 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। बिहार विधानसभा के पटल पर वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी ने 31 मार्च 2017 को समाप्त हुये वित्त वर्ष के लिए राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट पेश की जिसमें खुलासा हुआ है कि सार्वजनिक क्षेत्र की 16 कार्यशील एवं दो अकार्यशील कंपनियों में बेतरतीब निवेश करने से पिछले तीन साल में 1159.75 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है।


रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2014-15 से 2016-17 में 18 पीएसयू में किये गये निवेश पर औसतन 6.14 प्रतिशत का ऋणात्मक रिटर्न मिला है। इसका परिणाम है कि पिछले तीन वर्ष में किये गये निवेश पर बिहार सरकार को 1159.75 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। वहीं 56 अन्य पीएसयू का खाता तैयार नहीं होने के कारण उनका आंकलन नहीं किया जा सका है। सीएजी ने कहा कि निवेश पर लगातार हो रहे घाटे को देखते हुये बिहार सरकार को इसकी समीक्षा करनी चाहिए कि घाटे में चल रही इन कंपनियों को आगे चलाना है या उन्हें बंद कर देना चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक 31 दिसंबर 2017 तक वित्त वर्ष 2014-15 से 2016-17 के लिए किये गये आंकलन में पाया गया है कि 10 पीएसयू को 278.18 करोड़ रुपये का जहां लाभ हुआ वहीं सार्वजनिक क्षेत्र की सात कंपनियों को 1437.93 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है जबकि एक कंपनी को न तो लाभ हुआ और न ही घाटा। इस दौरान पीएसयू का कुल टर्नओवर 11277.70 करोड़ रुपये रहा।

सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में राज्य सरकार की कंपनियों बिहार राज्य पथ परिवहन निगम, बिहार राज्य खाद्य एवं आपूर्ति निगम, बिहार राज्य कृषि उद्योग विकास निगम और बिहार राज्य निर्माण निगम के लेखा-जोखा पर कोई भी विचार देने से इंकार किया है। वहीं रिपोर्ट में कंपनियों के टेंडर में अनियमितता बरते जाने का भी उल्लेख किया गया है।

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