देश के इतिहास में यह पहला अवसर है जब गुजरात में हत्या के आरोपी को डीजीपी बनाया गया है. एक पूर्व आईपीएस ने इस फैसले को इंसाफ की हत्या करार दिया है.

पीपी पांडेय
पीपी पांडेय

अल्पेश भट्ट

जून2004 का इशरत एनकाउंटर मामला कानूनी दांवपेच के स्तर पर है। इसी बीच गुजरात सरकार ने इस केस में आरोपित आईपीएस पीपी पांडे को गुजरात राज्य का पुलिस महानिदेशक (कार्यकारी) बना दिया है।

गुजरात सरकार के इस कदम को ‘सुपरकॉप’ जूलियो फ्रांसियो रिबेरो (86) ने गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती देकर एक नया ही मोर्चा खोल दिया है। अपील में कहा गया है कि – इशरत एनकाउंटर मामले में ट्रायल अभी बाकी है। ऐसे में इस नियुक्ति से गवाह बने पुलिसवाले प्रभावित हो सकते हैं। गवाह टूट सकते हैं।

 

चार लोगों की हत्या के षडयंत्र के आरोपी

पांडे पर चार लोगों को बंधक बनाकर रखने- उनकी हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने सहित अन्य आरोप हैं। ये नियुक्ति न्यायहित में ही लोकहित में। गुजरात के डीजीपी पी.सी. ठाकुर को नाटकीय ढंग से यकायक अप्रैल-2016 में दिल्ली प्रतिनियुक्ति पर भेजने का फरमान हुआ। नाटकीय इसलिए क्योंकि ठाकुर की सेवानिवृत्ति में सिर्फ सात महीने शेष हैं। वहीं दूसरी ओर पी.पी. पांडे को कार्यकारी डीजीपी बना दिया गया। पांडे की सेवानिवृति में सिर्फ नौ महीने शेष हैं।

 

पीपी पांडे को दो महीने की विदेश यात्रा पर जाने की इजाजत भी दे दी गई है। हालांकि कहा जा रहा है पांडे को कार्यकारी डीजीपी का प्रभार देने का कदम गुजरात सरकार ने चतुराई के साथ उठाया ताकि विवाद पैदा होने की स्थिति में सरकार फैसले में बदलाव कर सके। वापस ले सके।

1953 बैच के सेवानिवृत आईपीएस अधिकारी रिबेरो ने गुजरात हाईकोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में कहा है कि बंधक बनाकर चार लोगों की हत्या के मामले में जो व्यक्ति आरोपों का सामना कर रहा है, ऐसे व्यक्ति को पुलिस महकमे के सर्वोच्च पद डीजीपी पर कार्यकारी नियुक्ति देना न्याय की हत्या के समान है।

कानून का उल्लंघन करने वाला और सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों की अवहेलना करने वाला भी है। याचिका में कहा गया है कि सीबीआई द्वारा दाखिल आरोप-पत्र में कई पुलिस अधिकारियों के बयान हैं। अब पीपी पांडे को डीजीपी बनाए जाने की स्थिति में बयान देने वाले अधिकारी सीधे उनके अधीन जाएंगे। इस तरह तो पांडे उनके खिलाफ ट्रायल में गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं। सेवानिवृत अधिकारी भी डीजीपी के दबाव में सकते हैं।

महाराष्ट्र कैडर के सेवानिवृत आईपीएस रिबेरो पंजाब में जब आतंकवाद चरम पर था-अस्थिरता का दौर था, तब वह अपने सख्त तेवरों से काम करने के लिए ‘सुपरकॉप’ के रूप में पहचाने जाते हैं। उन्हें विशेष डीजीपी नियुक्त किया गया था। 1985 में गुजरात में दंगों के उन्हें गुजरात लाया गया था। महाराष्ट्र में भी अंडरवर्ल्ड के खिलाफ उनकी भूमिका सराहनीय रही।

सीबीआई द्वारा केस दर्ज किए जाने के बाद कुछ समय तक भूमिगत भी रहे हैं पीपी पांडे.

दैनिक भास्कर से

By Editor