प्रेस परिषद की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद अब बिहार में कोहराम की स्थिति बनती जा रही है.अखबारों की आजादी पर अंकुश लगाने के राज्य सरकार की कलई प्रेस परिषद द्वारा खोलने के बाद सामाजिक संगठनों का आंदोलन तेज होता जा रहा है.

बिहार: प्रेस पर पहरा, लोकतंत्र पर खतरा

शुक्रवार को बिहार नवनिर्माण मंच ने अखबारों की आजादी पर सरकार के पहरे के खिलाफ पूर्व सांसद उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में धरना दिया गया.

प्रेस फ्रीडम मार्च के बाद बिहार नवनिर्माण मंच ने राज्य सरकार के तानाशाही रवैये के खिलाफ हल्ला बोला.

इस अवसर पर बिहार नवनिर्माण मंच के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि मौजूदा राज्य सरकार ने इमर्जेंसी के दिनों से भी खतरनाक स्थिति पैदा कर दी है. आज तमाम अखबारों को सच लिखने से रोक दिया गया है.सच लिखने वाले पत्रकारों को नौकरियों से भी हटा दिया जाता है. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि प्रेस की आजादी पर खतरा लोकतंत्र पर खतरा है जो सरकार के नाजीवादी रवैये को दर्शाता है.

कुशवाहा ने कहा कि राज्य के पत्रकारों को मजबूर कर दिया गया है कि वह सच्चाई न लिखें.कुशवाहा ने कहा कि प्रेस काउंसिल की रिपोर्ट ने भी इस सच्चाई को उजागर कर दिया है कि राज्य सरकार ने विज्ञापन के लोभ में मीडिया घरानों से साठ गांठ कर प्रेस पर पूरी तरह अंकुश लगा चुकी है. उन्हेंने इसे लोकतंत्र के लिए कलंक बताते हुए कहा कि नवनिर्माण मंच पत्परकारिता और पत्त्करकारों की अभिव्यक्ति की आजादी के लिए हर लड़ाई लड़ने को तैयार है.

माले का प्रतिवाद मार्च

इधर सीपीआई माले के नेताओं ने भी शुक्रवार को पटना में प्रेस पर सरकारी अंकुश के खिलाफ प्रतिवाद मार्च निकाला. इस मार्च में माले कार्यकर्ताओं ने विचार की आजादी पर सरकार के अंकुश पर जोरदार हल्ला बोला. माले कार्यकर्ताओं ने इस अवसर पर सरकार के खिलाफ जम कर नारेबाजी की.

बिहार प्रेस फ्रीडम मूवमेंट का प्रोटेस्ट मार्च

इस अवसर पर पूर्व सांसद अरुण कुमार ने कहा कि मौजूदा सरकार लोकतंत्र को ध्वस्त करने पर आमादा है. आम जनता के सूचना की आजादी का गोला घोट दिया गया है.

इस अवसर पर पूर्व मंत्री लुतुफर्रहमान ने कहा कि प्रेस काउंसिल आफ इंडिया की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि नीतीश सरकार ने अखबारों की आजादी को छिन कर इमर्जेंसी के दिनों के काले अध्याय को फिर से जिंदा कर दिया है. ऐसे में राज्य सरकार के अंत की अब शुरूआत हो चुकी है. उन्होंने कहा जिस सरकार ने भी प्रेस की स्वतंत्रता को ध्वस्त कर तानाशाही स्थापित करने की कोशिश की है उसका हस्र बुरा हुआ है.

इससे एक दिन पहले बिहार प्रेस फ्रीडम मूवमेंट ने “प्रेस फ्रीडम मार्च” का आयोजन किया था.

इस मार्च में सरकार द्वारा प्रेस पर अघोषित सेंसर लगाने के खिलाफ दर्जनों पत्रकारों और सामाजिक कार्यता ने वरिष्ठ पत्रकार इर्शादुल हक के नेतृत्व में भाग लिया था. इस मार्च में बीबीसी के मणिकांत ठाकुर, एशियन एज के आनंद एसटी दास के अलावा वरिष्ठ पत्रकार निखिल आनंद, अनीश अंकुर, रुपेश और सामाजिक कार्यकर्ता कंचन बाला, प्रो. नवल किशोर चौधरी समेत दर्जनों पत्रकार शामलि हुए थे.

इस अवसर पर बड़ी संख्या में सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे.

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