जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुद्धिजीवियों को पसंद करते हैं। ऐसे बुद्धिजीवी फॉरेन रिटर्न हों तो सोने पे सुहागा। लेकिन फॉरेन रिटर्न बुद्धिजीवी बहुत लंबे समय तक नीतीश के साथ पाली नहीं खेल पाते हैं। संभव है कि ऐसे बुद्धिजीवी नीतीश से ज्यादा अपेक्षा पाल लेते हों और अपेक्षा पूरी नहीं होने पर उनका मोहभंग हो जाता हो। यह भी संभव हो सकता है कि वे नीतीश की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हों। दोनों पक्षों की व्यावसायिक प्रतिबद्धता भी वजह हो सकती है।

 वीरेंद्र यादव 


रोहतास जिले के रहने घनश्याम तिवारी नीतीश की टीम में शामिल होने वाले पहले फॉरेन रिटर्न बुद्धिजीवी थे। माना जाता है कि नीतीश की इमेज बिल्डिंग में बड़ी भूमिका का निर्वाह किया था। 2015 के विधान सभा चुनाव में उन्हें काराकाट से चुनाव लड़ाने का भरोसा भी दिलाया गया था, लेकिन टिकट नहीं मिला। बाद में पता चला कि घनश्याम तिवारी अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बन गये थे। एक और फॉरेन रिटर्न आये थे शाश्वत गौतम। चंपारण के कहीं के रहने वाले थे। उनको भी भ्रम हो गया था कि नीतीश के बाद वही पार्टी चला रहे हैं। लेकिन जल्द ही खुमारी उतरी और मोहभंग हो गया। अभी वह कांग्रेस से जुड़े हुए हैं। वे एआईसीसी के रिसर्च विभाग के समन्वयक बने हुए हैं।
फॉरेन रिटर्न में एक और नाम है प्रशांत किशोर का। लोग उन्हें पीके भी कहते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि 2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री और 2015 में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनवाया था। अब वे जदयू से जुड़े युवाओं को विधायक और मुखिया बनाने का ‘कारखाना’ चला रहे हैं। नीतीश कुमार से साथ पीके की दूसरी पारी है। 2015 में विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा वाला एक पद थमा दिया। लेकिन पद का आकर्षण भी उन्हें नहीं बांध पाया। वे कैबिनेट मंत्री की सुविधाओं का इस्तेमाल करते हुए अन्य प्रदेशों में दूसरी पार्टियों के लिए ‘ठेकेदारी’ कर रहे थे। उधर बढि़या दुकान नहीं जमी तो फिर नीतीश के 7 सकुर्लर रोड में वापस आ गये। इस बार राजनीतिक विश्लेषक नहीं, बल्कि पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनकर लौटे। हालांकि कोर्ट के आदेश के संदर्भ में सात नंबर उन्होंने छोड़ दिया है।
इधर हाल के बयान से लगता है कि पीके का भी नीतीश कुमार से मोहभंग होने लगा है। उनके बयानों से दूसरे पदाधिकारी कनी काट रहे हैं। अब देखना है कि विधायक और मुखिया बनाने का कारखाना चला रहे प्रशांत किशोर कितने महीने तक और जदयू को चलाते हैं।

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