पेट्रोल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में साढ़े पांच साल के निचले स्तर पर आ गयी है. क्या सरकार इसकी कीमत 44 रुपये 63 पैसे करके ‘बहुत हुई महंगायी की मार, अबकि बार मोदी सरकार’ के नारे पर अमल करेगी?petrol

 नौकरशाही डेस्क

इस अहम सवाल का व्यावहारिक पक्ष यह है कि मनमोहन सिंह तत्कालीन सरकार सरकार लगातार यह कहती रही कि पेट्रोल की कीमत को अंतरराष्ट्रीय बाजार के अनरूप बनाया जाना चाहिए. इसके लिए उसने पेट्रोल से सब्सिडी खत्म करने का फैसला किया. आज कई वर्षों से देश में पेट्रोल पर सब्सिडी खत्म है. ऐसे में यह लाजिमी सवाल है कि जब पेट्रोल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 60 डालर प्रति बैरल के स्तर पर आ गयी है, जो जुलाई 2009 में था. अगर पेट्रोल की कीमतों के आंकड़ों को देखें तो जुलाई 2009 में दिल्ली में पेट्रोल 44 रुपये 63 पैसे प्रति लीटर था.ऐसा में क्या वजह है कि मोदी सरकार पेट्रोल की कीमत कम नहीं कर रही है?

आपको याद होगा कि कोई एक महीना पहले आईओसी समेत अन्य तेल कम्पनियों ने पेट्रोल की कीमत लगभग डेढ़ रुपये प्रति लीटर कम करने की घोषणा की तो मोदी सरकार ने ठीक इतनी ही राशि का टैक्स पेट्रोल पर लाद दिया, नतीजा यह हुआ कि उपभोक्ताओं को इसका फायदा नहीं हुआ. इससे सालाना सरकारी खजाने में अतिरिक्त 40 हजार करोड़ रुपये आयेंगे.

भारत में पेट्रोल पर अलग-अलग तरह के सरचार्ज लादने की सरकारी पॉलिसी काफी पहले से चली आ रही है. याद कीजिए कि वाजपेयी सरकार ने जब स्वर्णिम चत्रभुज योजना के तहत देश भर में राजमार्गों का जाल बिछाने की घोषणा की तो सबसे पहला निशाना पेट्रोल की कीमतें ही बनी. सरकार ने पेट्रोल पर एक रुपये का सरचार्ज लाद दिया.

इसी प्रकार केंद्र और राज्य सरकारे अपने खजाने भरने के लिए पेट्रोल का ही सहारा लेती रही हैं और इसका बोझ जनता के सर पर लादती रही हैं. केंद्रीय करों में केवल एक्साइज ड्युटी के रूप में पेट्रोल पर केंद्र सरकार एक लीटर पर 14.35 रुपये हासिल करके अपने खजाने में भरती है. इसी प्रकार राज्य सरकारें 8 रुपये से 10 रुपये तक वैल्यु ऐडेड टैक्स यानी वैट के रुप में प्रति लीटर पेट्रोल पर प्राप्त करती हैं.

 

यह तर्क वाजिब है कि सरकारी खजाने भी देश की जनता के लिए ही उपयोग में लाये जाते हैं. लेकिन ऐसे समय में जब महांगाई आसमान छू रही हो, और इसके कारण लोगों की खरीद क्षमता इतनी कम हो चुकी है कि वे अपने लिए बुनियादी जरूरत की चीजें खरीदने में असक्षम हैं तो  ऐसे में उम्नीद की जानी चाहिए कि बहुत ‘हुई महंगाई की मार, अबकी बार मदी सरकार’के नारे से सत्ता में आई भाजपा को महंगायी कम करने के अपने वादे के तहत जनता के कांदों का बोझ कम करना चाहिए.तो क्या मोदी सरकार अपने वादे पूरे करेगी?

By Editor

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