कभी अपराधियों, चोरों और घोटालेबाजों के हाथों में हथकड़ी डालने वाले बिहार के पूर्व आईजी रामचंद्र खान को सीबाई अदालत ने घोटालेबाज घोषित करते हुए तीन साल के कैद की सजा सुना दी. यह खबर फैलती ही पुलिस महकमें में हड़क्म्प सा मच गया है.

रामचंद्र खाँ: अफसरी काम न आई

दर असल मामला यह है कि सीबीआई की विशेष अदालत ने तत्कालीन आईजी पुलिस रामचंद्र खाँ को वर्दी घोटाला में गुनाहगार पाते हुए उन्हें तीन साल के कारावास की सजा सुनाई है.

यह घटना तब कि है जब झारखंड बिहार का हिस्सा था. तब 1984 में बिहार पुलिस ने वर्दी खरीदने का ऐलान किया था. इस मामले में 44 लाख रुपये के घपले की खबर आय़ी थी. तब रामचंद्र खाँ आईजी बजट हुआ करते थे और उन्होंने ही वर्दी खरीद की अनुमति दी थी.

 

इसी के बावत वर्ष 1983-84 के बीच स्वीकृत दर से अधिक के रेट पर वर्दी की खरीदारी की गयी. उस दौरान रामचंद्र खां एआईजी बजट के पद पर तैनात थे. उन्होंने इस खरीद को मंजूरी दी थी. मामला सामने आने के बाद सरकार ने 1986 में जांच सीबीआई को सौंप दी. काफी समय तक जांच के बाद रामचंद्र खां सहित 9 लोगों को सीबीआई ने आरोपी बनाया था.

ये था मामला

बिहार में पहले सिपाहियों को वर्दी दी जाती थी। वर्दी की खरीद के लिए सेंट्रल पर्चेज कमेटी थी। 1980 के बाद बीएमपी के कमांडेंट स्तर के अफसरों को यह अधिकार दिया गया था कि अगर वर्दी की कमी हो तो वे अपने स्तर से भी बाजार से खरीद सकते हैं।

वर्ष 1983 से 84 के बीच ऐसी खरीदारी की गई जिसमें स्वीकृत दर से अधिक पर वर्दी की खरीद की गई थी। उस दौरान रामचंद्र खां एआईजी बजट के पद पर तैनात थे।उन्होंने इस खरीद को मंजूरी दी थी। मामला सामने आने के बाद सरकार ने 1986 में जांच सीबीआई को सौंप दी। काफी समय तक जांच के बाद रामचंद्र खां सहित 9 लोगों को सीबीआई ने आरोपी बनाया था।

सीबीआई ने भादवि की धारा 120 बी, 420 और 468 के तहत केस दर्ज किए थे। जांच में 34 लाख की हेराफेरी पकड़ी थी। सिर्फ दस लाख की ही वर्दी की खरीददारी के प्रमाण मिले। जबकि खरीद 44 लाख की दिखाई गई थी।

दो पूर्व डीजीपी बने थे गवाह

1983-84 में बिहार में वर्दी घोटाला हुआ था।
13 मार्च 1986 को बिहार सरकार ने सीबीआई जांच की अनुशंसा की थी।
1996 में चार्जशीट दायर। पूर्व आईजी रामचंद्र खां के खिलाफ बिहार के पूर्व डीजीपी एके पांडेय और झारखंड के पूर्व डीजीपी नेयाज अहमद ने गवाही दी थी।

 

 

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