वैसे तो यह सवाल काफी महत्वपूर्ण है कि बिहार के तत्कालीन नेताओं ने 4 मई के ऐतिहासिक दिन को गुमनामी के अंधकार में क्यों ढ़केल दिया था पर बिहार सरकार ने आखिरकार इस तारीख के महत्व को स्वीकार किया.

मोहम्मद युनूस का जयंती समारोह
मोहम्मद युनूस का जयंती समारोह

इर्शादुल हक

4 मई यानी आज बिहार के प्रथम प्रधान मंत्री की जयंती है.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2012 में घोषणा की थी कि बिहार के प्रथम प्रधान मंत्री की जयंती को बिहार सरकार राजकीय समारोह के तौर पर मनायेगी. इस बार बिहार सरकार ने बिहार के प्रथम प्रधान मंत्री मोहम्मद युनूस की जयंती समारोह का आयोजन पटना में किया.

प्रथम प्रिमियर

आगे बढ़ने से पहले हम अपनी याद ताजा करते चलें कि 4 मई 1884 को  बैरिस्टर मोहम्मद युनूस का जन्म हुआ था. गर्वमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट 1935 के तहत हुए प्रथम चुनाव के बाद मोहमम्मद युनूस बिहार के प्रिमियर चुने गये थे. ऐक्ट  के तहत इस पद को प्रिमियर कहा जाता था. जिसे हिंदी में प्रधान मंत्री लिखा जाता था.

युनूस ने अंग्रेजी शासनकाल में 1 अप्रैल 1937 को बिहार के प्रधानमंत्री का पद संभाला था. इससे पले अंग्रेजी हुकूमत देश के बीसों राज्यों की हुकूमत की बागडोर अपनी लेजिस्लेटिव कॉउंसिल के सहारे चलाती थी. तब कोई कैबिनेट भी नहीं हुआ करती थी.

इसबार यह दूसरा साल है जब मोहमम्मद युनूस की जयंती को बिहार सरकार ने राजकीय समारोह के रूप में मनाया है. चूंकि अभी लोकसभा के चुनाव हो रहे हैं इसलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी कैबिनेट के मंत्री इस समारोह में तो शामिल नहीं हुए लेकिन पटना के कमिशनर, डीएम समेत अनेक अधिकारी इस समारोह का हिस्सा बने. इस समारोह में मोहमम्द युनूस के परपोते कासिफ युनूस और उनकी बहन हुमा युनूस भी मौजूद थीं.

पटना हाई कोर्ट में वकालत करने वाले कासिफ युनूस बैरिस्टर मोहमम्द युनूस फाउंडेशन के चेयरमैन भी हैं. वह बताते हैं कि 13 मई 2012 को उनके फाउंडेशन ने  मोहम्मद युनूस साहब की पुणतिथि समारोह का आयोजन किया था. इस समारोह में खुद नीतीश कुमार मौजूद थे और उसी दिन उन्होने उनकी जयंती को राजकीय समारोह घोषित की थी.

1937 का चुनाव

मोहम्मद युनूस का जन्म 4 मई 1884 को पटना के पनहरा गांव में हुआ था. उनका देहांत 13 मई 1952 को हुआ था.

मोहम्मद युनूस ने उच्च शिक्षा इंग्लैंड से हासिल की थी. 1 अप्रैल 1937 से 19 जलाई 1937 तक बिहार के प्रिमियर रहे. युनूस मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी पार्लियामेंट्री बोर्ड के नेता था जबकि मौलाना सज्जाद ( इमारत शरिया के तत्कालीन महासचिव) इस पार्टी के अध्यक्ष थे. इस पार्टी ने 1937 में हुए पहले  चुनाव में जीत हासिल की थी.

यहां सवाल यह है कि 75 सालों तक बिहार की सरकारों ने अपने प्रथम मुख्यमंत्री( प्रिमियर) को गुमनामी की कोठरी में क्यों रखा? इसकी वजह राजनीतिक भी हो सकती है या कुछ और भी. पर हमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रशंसा करनी चाहिए कि उन्होंने मोहम्मद युनूस की जयंती को राजकीय समारोह के रूप में मनाने की घोषणा की और अपने अतीत और अपने इतिहास के एक विशेष पड़ाव के महत्व को स्वीकारा.

By Editor