वरिष्ठ कवि सिपाही पाण्डेय ‘मनमौजी’ के, राम-कथा पर आधारित भोजपुरी प्रबंध-काव्य, ‘भोजपुरी रामायण’ का लोकार्पण, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित एक समारोह में किया गया।sulabh

इस अवसर पर अपना उद्गार व्यक्त करते हुए, वरिष्ठ कवि सत्य नारायण ने कहा कि मनमौजी जी छंद के सिद्ध और सधे हुए कवि हैं। हिन्दी गीतों को समृद्ध करने में, भोजपुरी अंचल का बड़ा योगदान है। और इस हेतु मनमौजी और गहमरी जैसे प्रतिभाशाली कवियों के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

पुस्तक पर अपना मंतव्य देते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, भोजपुरी साहित्य में मनमौजी का यह महाकाव्य एक स्तुत्य रचना है। इसमें तुलसी दास के मानस की भांति चौपाई, दोहा, सोरठा जैसे छंदों का सुंदर प्रयोग है। कवि ने जिस प्रेम और श्रद्धाभाव से राधा और कृष्ण के लिए ‘बंसी शतक’ तथा ‘राधा के श्याम’ नामक ग्रंथ लिखे उसी भाव से राम के प्रति ‘भोजपुरी रामायण लिखा है।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, कविता अपनी ‘कवित्त-शक्ति’ से पहचानी और समाज में आदर पाती है। कवित्त-शक्ति कुछ और नही बल्कि कवि की कल्पना-शक्ति ही होती है। कवि की कल्पना-शक्ति का संबंध भाव से है और भाव को शक्ति, व्यापक अध्ययन और तपः-साधना से, मिलती है। कवि सिपाही पाण्डेय ‘मनमौजी’ कवित्त-शक्ति से संपन्न एक अत्यंत प्रतिभाशाली कवि और साधु-पुरुष हैं। भारतीय संस्कृति और मनीषा को सदियों-सहस्राब्दियों से प्राण देने वाले दो अवतारी पुरुषों ‘श्री राम’ और श्री कृष्ण’ न केवल इनके आराध्य, बल्कि इनके काव्य-संसार के मूलाधार भी हैं।

डा सुलभ ने कहा कि यों तो ‘राम चरित’ की विराट शक्ति स्वतः कवियों को अजस्र उर्जा प्रदान करती है, किंतु यदि इतना ही पर्याप्त होता तो वाल्मीकि और तुलसी भी आज हज़ारों में होते। लोकार्पित पुस्तक लोकभाषा भोजपुरी में लिखी गयी अत्यंत मूल्यवान कृति है। पुस्तक में कवि ने अपना हृदय निचोड़ कर रख डाला है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह पुस्तक अपनी लालित्यपूर्ण भाषा और कविताई के सम्मोहक गुणों के कारण पाठकों के बीच लोकप्रिय होगी और उन्हें लाभान्वित भी करेगी। आज भारतीय समाज फ़िर से ‘राम’ की, उनके पूर्ण सौंदर्य और वल के साथ, प्रतीक्षा कर रहा है।

अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त ने लोकार्पित पुस्तक को हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि में मूल्यवान कृति के रूप में स्वागत किया।

कृतज्ञता-ज्ञापन के क्रम में, कवि ने पुस्तक के कई मार्मिक-प्रसंगों से दोहे और चौपाइयों का सस्वर पाठ किया। यह एकल-पाठ का अविस्मरणीय अवसर की तरह था।

साहित्यसेवी व महामहिम राज्यपाल,बिहार के जन-संपर्क अधिकारी सुनील कुमार पाठक, डा वासुकी नाथ झा, डा कुमार मंगलम, कवि बच्चा ठाकुर, रवि घोष ने भी अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर,कवि गणेश झा, शंकर शरण मधुकर, सिद्धेश्वर प्रसाद, विश्वनाथ वर्मा, कृष्ण कन्हैया, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, आनंद किशोर मिश्र, कवयित्री सरोज तिवारी, विभा अजातशत्रु, बांके बिहार साव, अजय कुमार, प्रभात कुमार सिंह, मनोज कुमार मिश्र समेत बड़ी संख्या में साहित्यसेवी एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार बलभद्र कल्याण ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन आचार्य आनंद किशोर शास्त्री ने किया।

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