बिहार में महागठबंधन की नाकामी के बाद अब मुलायम उसमें फिर से जान फूकने में लग गये हैं. वह इस प्रयास से जहां भाजपा को नाथने में लगे हैं वहीं उनकी कोशिश है कि अखिलेश को हाशिये पर पहुंचा दिया जाये.mulayam

नौकरशाही ब्यूरो

मुलायम की यह कोशिश सफल होती भी दिख रही है.

 

इस बीच खबर है कि मुलायम के सिपहसालार शिवपाल यादव ने अजित सिंह और कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर से दिल्ली में मुलाकात की है. उधर नीतीश कुमार ने इस मामले में जिस तरह की प्रतिक्रिया दी है उससे लगता है कि वह भी महागठबंधन बनाने के पक्ष में हैं. नीतीश ने कहा कि “इसस पहले भी महागठबंधन की कोशिश हुई थी जो आगे नहीं बढ़ सकी लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह कोशिश अब नहीं की जानी चाहिए”.

महागठबंधन बनाने की इस कोशिश के पीछे मुलायम सिंह दो मुख्य बातों पर ध्यान दे रहे हैं. उनकी सबसे पहली कोशिश है कि तमाम समाजवादी दल एक साथ आ जायें ताकि भारतीय जनता पार्टी को रोका जा सके. दूसरा यह कि वह अखिलेश यादव के साथ जारी मनमुटाव के बाद यह मान के चल रहे हैं कि अखिलेश उनसे अलग ही रहेंगे. ऐसे में मुलायम चाहते हैं कि अखिलेश को हाशिये पर पहुंचा दिया जाये ताकि वह आगामी चुनाव में कोई खास चुनौती न पेश कर सकें.

मुलायम की इस कोशिश में लालू उनके साथ होंगे, यह तय है. उधर नीतीश कुमार ने इस मामले में जिस तरह की प्रतिक्रिया दी है उससे यह साफ हो गया है कि वह भी महागठबंधन के पक्ष में है.

 

यहां ध्यान देने की बात है कि बिहार विधानसभा चुनाव के पहले लालू, नीतीश, अजित सिंह और मुलायम ने गठबंधन बनाने की कोशिश की थी. लेकिन बाद में खुद मुलायम सिंह ने ही खुद को इस महागठबंधन से अलग कर लिया था जबकि कांग्रेस, जद यू और राजद ने एक साथ मिल कर चुनाव लड़ा था जिसका साकारात्मक परिणाम निकला और महागठबंधन को भारी जीत हासिल हुई थी.

 

पिछले दिनों शिवपाल यादव, अजित सिंह और कांग्रेस के लिए कंपेन कर रहे प्रशांत किशोर ने एक मीटिंग की है. प्रशांत, कांग्रेस हाई कमान के कहने पर ही इस मीटिंग में शामिल हुए. अगर उनकी यह मीटिंग सफल होती है तो इसका परिणाम 5 नवम्बर को दिख सकता है जब समाजवादी पार्टी अपने स्थापना का पचीसवां वर्षगांठ मनाने वाली है.

 

 

माना जा रहा है कि इस अवसर पर लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, अजित सिंह सरीखे अन्य समाजवादी नेता जुटेंगे. 5 नवम्बर के बाद अगर समाजवादियों का एक नया गठबंधन वजूद में आ जाये तो इस में कोई अचरज की बात नहीं है.

 

मुलाय की, इस गठबंधन के दवारा न सिर्फ भाजपा को मजबूत चुनौती पेश करने की स्ट्रैटजी है बल्कि, वह इस रणनीति के तहत अखिलेश यादव को हाशिये पर पहुंचा कर कमजोर करना चाह रहे हैं. उधर मुलायम के इस प्रयास के बाद अखिलेश यादव के सामने यह विकल्प बचेगा कि वह भाजपा के गठबंधन का हिस्सा बनें. वैसे भी अखिलेश के करीबी और विश्वस्त रणनीतिकार राम गोपाल यादव हैं जो भाजपा के निकट माने जा रहे हैं.

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