मुजफ्फरपुर के सरैया साम्प्रदायिक हमले के पहले, हमले के दौरान और फिर हमले के बाद यानी कदम-कदम पर कंस्पिरेसी रची गयी इसमें राजनीतिज्ञ से लेकर प्रशासन के कुछ अफसर तक के शामिल होने के आरोप हैं.

सुशील मोदी भी पहुंचे सांत्वना देने
सुशील मोदी भी पहुंचे सांत्वना देने

इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन

बीते दिन की रिपोर्ट में आपने इस साम्प्रदियक हमले के राजनितक एजेंड और सामाजिक स्वरूप की तह-ब-तह की परतों को पढ़ा. आज पढ़िये इस हमले के पहले, हमले के दौरान और फिर हमले के बाद की कंस्पिरेसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण थ्युरी को. हम यहां कंस्पिरेसी की नवीनतम थ्युरी को पहले दे रहे हैं.

कंस्पिरेसी थ्युरी-1

जब आप ये रिपोर्ट पढ़ रहे हैं तब तक अजीजपुर साम्प्रदायिक हमले का यह छठा दिन है. और इस की नवीतम कड़ी की सबसे बड़ी कंस्पिरेसी यह है कि उस हमले का सबसा बड़ा आरोपी पुलिस के चंगुल से फरार हो गया है. यह मुल्जिम, पुलिस के मुताबिक, तब भागा जब उसे कोर्ट में पेशी के लिए लाया जा रहा थ. इस आरोपी का नाम है बैजनाथ सहनी. आगे बढ़ने से पहले जान लीजिए कि बैजनाथ सहनी बहिलवारा उत्तरी के पूर्व मुखिया हैं. इतना ही नहीं इन पर आरोप यह भी है कि 18 जनवरी को हुए साम्प्रदायिक हमले का नेतृत्व कथित रूप से बैजनाथ सहनी ही कर रहे थे. बहिलवारा के एक सामाजिक कार्यकर्ता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि ‘यह तो हद है”.  इतना ही नहीं, वह यह भी कहते हैं कि “इंसाफ की उम्मीद अब नहीं बची”.बैजनाथ सहनी बड़े राजनीतिक रसूख वाले लोकल नेता माने जाते हैं. लोकल वोट पर जबर्दस्त पकड़ के कारण बड़े नेता उनको भाव देते हैं. वोट की राजनीति का यही रंग है कि उनके रिश्ते जितने प्रगाढ़ भाजपा के नेताओं से है उतने ही राजद के एक बड़े नेता से. इतना ही नहीं वर्तनमान राज्य सरकार के कुछ मंत्रियों के दिल में भी उनके लिए हमदर्दी है.

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कंस्पिरेसी थ्युरी-2

यह कंस्पिरेसी सबसे पहले रची जाने वालों में से एक है. और इसका जिक्र पहले भी मीडिया में आ चुका है और इसका नतीजा भी सामने आ चुका है. लेकिन यह इतना महत्वपूर्ण है कि इसका ताल्लुक 18 जनवरी के साम्प्रदायिक हमले से तो है ही, हमले के पहले भारतेंदु नामक युवक के अपहरण वो हत्या से भी है.9 जनवरी को भारतेंदु अपहरण की खबर सरैया पुलिस में इसकी खबर दी जाती है. लेकिन पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती. दो दिनों के बाद जनदबाव में झुकते हुए पुलिस ने 11 को अपहरण का केस दर्ज किया. लेकिन न तो आरोपी वसी अमहद और न ही उनके 20 वर्षीय बेटे विको को गिरफ्तार किया गया. पुलिस के बारे में जो आम राय है वह यही है कि पुलिस बिना लेन देन के आरोपी को बचा नहीं सकती. पर वसी अहमद गिरफ्तारी से बच गये. वह उस दिन भी गिरफ्तार नहीं हुआ जब साम्प्रदायिक हमला हुआ, बल्कि हमले के ठीक पहले निकल भागे. 18 को जनाक्रोश से झुकते हुए पुलिस ने पहली गिरफ्तारी वसी अहमद के बेटे विकी की की. प्रशास्निक स्तर पर यह कंस्पिरेसी न की गयी होती तो यकीन कीजिए कि 18 जनवरी की यह भयावह घटना होती ही नहीं.संतोष की बात यह है कि राज्य सरकार ने इस कंस्पिरेसी थ्युरी को समझा और सरैया के एसएचओ को निलंबित कर दिया है. लेकिन आरोप त्तकालीन डीएपी संजय कुमार पर भी है जिन्हें महज तबादला कर दिया गया. हालांकि मुख्यमंत्री मांझी कहते हैं कि जांच नतीजों क बाद कार्रवाई होगी. इंतजार कीजिए.

कंस्पिरेसी थ्युरी-3

जब 18 जनवरी को साम्प्रदायिक हमला शुरू हुआ और यह उत्पात लगातार चार घंटे तक जारी रहा. पहले मौका ए वारदात की तरफ डीएसपी संजय कुमार और सरैया के एसएचओ पुलिस बल के संग रवाना हुए. रास्ते में, जैसा कि आरोप लगाया जा रहा है एक एमएलए ने उन्हें रोका. डीएसपी को, हमले को विकराल बताते हुए डराया गया और कहा गया कि वहां जाना खतरे से खाली नहीं. फिर 45 मिनट के बाद एसएसपी रंजीत मिश्र और डीएम अनुपम कुमार पहुंचे. उन्हें भी यही कहा गया. इस बात के बारे में टेलिग्राफ ने 20 जनवरी के अंक में खबर छापी है जिसमें मुजफ्फरपुर के जोनल आईजी पारसना ने अपनी प्रतिक्रिया में कहां कि “हां उन्हें ऐसी खबर मिली और उसका सत्यापन किया जायेगा”. सवाल यह है कि एक आईपीएस स्तर का अफसर किसी बहकावे के शिकार कैसे हो गये. इस बात की जांच हो पायेगी, ऐसा कहना मुश्किल है. यहां जानकारी के लिए यह जानना उचित होगा कि एसएसपी रंजीत मिश्रा, राज्य के डीजीपी पीके ठाकुर के दामाद हैं.  हालांकि दामाद होना एक इत्तेफाक है.

आगे की बात

अब इस पूरे मामले में कुछ गंभीर प्रश्न हैं. मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने इस मामले की जांच की घोषणा की है. एसआईटी यानी स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम बनी है. मुजफ्फरपुर के एएसपी इसकी जांच करेंगे. लेकिन जिस तरह से एक आरोपी फरार हो गया. जिस तरह से इस मामले में वोट की सियासत का खेल चल रहा है, ऐसे में यह कह पाना आसान नहीं कि मामले की तहकीकात अपने नतीजे तक पहुंचेगी. सिर्फ बात भाजपा की नहीं है. वोट की सियासत हर दल कर रहे हैं. सत्ता से जुड़े दलों को वोट की चिंता ठीक उतनी ही है जितनी सत्ता के बाहर के दल को है. वैसे भी  राजनीतिक रूप से संवेदनशील हमलों या दंगों की जांच के नतीजे और मुजरिमों को सजा दिलाने का सरकारी रिकार्ड काफी निराशाजनक रहा है.

 

आखिरी किस्त में हम बात करेंगे भारतेंदु हत्या और अपहरण से जुड़ी पहेलियों की

By Editor

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