पर्सनल लॉ और मुस्लिम समस्याओं के प्रति मुख्याधारा के मीडिया के नकारात्मक रवैये से निपटने के लिए जमाएत ए इस्लामी ने पटना में  शनिवार को मुस्लिम पत्रकारों के साथ गंभीर विमर्श का आयोजन किया.

जमायत इस्लामी: पत्रकारों के साथ मंथन

इस अवसर पर कोई तीन दर्जन मुस्लिम पत्रकारों के साथ जमाएत इस्लामी के बिहार प्रमुख  नैयरुज्जमा व पटना इकाई के प्रमुख रिजवान अहमद ने तीन घंटे लम्बे विमर्श के दौरान यह बात उभर के सामने आयी की मुख्यधारा के मीडिया( हिंदी, अंग्रेजी) में पर्सनल लॉ से संबधित वास्तविक पक्ष  नहीं आ पाता जिस कारण समाज में गलफहमियां पैदा हुई हैं. इस अवसर पर पत्रकारों ने इस्लामी संगठन को यह राय दी कि उन्हें नियमित अंतराल पर मीडिया के समक्ष अपनी बातें रखनी चाहिए. हालांकि इस बात पर चिंता जतायी गयी कि मीडिया का बड़ा हिस्सा मुसलमानों की छवि को नकारात्मक रूप से पेश करता है.

हालांकि यह भी स्वीकार किया गया कि आज भी मीडिया में ऐसे पत्रकारों की संख्या काफी है जो वास्तविक और सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं, लिहाजा इस्लामी जमाएत को ऐसे पत्रकारों के साथ नियमित इंटरएक्शन करना चाहिए. दूसरी तरफ इस बात पर भी राय बनी कि मीडिया के समक्ष प्रभावशाली तरीके से बात रखने के लिए संगठन के प्रवक्ताओं को वर्कशाप के जरिये प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. इस अवसर पर कुछ वक्ताओं ने जमाएत को सुझाव दिया कि वह सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग करके भी अपनी बातें लाखों लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करे.

रैहान गनी ने सवाल उठाया कि मुस्लिम संगठों को सिर्फ मजहबी मामलों के बजाये सामाजिक समस्याओं पर भी शोध करना चाहिए और गैरमुस्लिम समाज की समस्याओं पर भी ध्यान देना चाहिए. इकबाल सबा ने जोर दिया कि मुसलमानों को बेवजह आक्रामक रवैया अपनाने के बजाये सकारात्मक मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए.  सईद अख्तर ने कहा कि मुद्दों की गहरी पकड़ के लिए अध्ययन जरूरी है लिहाजा मुसलमानों को हिंदुइज्म के तमाम पहलुओं को भी जानना चाहिए ताकि वे अपनी बात तर्कपूर्ण तरीके से रख सकें. अख्तर जावेद ने कहा कि हिंदी मीडिया के पत्रकारों को मुस्लिम मुद्दों पर उपुक्त फिडबैक नहीं मिल पाता इसलिए जमाएत को चाहिए कि वह अपनी बातें अखबारों के सम्पादकों के समक्ष ऱखें.

इस अवसर पर राशिद अहमद ने अपने विचार रखते हुए कहा कि यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी पत्रकारिता में ऐसे लोगों की काफी संख्या है जो ईमानदार लेखन करते हैं और यही वजह है कि मीडिया के नकारत्मक रवैये के बावजूद काफी पोजिटिव चीजें भी सामने आती रहती हैं.

इर्शादुल हक ने अपनी बातें रखते हुए कहा कि आज के दौर में मुख्यधारा के मीडिया पर निर्भरता कम हुई है क्योंकि आप अपनी बात सोशल मीडिया पर प्रभावशाली तरीके से रख सकते हैं. लिहाजा वैकल्पिक मीडिया का लाभ लिया जाना चाहिए.  इस अवसर पर अहमद जावेद ने कहा कि जहां मीडिया को समाजिक दबाव से संवेदनशील बनाने की कोशिश होनी चाहिए वहीं मुसलमानों को भी समझना चाहिए कि संवेदनशील मुद्दों पर वह गंभीरता से अपना पक्ष रखें. इस विमर्श में अख्तर जावेद, इमरान गनी, शीश अहमद, आजाद,  अफसर फरीदी, सिकंदर, जियाउल हसन, असद एजाज समेत अनेक पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने विचार रखे.

 

 

By Editor