एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार व बिहार के निवर्तमान गवर्नर रामनाथ कोविंद मुस्लिम व ईसाई दलितों के आरक्षण के घोर विरोधी रहे हैं.

उन्होंने 26 मार्च 2010 को भाजपा के प्रवक्ता की हैसियत से कहा था कि न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा की सिफारिशों को लागू नहीं किया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा की सिफारिशों में इस्लाम और ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों को अनुसूचित जाति में रखने की बात कही गई थी.

इतना ही नहीं कोविंद ने यहां तक कहा था कि इस्लाम और ईसाई धर्म भारत से बाहर के धर्म हैं. इसलिए उनके मतावलम्बियों में चाहे वे दलित ही क्यों न हों, अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए.

याद रहे कि जिस दिन कोविंद ने प्रेस कांफ्रेंस की थी उसके ठीक एख दिन पहले यानी 25 मार्च 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पिछड़े मुसलमानों को नौकरियों में चार फीसदी आरक्षण के आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले को बरकरार रखा था.

 

उस वक्त एक संवाददाता ने उनसे पूछा था कि फिर सिख और दलित उसी श्रेणी में आरक्षण का लाभ कैसे उठा सकते हैं? तो उन्होंने कहा था कि इस्लाम और ईसाई देश के लिए बाहरी धर्म हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 25 मार्च को दिए अपने फैसले में पिछड़े मुसलमानों को नौकरियों में चार फीसदी आरक्षण के आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले को बरकरार रखा था.

आरएसएस के विचारों से मजबूती से प्रभावित कोविंद ने कहा था कि मिश्रा कमेटी की सिफारिशों को लागू करना संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति श्रेणी में मुसलमानों तथा ईसाइयों को शामिल करना असंवैधानिक होगा. देश में केवल हिंदू, सिख और बौद्ध संप्रदाय में दलितों को आरक्षण मिलता है, जबकि मुस्लिम और ईसाई दलितों को आरक्षण की सुविधा से वंचित रखा गया है. हालांकि रंगनाथ मिश्रा ने सिफारिश की थी यह लाभ मुस्लिम और ईसाई दलितों को भी दिया जाना चाहिए.

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