क्या आप अपने राम को भूलने को तैयार हैं? आप भूलें या न भूलें लेकिन भाजपा उन्हें भूल कर महिषासुर की राजनीति पर छलांग लगा रही है. पूरा आलेख पढिए नवल शर्मा की जुबानी.
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क्या आप अपने राम को भूलने के लिए तैयार हैं ? आप अपने आराध्य को भूलने का पाप भले नहीं करें लेकिन बीजेपी उन्हें लगभग भूल चुकी है और अब उसके लिए रामलला से ज्यादा महत्वपूर्ण महिषासुर हो गया है . भगवान राम का जितना राजनीतिक दोहन हो सकता था बीजेपी ने कर लिया.

राममन्दिर के नाम पर उगाही के पैसे से आरएसएस के रामभक्तों के आलीशान बंगले बन गए , अपने राम पर सब कुछ न्योछावर करने का भाव रखनेवाली कितनी भारतमाताओं ने अपने जेवर और मंगलसूत्र तक दान कर दिए थे , वो सब इन रामभक्तों पर कुर्बान हो गए .

 

बीजेपी की नज़रों में आपके रामलला अब बूढ़े हो चुके , उनकी अब कोई उपयोगिता नहीं रही , बीजेपी की नज़रों में वे काठ की हांडी हो चुके जो दुबारा नहीं चढ़ेंगे. इसलिए अब कुछ नया चाहिए , कुछ ऐसा जो एक बार फिर आपको जगा दे , आपके मन में कुछ ऐसा भाव पैदा कर दे जो आपको बीजेपी की तरफ मोड़ दे . तो अब जो  धर्म की सियासी खिंचड़ी बनेगी उसकी रेसिपी बदल जाएगी . अब उसमें राम की जगह महिसासुर , अंध राष्ट्रवाद , रोहित वेमुला और जेएनयु सरीखे नए मसाले फेंटे जायेंगे , जीरा के रूप में  झूठी देशभक्ति का छौंक दिया जायेगा और सबसे ऊपर तिरंगा फहराया जायेगा .

इस बार लोकल नहीं बल्कि राष्ट्रीय मसालों का इस्तेमाल किया जायेगा . राजनीति में कभी इतनी तेजी से मुद्दे बदलते देखे हैं आपने ? लोकसभा चुनाव के पहले कालाधन , गरीबी और बेरोजगारी जैसे ऐसे मुद्दे भी उछाल मार रहे थे की लग रहा था बस अब दुखों के अंत का समय आ गया है .

 

कालाधन आएगा – सबके खाते में जमा होगा – महंगाई घटेगी – पेट्रोल डीजल सस्ता होगा , न जाने कितने वायदे . और आज ? इसके लिए मुझे गाली देने के बजाय यह सवाल उन नटवर नागर से पूछा जाना चाहिए कि कालाहांडी के सूखे पेटों को रोटी चाहिए या महिसासुर ? रोटी , रोजगार सब गायब हो गए इनके एजेंडे से . कोई चर्चा तक नहीं . जब मन किया तो कभी जनधन योजना की फुलझड़ी छोड़ दी कभी स्वछता अभियान की . अन्तराष्ट्रीय बाज़ार में तेल कितना सस्ता हो गया ! किसी को इस सस्तेपन का अहसास तक नहीं होने दिया और चुपके से कॉर्पोरेट और आयल सब्सिडी के नाम पर सारा पैसा अम्बानियों के साथ मिलकर कुरु कुरु स्वाहा ! अर्थव्यवस्था बदहाल और आम आदमी की पॉकेट फटेहाल . कैसे लोगों को विश्वास में रखा जाए , खासकर उस मध्यवर्ग को जिसने अपनी कठिनाइयों से मुक्ति की आशा में मोदीजी को हाथों हाथ लपका था .

 

लोग बिदक रहे , लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से गिर रहा , सरकार की भद पिट रही . तो बस मुद्दे को ही बदल दो . न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी . देश खतरे में है , तिरंगा खतरा में है , विश्वविद्यालयों में आतंकवाद बढ़ रहा है , भारत का राष्ट्रवाद खतरे में है . अब राष्ट्रवाद के सामने रोटी और रोजगार का सवाल कौन उठाएगा भला ! भारतमाता के सामने राधिका माता ( रोहित की माँ ) को कौन भाव देगा ! किस राष्ट्रद्रोही में हिम्मत है जो पूछ ले की मोदी जी मुझे भूख लगी है , घर में राशन नहीं है , नौकरी नहीं है , खेत में पानी नहीं है ……सारे सवाल बंद . पर ऐसा है क्या ? बिलकुल नहीं . राष्ट्रवाद सभी भारतीयों की रगों में बहता है पर बीजेपी जिस राष्ट्रवाद का प्रचार कर रही वह राष्ट्रवाद नहीं बल्कि अंध राष्ट्रवाद है , एक राजनीतिक हथियार है और इसका इस्तेमाल तब किया जाता है जब सारे हथियार चुक जाते हैं , जब लोग वर्तमान व्यवस्था से निराश हो चुके होते हैं . हिटलर ने भी यही किया था और परिणाम सबके सामने है . हिटलर भी यही प्रचार कर आया था की चुटकी बजाते ही सारी समस्याएं ख़त्म . समस्याएं तो जस की तस रहीं पर जर्मनी जरुर बर्बाद हो गया . अगर हिटलर नहीं होता तो शायद जर्मनी आज अमेरिका की जगह होता .

naval.sharmaलेखक जनता दल यू के प्रदेश प्रवक्ता हैं

 

 

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