राष्ट्रकवि पं माखनलाल चतुर्वेदी की १३१वीं जयंती पर साहित्य सम्मेलन ने दी काव्यांजलि 

पटना अप्रैल। देश के महान स्वतंत्रता सेनानीकवि और पत्रकार पं माखनलाल चतुर्वेदी सच्चे अर्थों में भारतीय आत्मा‘ थे। उन्हें यह महान संबोधन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने दिया था। वे जीवनपर्यन्त राष्ट्र और राष्ट्रभाषा के लिए संघर्ष रत रहे। स्वतंत्रतासंग्राम में उन्होंने जेल की यातनाएँ भी भोगी और हिंदी के प्रश्न पर भारत सरकार को पद्मभूषण समान‘ भी वापस कर दिया। वे एक वलिदानी राष्ट्रप्रेमी थे। उनके विपुल साहित्य के मूल मेंप्रेम और उत्सर्ग की भावना है। उनमें राष्ट्रप्रेम है,प्रकृतिप्रेम है और वह शाश्वत प्रेम भी है,जिसे मनुष्य का पाँचवाँ पुरुषार्थ कहा जाता है। पुष्प की अभिलाषा‘ का वह महान गीतकारजिसने कहा – “चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,–मुझे तोड़ लेना वनमालीउस पथ पर देना तुम फेंकमातृभूमि पर शीश चढ़ानें जिस पथ जाएँ वीर अनेक“, देश और देश के लिए मर मिटनेवाले लाँखों वीर सपूतों की अशेष प्रेरणा है।

यह बातें आज यहाँ साहित्य सम्मेलन में कवि की १३१वीं जयंती पर आयोजित समारोह व कविगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा किचतुर्वेदी जी अद्भूत प्रतिभा के कवि,पत्रकार और लेखक थे। उनकी प्रथम काव्यपुस्तक, ‘हिम किरीटिनी‘ के लिए,१९४३ में,उन्हें तबके श्रेष्ठतम साहित्यिक सम्मान, ‘देवपुरस्कारसे अलंकृत किया गया था। साहित्य अकादमी की ओर से हिंदी का प्रथम अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव भी उन्हें ही प्राप्त है। उनकी पुस्तकहिमतरंगिनी‘ के लिए यह पुरस्कार १९५४ में साहित्य अकादमी की स्थापना के बाद दिया गया था।

अतिथियों का स्वागत करते हुएसम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा किमाखन लाल जी हिन्दी के हित में हर प्रकार के वलिदान के लिए सदा तत्पर रहे। सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्तप्रो बासुकीनाथ नाथ झाअमियनाथ चटर्जी, कुमार अनुपम तथा अंबरीष कांत ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र की वाणी वंदना से हुआ। डा शंकर प्रसाद ने अपनी गजल को तर्रानुम से पढ़ते हुए कहा कि, “हर घड़ी बढ़ रही है बेचैनी/मेरे हिस्से में बेकली है अभी।” वरिष्ठ कवयित्री कालिन्दी त्रिवेदी ने इन पंक्तियों से उत्साह का सृजन किया कि, “आँधियाँ आएँ कि तूफ़ान आएप्रलयकारी झंझा हृदय को कँपाएकहासा घना छ्क्क रहाछाने देअडिग हो निडर आगे बढ़ाते रहें

व्यंग्य के कवि ओमप्रकाश पाण्डेयप्रकाश‘ ने सवाल किया कि, “कुर्सी के लिएकलंक कितने ढोओगे?माता को माराचलाचला पत्थरपत्थरों पर घसीटामन तब भी नहीं भरा तेराकवयित्री पूनम सिन्हा श्रेयसी ने दम तोड़ते बचपन की पीड़ा को ये शब्द दिए कि, “खाँसता हुआ बचपनघोलता हैममता की आँखों मेंहताशा के रंग/बचाती नहीं संभावना कि मिल सके मज़बूत लाठी का सहारा!”

कवि सुनील कुमार दूबे का कहना था कि, “नाम से तत्सम है लेकिनविदेशज सदा व्यवहार मेंबरबस दिखाई देता हैहिन्दी के रचनाकारों में। जय प्रकाश पुजारी ने गंगा की पीड़ा को इन शब्दों में व्यक्त किया कि, “क्या कहें,किससे कहेंअपनी राम कहानीजग की प्यास बुझाने वाली गंगा माँगे पानी

कवयित्री डा शालिनी पाण्डेयशुभ चंद्र सिन्हाडा एम के मधुमधुरेश नारायणराज कुमार प्रेमीसंजू शरण,अशमजा प्रियदर्शिनी,प्रभात कुमार धवन,महानंद शर्मासुनील कुमार उपाध्यायसच्चिदानंद सिन्हाउमा शंकर सिंहडा प्रणव परागअजय कुमार सिंह, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, पं गणेश झा, डा आर प्रवेशनेहाल कुमार सिंह निर्मल‘,राज किशोर झाबाँके बिहारी सावअर्जुन सिंहअनिल कुमार सिंह आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं से वातावरण में रस की वर्षा की। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश ने तथा धन्यवादज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

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