रिटायर हो चुके ढोबले के बारे में  एक कमिशनर ने कहा  ‘वह लार्जर देन लाइफ बन गया था, मुम्बई की मायें बच्चों से कहतीं सो जा बेटा वरना ढोबले आ जायेगा. जानिए कौन हैं यह.

वसंत ढोबले, फोटो नाभाटा
वसंत ढोबले, फोटो नाभाटा

सुनील मेहरोत्रा, मुम्बई से

 

फिल्म शोले के गब्बर की तरह तीन साल पहले मुंबई में एक डॉयलाग बहुत सुर्खियों में रहा था- बेटा सो जा, ढोबले आ जाएगा। मुंबई पुलिस का सबसे खौफनाक यह अधिकारी वसंत ढोबले शनिवार को पुलिस की नौकरी से रिटायर हो गया।

रिटायर होने से पहले ढोबले ने एनबीटी से कहा कि अपने 39 साल के पुलिस करियर में उन पर बहुत आरोप लगे, केस भी हुए, पर वह किसी से नहीं डरे। वह डरे, तो सिर्फ अपनी आत्मा से। डॉक्टर सत्यपाल सिंह जब मुंबई के पुलिस कमिश्नर बने थे, तो उन्होंने ढोबले के बारे में कहा था कि ‘वह लार्जर देन लाइफ बन गया था, इसलिए उस पर किसी का नियंत्रण नहीं था।’ ढोबले पर यह भी आरोप लगा था कि उन्होंने हमेशा कानून के दायरे से बाहर होकर काम किया। ढोबले भी इस बात से इनकार नहीं करते, पर उन्होंने इस संवाददाता से यह भी कहा कि ‘भले ही मैंने कानून के दायरे से बाहर काम किया, पर ऐक्शन हमेशा कानून के दायरे में लिया।’

केस हुआ, नौकरी छूटी, फिर जीते

ढोबले कहते हैं, ‘मैं 1976 बैच का पुलिस अधिकारी हूं। मुझ पर 118 केस हुए। पहला केस 1982 में दर्ज हुआ था और आखिरी केस से उन्हें 24 नवंबर, 2014 को मुक्ति मिली।’ ढोबले के अनुसार, ‘पुलिस हिरासत में हुई एक मौत के मामले में मुझे 1994 में गिरफ्तार कर लिया गया। मैं करीब एक सप्ताह तक आर्थर रोड जेल में भी रहा। मुझे उस दौरान नौकरी से भी निकाल दिया गया। पर मैं कभी डरा नहीं। उस केस में भी मैं सुप्रीम कोर्ट तक लड़ा और आखिरी में मुझे 1996 में वापस नौकरी में रख लिया। नौकरी में वापस आने के एक महीने बाद ही मैंने फिर एक बड़ी कार्रवाई की और आधा दर्जन बड़े आरोपियों पर एक साथ ऐक्शन लिया।’

डॉयरेक्ट कमिशनर को करते थे रिपोर्ट

ढोबले के बारे में कहा जाता है कि उन्हें अरुण पटनायक ने इंटरनैशनल शख्सियत बनाया और पूरी पावर दी। ढोबले ने उसी दौरान मुंबई के बीयर बारों में सबसे ज्यादा कार्रवाई की थी। पटनायक उन दिनों मुंबई के पुलिस कमिश्नर थे और ढोबले सिर्फ उन्हीं को रिपोर्ट करते थे। ढोबले पटनायक द्वारा उन्हें खुली पावर देने की बात को सिरे से खारिज करते हैं। उनके अनुसार, ‘पटनायक ने उन्हें एक दिन अपने केबिन बुलाया और कहा कि जो भी चीज तुम्हें इलीगल लगे, उस पर तुम लीगल ऐक्शन लो। उसके बाद मैंने जो-जो भी कार्रवाई की, इन कार्रवाइयों पर मुझ पर जो-जो भी आरोप लगे, पटनायक ने उस बारे में मुझसे कभी भी पूछताछ नहीं की।’ ढोबले पटनायक को रॉक स्टार मानते हैं, पर पटनायक के अलावा बतौर पुलिस कमिश्नर रिबेरो, राममूर्ति, आर डी त्यागी और रॉनी मेंडोसा की भी भरपूर तारीफ करते हैं। मेंडोसा के बारे में ढोबले कहते हैं, ‘वह शख्स पुलिस कमिश्नर होते हुए भी बेहद सादगी भरा रहा। कई केसों में सर्वश्रेष्ठ वकीलों की खोजबीन के लिए मेंडोसा अपनी गाड़ी से बत्ती उतरवा देते थे और फिर मुंबई के किसी भी टॉप वकील के यहां पहुंच जाते थे।’ ढोबले कहते हैं कि ‘मुझे पता नहीं क्या-क्या नाम दिए गए, किसी ने मुझे हॉकीमैन कहा, तो किसी ने स्टिक मैन, पर जो अवैध काम करते थे, उन्होंने ही मुझे ये नाम दिए। जो आम जनता है, वह जानती है कि मैं क्या हूं।’ ढोबले ने इस संबंध में 1992 का उदाहरण दिया, जब वे गोरेगांव पुलिस स्टेशन में थे, तो लोग उनसे मदद मांगने के वास्ते घंटों इंतजार करते थे।

रिटायर होने के बाद हर किसी पुलिस अधिकारी को उन पुराने केसों के संबंध में कोर्ट जाना पड़ता है, जिनमें या तो वह जांच अधिकारी है या जिन केसों में वह परोक्ष या अपरोक्ष रूप से जुड़ा रहा। रिटायरमेंट के बाद किसी भी पुलिस अधिकारी के पास ऐसे केसों की संख्या 20 से 25 या अधिक से अधिक 100 तक ही होती है, पर ढोबले को रिटायरमेंट के बाद करीब 1000 ऐसे केसों में ट्रॉयल के दौरान अपनी गवाही देनी पड़ेगी। इस पृष्ठभूमि से ही समझा जा सकता है कि ढोबले ने अपने पुलिस करियर में कितने केसों में ऐक्शन लिए।

साभार नवभारत टाइम्स

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