मेरे प्‍यारे देशवासियों,modi2

आजादी के इस पावन पर्व पर सवा सौ करोड़ देशवासियों को, विश्‍व में फैले हुए सभी भारतीयों को लाल किले की प्राचीर से बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

आजादी का यह पर्व, 70वां वर्ष एक नया संकल्‍प, नई उमंग, नई ऊर्जा, राष्‍ट्र को नई ऊंचाईयों पर ले जाने का संकल्‍प पर्व है। आज हम जो आजादी की सांस ले रहे हैं, उसके पीछे लक्ष्याव्धि महापुरूषों का बलिदान है, त्‍याग और तपस्‍या की गाथा है। जवानी में फांसी के फंदे को चूमने वाले वीरों की याद आती है। महात्‍मा गांधी, सरदार पटेल, पंडित नेहरू अनगिनत महापुरूष, जिन्‍होंने देश की आजादी के लिए अविरत संघर्ष किया और उसी का नतीजा है कि आज हमें स्‍वराज में आजादी की सांस लेने का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ है।

भारत एक चिर पुरातन राष्‍ट्र है। हजारों साल का इतिहास है, हजारों साल की सांस्‍कृतिक विरासत है। वेद से विवेकानंद तक, उपनिषद् से उपग्रह तक, सुदर्शन चक्रधारी मोहन से ले करके चरखाधारी मोहन तक, महाभारत के भीम से ले करके भीमराव तक, एक हमारी लम्‍बी इतिहास की यात्रा है, विरासत है। अनेक उतार-चढ़ाव इस धरती ने देखें हैं। अनेक पीढि़यों ने संघर्ष किया है। अनेक पीढि़यों ने मानवजाति को महामूल्‍य देने के लिए तपस्‍याएं की है।

भारत की उम्र 70 साल नहीं है, लेकिन गुलामी के कालखंड के बाद हमने जो आजादी पाई, एक नई व्‍यवस्‍था के तहत हमने देश को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। यह यात्रा 70 साल की है। सरदार वल्‍लभ भाई पटेल ने देश को एक किया, अब हम सबका दायित्‍व है देश को श्रेष्‍ठ बनाए। एक भारत, श्रेष्‍ठ भारत का सपना पूरा करने का हम लोगों को निरंतर प्रयास करना चाहिए।

जुल्म बेशुमार

 

भाइयों-बहनों स्‍वराज ऐसे नहीं मिला है। जुल्‍म बेशुमार थे, लेकिन संकल्‍प अडिग थे। हर हिंदुस्‍तानी आजादी के आंदोलन का सिपाही था। हरेक का जज्‍बा था, देश आजाद हो। हो सकता है हर किसी को बलिदान का सौभाग्‍य न मिला हो, हो सकता है हर किसी को जेल जाने का सौभाग्‍य न मिला हो, लेकिन हर हिंदुस्‍तानी संकल्‍पबद्ध था। महात्‍मा जी का नेतृत्‍व था, सशस्त्र क्रान्तिकारियों के बलिदान की प्रेरणा थी और तब जाकर के स्वराज प्राप्त हुआ है। लेकिन अब स्वराज्य (Self-Governance) को सुराज (Good-Governance) में बदलना, ये सवा सौ करोड़ देशवासियों का संकल्प है। अगर स्वराज बलिदान के बिना नहीं मिला है, तो सुराज भी त्याग के बिना, पुरुषार्थ के बिना, पराक्रम के बिना, समर्पण के बिना, अनुशासन के बिना संभव नहीं होता है और इसलिए सवा सौ करोड़ देशवासियों के सुराज (Good-Governance) के संकल्प को आगे बढ़ाने के लिए अपनी-अपनी विशेष जिम्मवारियों की ओर प्रतिबद्धता से आगे बढ़ना होगा।

पंचायत हो या Parliament हो, ग्राम प्रधान हो या प्रधानमंत्री हो, हर किसी को, हर Democratic Institution को सुराज्य (Good-Governance) की ओर आगे बढ़ने के लिए अपनी जिम्मेवारियों को निभाना होगा, अपनी जिम्मेवारियों को परिपूर्ण करना होगा और तब जा करके भारत सुराज के सपने को पाने में और अधिक देर नहीं करेगा।

 

 

ये बात सही है देश के सामने समस्याएं अनेक हैं, लेकिन ये हम न भूलें कि अगर समस्याएं हैं तो इस देश के पास सामर्थ्य भी है और जब हम सामर्थ्य की शक्ति को लेकर के चलते हैं, तो समस्याओं से समाधान के रास्ते भी मिल जाते हैं। और इसलिए भाइयों-बहनों, भारत के पास अगर लाखों समस्याएं हैं तो सवा सौ करोड़ मस्तिष्क भी हैं जो समस्याओं का समाधान करने का सामर्थ्य भी रखते हैं।

अपने काम का व्यौरा देने में हफ्ता भर बोलते रहना पड़ेगा

भाइयों-बहनों, एक समय था, हमारे यहां सरकारें आक्षेपों से घिरी रहती थीं, लेकिन अब वक्त बदल चुका है। आज सरकार आक्षेपों से घिरी नहीं है, लेकिन अपेक्षाओं से घिरी हुई है। और जब अपेक्षाओं से घिरी रहती है तब, ये इस बात का संकेत होता है कि जब आशा हो, भरोसा हो, उसी की कोख से अपेक्षाएं जन्म लेती हैं और अपेक्षाएं सुराज की ओर जाने की गति को तेज करती हैं, नए प्राण पूरती हैं और संकल्पों की पूर्ति नित्य, निरंतर होती रहती है। इसलिए मेरे भाइयों-बहनों हम लोगों के लिए इस सुराज की यात्रा.. आज जब मैं लालकिले की प्राचीर से आपसे बात कर रहा हूं तो बहुत स्वाभाविक है कि सरकार क्या कर रही है, देश के लिए क्या हो रहा है, देश के लिए क्या होना चाहिए, इन बातों की चर्चा होना बड़ा स्वाभाविक है। मैं भी बहुत बड़ा लंबा सरकार का कार्यकाज का हिसाब आपके सामने रख सकता हूं, बहुत सारी बातें आपके सामने प्रस्तुत कर सकता हूं।

दो साल के कार्यकाल में अनगिनत Initiatives, अनगिनत काम लेकिन अगर उसका ब्यौरा देने जाऊंगा मैं, तो पता नहीं हफ्ते भर मुझे लालकिले की प्राचीर से बोलते रहना पड़ेगा।

और इसलिए मैं उस मोह के बजाए आज, कार्य की नहीं, इस सरकार की कार्य-संस्कृति के प्रति आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। कभी-कभी कार्य का तो लेखा-जोखा करना सरल होता है, लेकिन कार्य-संस्कृति को, जब तक गहराई में न जाएं, जानना, समझना, पहचानना सामान्य मानव के लिए सरल नहीं होता है।

नीयत और निर्णय की बात

और इसलिए मेरे प्यारे भाइयों-बहनों, मेरे प्यारे देशवासियों, आज मैं सिर्फ नीति की नहीं, नीयत की भी और निर्णय की भी बात कर रहा हूं। भाइयों-बहनों, सिर्फ दिशा नहीं, एक व्यापक दृष्टिकोण का मसला है। सिर्फ रूपरेखा नहीं, ये रूपांतर का संकल्‍प है। ये लोक आकांक्षा, लोकतंत्र और लोकसमर्थन की त्रिवेणी धारा है। ये मति भी है ये सहमति भी है, ये गति भी है और प्रगति का अहसास भी है।

और इसलिए मेरे प्‍यारे देशवासियों, मैं आज जब सुराज्य की बात करता हूं तब सुराज का सीधा-सीधा मतलब है- हमारे देश के सामान्‍य से सामान्‍य मानव के जीवन में बदलाव लाना है। सुराज का मतलब है शासन सामान्‍य मानव के प्रति संवेदनशील हो, जिम्‍मेवार हो, और जन सामान्‍य के प्रति समर्पित हो। और तब जा करके Good Governance पर बल देना होता है, हर किसी के दायित्‍व को टटोलते रहना पड़ता है, responsibility और accountability ये उसकी जड़ में होनी चाहिए, वहीं से रस-कस प्राप्‍त होना चाहिए। और इसलिए भाइयो-बहनों, शासन संवेदनशील होना चाहिए।

सुविधायें

हमें याद है, कि वो भी एक दिन थे जब किसी बड़े अस्‍पताल में जाना हो तो कितने दिनों तक इंतजार करना पड़ता था। AIIMS में लोग आते थे, दो-दो, तीन-तीन दिन बिताते थे, तब जा करके कब उनको जांचा-परखा जाएगा उसका तय होता था। आज उन सारी व्‍यवस्‍थाओं को हम बदल पाएं हैं। Online registration होता है, Online डॉक्‍टर की appointment मिलती है, तय समय पर patient आए तो उसका काम शुरू हो जाता है। इतना ही नहीं, उसके सारे medical records भी उसको Online उपलब्‍ध होते हैं। और हम इसको आरोग्‍य के क्षेत्र में देशव्‍यापी culture के रूप में विकसित करना चाहते हैं। आज सरकार के बड़े-बड़े 40 से अधिक अस्‍पतालों में इस व्‍यवस्‍था को किया है लेकिन इसका मूलमंत्र शासन संवेदनशील होना चाहिए। भाइयो-बहनों, शासन उत्‍तरदायी होना चाहिए। अगर शासन उत्‍तरदायी नहीं होता है, तो जन सामान्‍य की समस्‍याएं ऐसे की ऐसे लटकी रहती हैं। बदलाव कैसे आता है, technology तो है, लेकिन एक समय था rail tickets…हिन्‍दुस्‍तान के सामान्‍य मानव को rail tickets से संबंध आता है, रेल से संबंध आता है, गरीबों का संबंध आता है। पहले आधुनिक technology से एक मिनट में सिर्फ दो हजार tickets निकल पाते थे, और वो भी जो उस जमाने में जिसने देखा होगा, वो चक्‍कर घूमता रहता था, पता नहीं कब website खुलेगी। आज मुझे संतोष के साथ कहना है कि आज एक मिनट में 15 हजार रेल टिकट मिलना संभव हो गया है।

एक Responsible Government सामान्‍य मानव की आवश्‍यकता और अपेक्षाओं के लिए किस प्रकार के कदम उठाती है, सरकार में जवाबदेही होनी चाहिए।

इंकम टेक्स से डर

सारे देश में एक वर्ग है, खास करके मध्‍यम वर्ग, उच्‍च-मध्‍यम वर्ग, उसको जब मिलो, कभी-कभी वो पुलिस से ज्‍यादा Income Tax वालों से परेशान हुआ करता है। ये स्थिति मुझे बदलनी है और मैं लगा हूं, बदल के रहूंगा। लेकिन एक समय था, जब सामान्‍य ईमानदार नागरिक अपना income-tax में पैसा देता था और बेचारा carefully दो रुपए ज्‍यादा ही दे देता था। उसको लगता था भई पीछे से कोई तकलीफ न हो। लेकिन एक बार सरकारी खजाने में धन आ गया तो refund लेने के लिए उसको चने चबाने पड़ते थे, सिफारिश लगानी पड़ती थी और महीनों तक नागरिक के हक का पैसा सरकारी खजाने से जाने में टालमटोल हुआ करता था। आज हमने online-refund देने की व्‍यवस्‍था की। हफ्ते-दो हफ्ते में, तीन हफ्तों में आज refund मिलना शुरू हो गया। जो आज मुझे टीवी पर सुनते होंगे, उनको भी यह बात ध्‍यान में आती होगी, हां भाई, मेरा refund तो सीधा-सीधा मुझे.. मैंने कोई application नहीं की, आ गया। तो यह उत्‍तरदायी, जवाबदेही ये सारे जो प्रयास होते हैं, उनका परिणाम है।

शासन में सुराज के लिए पारदर्शिता को बल देना उतना ही महत्‍वपूर्ण है। आप जानते हैं! आज समाज में पहले से एक विश्‍वव्‍यापी संपर्क संबंध धीरे-धीरे सहज बनता जा रहा है। मध्‍यम वर्ग के व्‍यक्‍ति अपना पासपोर्ट हो…पहला जमाना था साल में करीब 40 लाख – 50 लाख पासपोर्ट के लिए अर्जियां आती थी। आजकल दो-दो करोड़ लोग पासपोर्ट के लिए apply करते हैं। भाइयों-बहनों, पहले पासपोर्ट पाने में अगर सिफारिश नहीं है, तो चार-छह महीने तो यूं ही जांच-पड़ताल में चले जाते थे। हमने उस स्‍थिति को बदला और आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि करीब हफ्ते-दो हफ्ते में नागरिकों के हक में जो पासपोर्ट है, उसको पहुंचा दिया जाता है और पारदर्शिता, कोई सिफारिश की जरूरत नहीं, कोई टालमटोल की जरूरत नहीं। आज मैं कह सकता हूं कि सिर्फ 2015-16 में पौने दो करोड़ पासपोर्ट, इतने कम समय में देने का, हमने काम किया है।

 

नौकरी में इंटरव्‍यू

सुराज में, शासन में दक्षता भी होनी चाहिए, efficiency होनी चाहिए और इसलिए हमारे यहां पहले किसी company को अपना कोई कारखाना लगाना है, कारोबार करना है तो apply करते है। सिर्फ registration का काम था, वो देश के लिए कुछ करना चाहता था। लेकिन छह-छह महीने तो यूं ही निकल जाते थे। भाइयो-बहनों अगर दक्षता लाई जाए तो उसी सरकार, वो ही नियम, वो ही मुलाजिम, वो ही company registration का काम, आज 24 घंटे में करने के लिए सज्ज हो गए हैं और कर रहे हैं। अकेले पिछली जुलाई में 900 से ज्‍यादा ऐसे Registration का काम उन्‍होंने कर दिया।

भाइयो-बहनों सुराज के लिए सुशासन भी जरूरी है। Good governance भी जरूरी है और उस Good governance के लिए हमने जो कदम उठाए….मैंने पिछली बार यहां लाल किले से कहा था कि हम Group ‘c’ और Group ‘d’ सरकार के इन पदों को इंटरव्‍यू से बाहर कर देंगे। Merit के आधार पर उसको Job मिल जाएगा। हमने करीब-करीब 9,000 पद ऐसे खोज कर निकाले हैं और जिसमें हजारों-लाखों लोगों की भर्ती होनी है। अब इन 9,000 पदों पर कोई इंटरव्‍यू प्रक्रिया नहीं होगी। मेरे नौजवानों को इंटरव्‍यू देने के लिए खर्चा नहीं करना पड़ेगा, जाना नहीं पड़ेगा, सिफारिश की जरूरत नहीं पड़ेगी। भ्रष्‍टाचार और दलालों के लिए रास्‍ते बंद हो जाएंगे और इस काम को लागू कर दिया गया है।

भाइयो-बहनों, देश….एक समय था कि सरकार कोई योजना घोषित करे, सिर्फ इतना बता दे कि ये करेंगे। तो सामान्‍य मानव संतुष्‍ट हो जाता था। उसको लगता था चलिए अब होगा कुछ। एक समय आया जब योजना का drawing आए नहीं, तब तक लोग अपेक्षा करते थे भई बताओ, plan बताओ। फिर समय आया कि जरा बजट बताओ? लोग मांगते थे। आज 70 साल में देश का मन भी बदला है, वो योजनाओं की घोषणा से संतुष्‍ट नहीं होता है, plan दिखाने से संतुष्‍ट नहीं होता है, उसको budget provision कर दिया तो वो मानने को तैयार नहीं है। वो तब मानता है, जब धरती पर चीजें उतरती हैं, तब मानता है और धरती पर हम पुरानी रफ्तार से चीजों को नहीं उतार सकते। हमें अपनी काम की रफ्तार को तेज करना पड़ेगा, गति को और आगे बढ़ाना पड़ेगा, तब जा करके हम कहते हैं।

प्रतिदिन 100 किमी ग्रामीँ सड़क

हमारे देश में ग्रामीण सड़क…हर गांव के नागरिक की अपेक्षा रहती है कि उसको एक पक्‍की सड़क मिले। काम बहुत बड़ा है, अटल बिहारी वाजपेयी जी ने विशेष ध्‍यान दे करके इसको शुरु किया था। और बाद में भी सरकार ने इसको continue किया, आगे बढ़ाया। हमने उसमें गति देने का प्रयास किया है। पहले एक दिन में 70-75 किलोमीटर का ग्रामीण सड़क का काम हुआ करता था, आज उस रफ्तार को तेज करके हम प्रतिदिन 100 किलोमीटर की ओर ले गए हैं। ये गति आने वाले दिनों में सामान्‍य मानव की अपेक्षाओं को पूर्ण करेंगी।

हमारे देश में ऊर्जा और उसमें भी Renewable Energy इस पर हमारा बल है। एक समय था, जो हमारे देश में इतने सालों में आजादी के बाद wind energy में काम हुआ, पवन ऊर्जा में काम हुआ, पिछले एक साल के भीतर-भीतर करीब-करीब 40 प्रतिशत उसमें हमने वृद्धि की है, ये है उसकी गति का मायना। Solar Energy…पूरा विश्‍व Solar Energy की ओर बल दे रहा है। हमने 116% बढ़ोत्‍तरी की है। ये बहुत बड़ा, ये incremental change नहीं है, ये बहुत बड़ा high-jump है। हम चीजों को उसके quantum की दृष्टि से हम आगे बढ़ाना चाहते हैं। हमारे देश में हमारी सरकार बनने के पहले अगर ऊर्जा का उत्‍पादन है, तो ऊर्जा पहुंचाने के लिए transmission line भी चाहिए और अच्‍छी transmission line की व्‍यवस्‍था चाहिए। हमारी सरकार बनने के पहले के दो साल, हमारे पूर्व के दो साल, एक दिन में, एक साल में करीब 30-35 हजार कि.मी. Transmission line डाली जाती थी। आज मुझे संतोष के साथ कहना है कि आज ये काम करीब-करीब 50 हजार किलोमीटर. हमने पहुंचाया है। ये गति बढ़ाने का काम किया है। अगर पिछले 10 साल का Rail line commissioning की बात है और commissioning का मतलब होता है, ट्रेन चलने योग्‍य हो जाना, सारे trial पूरे हो जाना। पहले, 10 साल 1500 किलोमीटर का हिसाब था और आज मुझे दो साल में 3500 किलोमीटर का काम करने में हम सफल हुए है। ये गति को हम आगे बढ़ा रहे हैं।

डायरेक्ट बेनिफिट

 

भाइयों-बहनों आज आधार कार्ड को सरकारी योजनाओं के साथ जोड़ करके direct benefit के लिए जो भी leakages उसको रोक करके, काम करने पर हम बल दे रहे हैं। पहले की सरकार में, सरकारी योजनाओं को आधार से जोड़ने में करीब 4 करोड़ लोगों को जोड़ा जा पाया था। आज मुझे संतोष के साथ कहना है कि 4 करोड़ पर काम वहां हुआ था, आज हमने 70 करोड़ नागरिकों को आधार और सरकारी योजनाओं के साथ जोड़ने का काम पूरा कर दिया है और जो बाकी हैं उनको भी पूरा करने का काम चल रहा है।

हमारे यहां मध्‍यम वर्ग का मानव हो, सामान्‍य मानवी हो उसको आज जैसे कार घर में हो उसको प्रतिष्ठा का विषय माना जाता है। एक वक्‍त था कि घर में गैस का चूल्हा हो तो उसको एक standard माना जाता था समाज में एक status के रुप में माना जाता था। देश आजाद होने के 60 साल के दरम्यान, ये रसोई गैस करीब 14 करोड़ लोगों को 60 साल में मिला था। भाइयों-बहनों, मुझे बड़ा संतोष है कि एक तरफ 60 साल में 14 करोड़ रसोई गैस के connections और हमने 60 सप्ताह में चार करोड़ नए लोगों को रसोई गैस के connections दिए। कहां 60 साल के 14 करोड़ और कहां 60 सप्ताह के 4 करोड़। ये गति है जो सामान्य मानव की जिन्दगी में Quality of Life में आज बदलाव लाने के लिए संभव हुआ है।

1200 कानून निरस्त

हमने कानूनों के जंजालों की सफाई का भी काम आरंभ किया है। कानूनों का बोझ सरकार को भी, न्यायपालिका के लिए भी और नागरिक के लिए भी उलझनें पैदा करता रहता था। हमनें खोजबीन करके करीब 1700 ऐसे कानून निकाले हैं। पौने 1200 करीब already Parliament के द्वारा उसको निरस्त कर दिये हैं और बाकियों को भी निरस्त करने कि दिशा में जाकर के उस सफाई अभियान को भी हम चलाना चाहते हैं।

भाइयों-बहनों, कभी-कभी देश में एक स्वभाव बन गया था कि ये काम तो हो सकता है, ये काम तो नहीं हो सकता है। भई अभी तो नहीं होगा, कभी होगा तो पता नहीं। निराशा ये हमारा मिजाज बनता जा रहा था। इसको Breakthrough करना, शासन में ऊर्जा भरना और जब कोई सिद्धि दिखती है, तो उत्साह भी बढ़ता है, ऊर्जा भी बढ़ती है, संकल्प भी बड़ा Sharp हो जाता है और परिणाम भी निकट नजर आने लग जाते हैं।

 

खुले में शौच

भाइयों-बहनों, जब हमनें प्रधानमंत्री जनधन योजना, एक प्रकार से असम्भव काम था, असंभव काम था। इतने सालों से बैंक थी, सरकारें थीं, राष्ट्रीयकरण हो चुका था लेकिन सामान्य व्यक्ति देश की अर्थव्यवस्था मुख्यधारा का हिस्सा नहीं बन पाता था। भाइयों-बहनों, 21 करोड़ परिवारों को, 21 करोड़ नागरिकों को जनधन योजना में जोड़करके असंभव, संभव हुआ और ये असंभव को संभव ये सरकार के खजाने में, ये सरकार की Credit का विषय नहीं है, ये सवा सौ करोड़ देशवासियों ने किया है और इसलिए मैं इस काम को करने के लिए मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों का नमन करता हूं।

आज हिन्दुस्तान के गांवों में नारी गौरव का अभियान…उसका एक महत्वपूर्ण पहलू है। खुले में शौच बंद होना चाहिए, गांव में Toilet बनना चाहिए। पहली बार जब मुझे लालकिले की प्राचीर से आप सबके दर्शन करने का सौभाग्य मिला था। उस दिन मैंने अपनी भावना को व्यक्त किया था कि मेरा देश ऐसे कैसे हो सकता है। आज मैं कह सकता हूं कि इतने कम समय में हिन्दुस्तान के गांवों में दो करोड़ से ज्यादा शौचालय बन चुके हैं। 70 हजार से अधिक गांव आज खुले में शौच जाने की परम्परा से मुक्त हो चुके हैं। सामान्य जीवन में बदलाव लाने की दिशा में हम काम कर रहे हैं।

इसी लालकिले की प्राचीर से मैंने पिछले साल कहा था कि एक हजार दिन में हम उन 18 हजार गांवों में जहां बिजली नहीं पहुंची है…आजादी के 70 साल होने जा रहे हैं, उन्होंने अब तक बिजली नहीं देखी है। 18वीं शताब्दी में जीने के लिए वो मजबूर हुआ करते थे। हमने बीड़ा उठाया कि अब असंभव को संभव करने का संकल्प किया। और आज मुझे खुशी के साथ कहना है, हजार दिन में अभी तो आधे भी नहीं हुए हैं, आधे से भी काफी दूर है, उसके बाद भी 18 हजार गांवों में से दस हजार गांवों में आज बिजली पहुंच गई है। और मुझे बताया गया कि उनमें से कई गांव हैं, जो आज पहली बार टीवी पर ये भारत की आजादी के जश्न को वहां बैठे-बैठे देख रहे हैं। मैं उन गांवों को भी आज यहां से विशेष शुभकामनाएं देता हूं।

भाइयों-बहनों, आपको हैरानी होगी। दिल्ली से सिर्फ तीन घंटे की दूरी पर हम यात्रा करें, तो तीन घंटे लगेंगे, दिल्ली से तीन घंटे की दूरी पर हाथरस इलाके में एक गांव नगला-फटेला। ये नगला-फटेला, तीन घंटे लगते हैं पहुंचने में, तीन घंटे। लेकिन बिजली को पहुंचने में 70 साल लग गए मेरे भाइयों-बहनों 70 साल लग गए और इसलिए हम उन कामों पर, हम किस कार्य-संस्‍कृति से काम कर रहे हैं, इसका मैं परिचय करा रहा हूं।

भाइयों-बहनों, LED बल्‍ब विज्ञान में अनुसंधान करने वालों ने हर नागरिक की भलाई के लिए उसको विकसित किया। लेकिन भारत में साढ़े तीन सौ रुपये में LED बल्‍ब बिकता था। कौन खरीदेगा? और सरकार को भी लगता था कि भई ठीक है, यह तो हो गया तो हो गया, कोई काम करता होगा, बात ऐसे नहीं चलती। अगर LED बल्‍ब से हिंदुस्‍तान के सामान्‍य जीवन में बदलाव लाया जा सकता है, पर्यावरण में बदलाव लाया जा सकता है, भारत की अर्थव्‍यवस्‍था में सुधार लाया जा सकता है, तो फिर सरकार को उसमें कोशिश करनी चाहिए। सरकार का स्‍वभाव रहता है, जहां टांग न अड़ानी चाहिए, वहां अड़ा देता है और जहां अड़ानी चाहिए वहाँ नहीं अड़ाता, भाग जाता है। यह स्थिति, यह कार्य-संस्‍कृति बदलने का हमने प्रयास किया है और इसलिए साढ़े तीन सौ रुपये में बिकने वाला बल्‍ब, सरकारी intervention का परिणाम यह हुआ कि आज हम 50 रुपये में वो बल्‍ब बांट रहे हैं। कहां साढ़े तीन सौ और कहां पचास! मैं यह पूछना नहीं चाहता हूं कि यह रूपये कहां जाते थे, लेकिन 13 करोड़ बल्‍ब अब तक बांटे गए हैं। हमारे देश की राजनीति लोकरंजक बन गई है, लोकरंजक अर्थनीति ही बन चुकी है। अगर सरकारी खजाने से उसको हर बल्‍ब के पीछे तीन सौ रुपया दिया गया होता, तो वाह-वाही होती कि यह अच्‍छा प्रधानमंत्री है, हमारी जेब में तीन सौ रुपया डाल दिया। लेकिन हमने 50 रुपये में बल्‍ब दे करके उसके हजारों रुपये बचाने में मदद की है। 13 करोड़ बल्‍ब बंट चुके हैं। 77 करोड़ बल्‍ब बांटने का संकल्‍प है। और मैं आज देशवासियों को कहना चाहता हूं कि आप भी अपने घर में LED बल्‍ब लगाइये, सालभर का ढ़ाई सौ, तीन सौ, पांच सौ रुपया बचाइये और देश की ऊर्जा बचाइये, देश के पर्यावरण को बचाइये। जिस समय 77 करोड़ LED बल्‍ब लग जाएंगे, हिंदुस्‍तान की 20 हजार मेगावाट बिजली बच जाएगी और जब 20 हजार मेगावाट बिजली बचेगी, मतलब करीब-करीब सवा लाख करोड़ रुपया बच जाएगा। भाइयों-बहनों आप अपने घर में एक LED बल्‍ब लगा करके, देश के सवा लाख करोड़ रूपये बचा सकते हैं। 20 हजार मेगावट बिजली बचा करके, हम Global warming के खिलाफ लड़ाई लड़ सकते हैं। हम देश के पर्यावरण की रक्षा के प्रयासों में बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं और यह सामान्‍य मानव दे सकता है और इसलिए भाइयों-बहनों हमने उस दिशा में काम किया है।

असंभव को संभव किया

 

असंभव से संभव काम आपको मालूम है! हम ऊर्जा पर, Petroleum product पर, विश्‍व के अन्‍य देशों पर निर्भर हैं। और इसके कारण लम्‍बे काल के agreement हुए हैं, ताकि हमें लम्‍बे अरसे तक निश्चित दाम से चीजें मिलती रहीं। Qatar के साथ, गैस का हमारा agreement 2024 तक का है। लेकिन दाम इतने है कि हमें भारत की अर्थव्‍यवस्‍था के लिए महंगा पड़ रहा है। हमारी विदेश नीति के संबंधों का परिणाम यह आया कि Qatar के साथ फिर बात की, जो agreement हो चुका था, जो Qatar का हक था 2024 तक हम उस भाव से गैस लेने के लिए बंधे हुए थे, हमने उनसे वार्ता की और मैं आज संतोष के साथ कहता हूं, असंभव भी संभव हो गया और उन्‍होंने अपने दाम को re-negotiate किया और हिंदुस्‍तान के खजाने से 20 हजार करोड़ रुपया बच जाएगा। 20 हजार करोड़ रुपया वो लेने के हकदार थे, लेकिन हमारे संबंधों का रूप बड़ा है, हमारी नीतियों का स्‍वरूप बड़ा है कि जिसके कारण हम उसको कर पाए हैं।

चाबहार का port जो मध्‍य एशिया के साथ जोड़ने की एक अहम कड़ी है सब सरकारों में लगातार बातें होती रहीं, पुन: प्रयास होते रहे। आज मुझे असंभव कार्य को संभव करते देख संतोष हो रहा, जब ईरान, अफ़गनिस्‍तान और हिंदुस्‍तान मिल करके चाबहार port के निर्माण के लिए कदम उठाने की दिशा में नवकर योजना के साथ आगे बढ़ते हैं तब असंभव काम संभव हो जाता है।

 

महंगायी

मेरे भाइयों-बहनों, एक बात जिसको इस समय मैं आपसे कहना चाहूंगा, जो सामान्य मानव से जुड़ी हुई है, वो है महंगाई। ये बात सही है कि पहले की सरकार में Inflation rate 10 प्रतिशत को भी पार कर गया था। हमारे लगातार कदमों के कारण Inflation rate हमने 6 percent से ऊपर जाने नहीं दिया है। इतना ही नहीं अभी तो हमने रिजर्व बैंक के साथ समझौता किया है कि 4% two -plus(+2)- minus(-2) के साथ, Inflation को control करने की दिशा में रिजर्व बैंक कदम उठाए। Inflation और Growth के balance की जो चर्चाएं होती थी, उस से ऊपर उठकर के आगे आने की दिशा में काम करे लेकिन इसके बावजूद भी, 2 साल देश में अकाल रहा, सब्जियों के दाम पर अकाल का प्रभाव तुरंत होता है, मार्केट की कमी का प्रभाव होता है। उसके कारण कुछ दिक्कतें जरूर आईं। 2 साल के अकाल के कारण दाल के उत्पादन की गिरावट भी चिंता का विषय़ बना। लेकिन भाइयों-बहनों, इसके बावजूद भी अगर जिस प्रकार से पहले महंगाई बढ़ती थी अगर उसी रफ्तार से बढ़ी होती, तो पता नहीं मेरे देश के गरीब का क्या होता, इसको रोकने में हमने भरपूर कोशिश की है लेकिन फिर भी, ये सरकार अपेक्षाओं से घिरी सरकार है। आप की मेरे देशवासियों, अपेक्षाएं स्वाभाविक हैं लेकिन मैं उस दिशा में प्रयत्न करने में कोई कोताही बरतने नहीं दूंगा। जितना प्रयास मुझसे होगा, मैं करता रहूंगा और गरीब की थाली को महंगी नहीं होने दूंगा।

मेरे प्यारे भाइयों-बहनों, ये देश गुरू गोबिंद सिंह जी की 350वीं जयंती मनाने की तैयारी कर रहा है। देश के लिए बलिदान की गाथा, सिक्ख गुरुओं की परंपरा, ये देश कैसे भूल सकता है और जब गुरू गोबिंद सिंह जी की 350वीं जयंती हम मना रहे हैं तब, गुरू गोबिंद सिंह जी ने एक बात बड़े अच्छे ढंग से कही थी, गुरू गोबिंद सिंह जी कहते थे जिस हाथ ने कभी सेवा न की हो, जिस हाथ में कभी कोई काम न हुआ हो, जो हाथ मजदूरी से मजबूत न हुए हो, जिन हाथों को काम करते-करते, हाथ में गाठें न बन गई हों, उस हाथ को मैं पवित्र हाथ कैसे मान सकता हूं, ये गुरू गोबिंद सिंह जी कहते थे। आज जब गुरु गोबिंद सिंह जी की 350वीं जयंती हम मना रहे हैं तब, मैं मेरे किसानों को याद करता हूं, उनसे बढ़कर पवित्र हाथ किसका हो सकता है? उससे बढ़कर पवित्र हृदय किसका हो सकता है? उसके बिना पवित्र मकसद किसका हो सकता है? मैं मेरे किसान भाइयों को 2 साल के अकाल के बावजूद भी, देश के अन्न के भंडार भरने के लिए उन्होंने जो निरंतर प्रयास किया, उसके लिए मैं उनका अभिनंदन करता हूं।

सूखे की स्थिति बदली, इस बार वर्षा अच्छी हो रही है, कहीं-कहीं पर अधिक वर्षा के कारण तकलीफ भी हुई है। जिन राज्यों को, जिन नागरिकों को तकलीफ हुई है, भारत सरकार संकट के समय पूरी तरह उनके साथ है। लेकिन मेरे किसान भाइयों को आज मैं विशेष रूप से अभिनंदन करना चाहता हूं, जब हमारे देश में दलहन की कमी महसूस कर रहे हैं, हमारा किसान दूसरे crop पर चला गया था, लेकिन जहां भारत के सामान्य मानव की दाल की मांग बढ़ी, आज मुझे संतोष के साथ कहना है कि इस बार बुआई में मेरे किसानों ने दाल की बुआई डेढ़ गुना कर दी है, दाल के संकट को मिटाने के लिए, उससे रास्ता खोजने में मेरा किसान आगे आया है। और मैं किसान का अभिनंदन करता हूं हमने दाल के लिए MSP तय किया है। हमने दाल के लिए बोनस निकाला है। हमने दाल के द्वारा उसको purchase करने की व्‍यवस्‍था का सुप्रबंधन किया है। और इसलिए अब किसान को दाल के लिए भी हम प्रोत्‍साहित कर रहे हैं और उसका लाभ भी बहुत बड़ा होगा।

भाइयो-बहनों, मैं जब कार्य-संस्‍कृति की बात कर रहा था, तो ये बात साफ है कि हम चीजों को टुकड़ों में नहीं देखते हैं। हम चीजों को एक समग्रता में देखते हैं, integrated देखते हैं, और integrated चीजों के तहत, सिर्फ agriculture ले लीजिए, हमने किस प्रकार से ऐसी कार्य-संस्‍कृति को विकसित किया है, जिसकी एक पूरी chain कितना बड़ा परिणाम दे सकती है।

 

धरती मां की तबियत

हमने सबसे पहले ध्‍यान केन्द्रित किया इस धरती माता की तबीयत के लिए, जमीन की सेहत के लिए, Soil Health Card, macro-nutrition, micro-nutrition की चिन्‍ता और किसान को ये समझाया कि तुम्‍हारी जमीन में ये कमी है, ये अच्‍छाइयां हैं, तुम्‍हारी जमीन इस फसल के लिए योग्‍य है, इस फसल के लिए योग्‍य नहीं है। और किसानों ने धीरे-धीरे Soil Health Card के जरिए अपना plan करना शुरू किया और जिन-जिन लोगों ने plan किया है वो मुझे बताते हैं कि साहब हमारा खर्चा करीब-करीब 25% कम हो रहा है। और हमारे उत्‍पादन में 30% वृद्धि नजर आ रही है। अभी ये संख्‍या कम है लेकिन आने वाले दिनों में जैसे-जैसे बात पहुंचेगी, ये बात आगे बढ़ेगी। किसान को जमीन है, अगर उसको पानी मिल जाए, तो मेरे देश के किसान की ताकत है, वो मिट्टी में से सोना पैदा कर सकता है। ये ताकत मेरे देश के किसान में है और इसलिए हमने जल प्रबंधन पर बल दिया है, जल सींचन पर बल दिया है, जल संरक्षण पर बल दिया है। एक-एक बूंद का उपयोग किसान के काम कैसे आए, पानी काम महात्‍मय कैसे बढ़े, per drop-more crop, Micro-irrigation इसको हम बल दे रहे हैं। 90 से ज्‍यादा सिंचाई की योजनाएं आधी-अधूरी ठप्‍प पड़ी थीं, हमने बीड़ा उठाया है सबसे पहले उन योजनाओं को पूरा करेंगे। और लाखों धरती को सींचन का लाभ मिले, उस दिशा में काम करेंगे। हमने किसान की input-cost कम करने के लिए, क्योंकि किसान को आजकल बिजली की भी जरूरत पड़ती है, पानी चाहिए तो बिजली चाहिए, बिजली महंगी पड़ती है, हमने solar pump की ओर बड़ा काम उठाया है, बड़ी मात्रा में उठाया है, उसके कारण किसान का input-cost कम होने वाला है, recurring expense कम होने वाला है, और solar pump घर में होने के कारण बिजली भी अपनी, सूरज भी अपना, खेत भी अपना, खलिहान भी अपना। मेरा किसान खुदहाल-खुशहाल भी होगा। अब तक 77 हजार solar pump बांटने में हमने सफलता पाई है।

भाइयो-बहनों, मैं मेरे देश के वैज्ञानिकों को भी बधाई देना चाहता हूं। जमीन, पानी, solar pump, साथ के साथ अच्‍छे बीज की भी जरूरत होती है, अच्‍छे seeds की जरूरत होती है। भारत की वायु को, प्रकृति के अनुकूल हमारे देश के वैज्ञानिकों ने 131 से ज्‍यादा नए कृषि के योग्‍य बीज तैयार किए हैं, जो हमारे प्रति हेक्‍टेयर उत्‍पादन को बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। उसके अंदर जो values हैं, उस values में भी बढ़ोतरी हो रही है। मैं इन वैज्ञानिकों को भी बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

किसान को यूरिया चाहिए, खाद चाहिए। एक जमाना था खाद को पाने के लिए black-marketing होता था, एक जमाना था खाद पाने के लिए पुलिस लाठीचार्ज करती थी, एक जमाना था कि इंसान खाद के अभाव में अपनी आंखों के सामने बर्बाद होता हुआ अपनी फसल देख रहा था। भाइयो-बहनों, खाद की कमी, ये बीते हुए दिनों का विषय बन गए, इतिहास के गर्त में चला गया। आज हमने खाद की कमी, सबसे ज्‍यादा खाद का उत्‍पादन करने में हम सफल हुए हैं।

भाइयो-बहनों, इस खाद के उत्‍पादन के कारण किसानों को आवश्‍यकता के अनुसार समय पर खाद मिलने की संभावना।

उसी प्रकार से हमने फसल बीमा योजना बनाई है, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना। किसान को जमीन से ले करके उत्‍पादित चीजों तक उसकी रक्षा करना। पहली बार कम से कम प्रीमियम से अधिक से अधिक, वो भी गारंटी के साथ फसल बीमा योजना देने का काम, भाइयो-बहनों हमने किया है। हमने फसल के उत्‍पादन को 15 लाख टन अन्‍न के संरक्षण के लिए नए गोदामों का निर्माण किया है।

किसान का भला

 

हमारे देश में किसान का भला तब होगा, जब हम Value additionकी तरफ जाएंगे और Value addition की ओर जाने के लिए,हमने पहली बार food processing को विशेष रूप से बल दिया है। 100% Foreign Direct Investment को हमने प्रोत्‍साहित किया है जिसके कारण कृषि आधारित उद्योगों को बल मिलेगा और कृषि आधारित उद्योगों को जब बल मिलेगा, तो मेरे भाइयो-बहनों मुझे विश्‍वास है कि हमारे किसान को और जो मेरा सपना है, कि 2022 में किसान की income को double करना है,ये चीजें हैं जिसके द्वारा ये संभव होने वाला है और उसके लिए हमने एक के बाद एक कदम उठाए हैं।

भाइयो-बहनों, हमारे देश में एक परंपरा बन गई। सरकारों ने अपनी पहचान बनाने के लिए तो बहुत कुछ किया है और हमारे देश का जिस प्रकार का स्‍वभाव है, एकाध लोकरंजक काम कर दो, एकाध लोक लुभावना काम कर दो, सरकारी खजाने को खाली कर दो, सरकार की एक पहचान बनाने की परंपरा रही है। भाइयो-बहनों, मैंने अपने आप को इस मोह से दूर रखने का भरपूर प्रयास किया है और इसलिए एक total transformation, transparency के साथ transformation. Reform, Perform, Transform उस मंत्र को लेकर के हमने एक के बाद एक चीजें और हर range में, हर range में करने का हमने प्रयास किया है।

भाइयो-बहनों हमें सरकार की पहचान बनाने से ज्‍यादा मेरे हिन्‍दुस्‍तान की पहचान कैसी बने, उस पर बल है। दल की पहचान बने या न बने, देश की पहचान बननी चाहिए। देश की पहचान बनेगी तो आने वाली सदियों तक,हमारी आने वाली पीढ़ियों तक उसका लाभ होने वाला है और इसलिए हमने सरकार की पहचान को प्राथमिकता नहीं दी है, देश की पहचान को प्राथमिकता दी है।

आज हम रेलवे में, आप देखते होंगे कि हमारे काम की range क्‍या है। एक तरफ रेल में हम Bio-toilet की भी चर्चा करते हैं तो दूसरी तरफ Bullet train को भी लाने का सपना देखते है। हम एक तरफ किसान के लिए Soil Health Card की चर्चा करते हैं, तो दूसरी तरफ हम satellite और space technology की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहते हैं। हम Stand-up India की बात करते हैं तो हम Start-up India के लिए और कदम उठाते हैं। हम symbolism की जगह पर substance पर बल दे रहे हैं। हम isolated development की जगह पर integrated development की ओर बल दे रहे हैं। हम entitlement से छोड़कर के empowerment पर ध्‍यान दे रहे हैं और जब भी देश empower होता है तो मेरे भाइयो-बहनों, हमारे देश में नई योजनाएं घोषित करने से सरकारें पहचान बन जाती है। लेकिन पुरानी योजनाएं, वो ऐसे लुढ़क जाती है। सरकारें continuity होती हैं। अगर पहले की सरकारों ने भी कोई काम किया है। तो देश का भला इसमें है कि उसकी कुछ कमियां जरूर दूर करें, लेकिन उस काम को आगे बढ़ाना चाहिए। ये आपकी सरकार का, हम नहीं करेंगे, हम तो हमारी सरकार का करेंगे, ये अहंकार लोकतंत्र में नहीं चलता है और इसलिए हमने सर झुकाकर के पुरानी सरकारों के काम को भी उतनी ही तव्‍वजो दी है और ये हमारी कार्य-संस्‍कृति का परिचायक है क्‍योंकि देश, देश अखंड, अविरत व्‍यवस्‍था है और उस व्‍यवस्‍था को हम चलाना चाहते हैं और उसी के तहत मैं एक प्रगति कार्यक्रम चलाता हूं और खुद review करता हूं, खुद बैठता हूं। आपको हैरानी होगी कि साढ़े सात लाख करोड़ रुपए के करीब-करीब 118 project, वो किसी न किसी सरकार ने कभी प्रारंभ किए थे, सोचा था, योजना बनाई थी, ऐसे लटके पड़े थे। उनको मैंने बाहर निकाला, मैंने कहा पूरा करें। इतने रुपए बर्बाद हुए, और जोड़कर के काम को पूरा करो। आज वो काम पूरे हो रहे हैं।

 

 

270 मिटे प्रोजेक्ट को फिर से

हमने एक project monitoring group बनाया, जिसको मैंने अलग से कहा कि जरा देखिए ऐसे कौन से काम थे जो किसी समय शुरू हुए। कोई 20 साल पहले, कोई 25 साल पहले, कोई 30 साल पहले, कोई 15 साल पहले लटके पड़े थे। आज जो लोग उस इलाके में रहते है उनको पता है। करीब-करीब 10 लाख करोड़ रुपयों के 270 प्रोजेक्‍ट ऐसे हमने identify किए जो किसी सरकार ने शिलान्‍यास किया होगा, किसी ने 1000-2000 हजार करोड़ रुपया लगा दिया होगा। लेकिन बाद में वो मिट्टी में मिलता चला जा रहा था उसको हमने फिर से काम करने के लिए, उस अटकी हुई योजनाओं को…भाइयों-बहनों, योजनाओं का अटकाना, योजनाओं का delayed होना, रुपयों की बर्बादी होना एक प्रकार से criminal negligence है और उससे हमने पार करने का प्रयास किया है।

भाइयों-बहनों Railway project की मंजूरियां दो-दो साल लगते थे। train जा रही है ऊपर bridge बनाना है, दोनों तरफ रास्‍ते बन चुके हैं। दो-दो साल लग जाते थे। भाइयों-बहनों आज वो काम तीन महीना-चार महीना, ज्‍यादा से ज्‍यादा छ: महीने में प्रोजेक्‍ट को मंजूरी देने की गति हम ले आये हैं।

भाइयों-बहनों हम कितना ही काम करें, कितनी ही योजनाएं बनाएं। लेकिन सरकार सुशासन के लिए last man delivery, आखिरी इंसान को उसका लाभ कैसे मिलता है, उस पर ध्‍यान देना होता है। भाइयों-बहनों जब नीति साफ हो, नीयत स्‍पष्‍ट रुप से हो, साफ नीति, स्‍पष्‍ट नीति, साफ नीयत, स्‍पष्‍ट नियत होती है, तब निर्णय करने का जज्‍बा भी कुछ और होता है और इसलिए निर्णय बेझिझक हो सकते हैं।

हमारी सरकार स्‍पष्‍ट नीतियों के कारण, साफ नियत के कारण, बेझिझक निर्णय करके, बेझिझक निर्णय करके चीजों को आगे बढ़ाने में और last man delivery पर बल दे रही है।

हमने देखा है, अगर उत्‍तर प्रदेश के अखबार देखोगे, हर वर्ष गन्‍ना किसानों का बकाया, ये हर बार चर्चा में रहता था। sugar mill ये नहीं करती, राज्‍य सरकार ये नहीं करती, गन्‍ना किसान को ये परेशानी है। हजारों करोड़ रुपयों का बकाया था, हजारों करोड़ रुपए का। हमने इसके पीछे योजनाएं बनाई, पीछे लग गए, last man delivery किसान के घर तक पैसा पहुंचना चाहिए। पुराना जो बकाया था हजारों करोड़ बकाया था। भाइयों-बहनों, आज मैं बड़े संतोष के साथ कहता हूं 99.5% पुराना बकाया चुकता कर दिया गया है। ये बहुत सालों के बाद पहली बार हुआ है। इस बार का जो गन्‍ने का व्‍यापार हुआ, गन्‍ना खरीदा गया, आज मैं कह सकता हूं संतोष के साथ, अब तक करीब-करीब 95% किसानों को गन्‍ने का दाम चुका दिया गया है और 5% भी बचा हुआ होगा,तो आने वाले दिनों में जरूर चूक जाएगा ऐसा मुझे विश्‍वास है।

भाइयों-बहनों, LPG के Gas connection गरीब परिवारों को देने का हमने बीड़ा उठाया है। उज्‍ज्‍वला योजना के तहत, मेरी गरीब मां को चूल्‍हे के धूएं से मुक्ति दिलाने का अभियान बहुत तेजी से चलाया है। 5 करोड़ गरीब परिवारों को जब गैस का चूल्‍हा पहुंचेगा और तीन साल में करने का बीड़ा उठाया, काम चल रहा है। करीब-करीब 50 लाख तक हम पहुंच चुके हैं और वो भी सिर्फ पिछले 100 दिन के अंदरये काम कर दिया है। आप कल्‍पना कर सकते हैं, हो सकता है। तीन साल के पहले भी इस काम को हम पूरा कर लें last man delivery उस पर हम बल देना चाहते हैं।

डाकघर पुनर्जीवित

हमारी post office, information technology, whatsapp, messages, online, e-mail इनके कारण धीरे-धीरे post irrelevant हो रहा था, डाकघर हमारा। जो हमारी एक पहचान है। हमने इन डाकघरों को पुनर्जीवित, पुर्नताकतवर बनाने का, डाकघर गरीब और छोटे व्‍यक्ति से जुड़ा रहता है। सरकार का प्रतिनिधि अगर कोई हिन्‍दुस्‍तान के सामान्‍य मानव से प्‍यार से जुड़ा हुआ होता है तो वो डाकिया होता है। डाकिये को हर कोई प्‍यार करता है, डाकिया हर किसी को प्‍यार करता है।

लेकिन उस डाकिया की तरफ हमारा कभी ध्‍यान नहीं जाता है। हमने हमारे post offices को payment bank में convert करने की दिशा में कदम उठाया है। ये payment bank बनने से एक साथ देश के गांवों तक बैंकों का जाल बिछेगा,जन-धन account का लाभ मिलेगा और सामान्‍य मानव MNREGA का पैसा भी अब आधार के द्वारा उसके खाते में जा रहा है, corruption कम हो रहा है।

भाइयों-बहनों, हमारे देश में जो भी PSUबनते हैं वो PSU या तो गड्ढे में जाने के लिए बनते हैं, या तो लुढ़क जाने के लिए बनते हैं, या ताले लगने के लिए बनते हैं या फिर बेचने के लिए बनते हैं। ये उसका इतिहास रहा है। हमने एक नई कार्य संस्कृति लाने का प्रयास किया है। और आज मैं पहली बार संतोष के साथ कहता हूं जो Air India पूरी तरह बदनाम हुआ करता था। पिछले साल हम Air India को, उसके Operation को Operational Profit में लाने सफल हुए हैं। BSNL, सारी दुनिया की Telecom कंपनियां कमा रही हैं,BSNL गड्ढे में जा रहा था। पहली बार BSNL को Operational Profit में लाने में हमें सफलता मिली है।Shipping Corporation of India ये कभी फायदे में आएगा कि नहीं मानते नहीं थे। आज Shipping Corporation of Indiaफायदे में आया है।

एक जमाना था बिजली का कारखाना अगले हफ्ते चलेगा कि नहीं चलेगा। कोयला आएगा कि नहीं आएगा। कितने बिजली के कारखाने कोयले के अभाव में बंद पड़े यही खबरें हुआ करती थीं। आज कोयला बिजली के कारखाने के दरवाजे पर खड़ा हुआ है। महीनों तक जितनी चाहिए उसके दरवाजे पर आकर के खड़ा हुआ है। भाइयों-बहनों इस काम को हमने किया है। आपने देखा होगा।

 

भ्रष्टाचार

कभी-कभी हमारे देश में, बड़े-बड़े Corruption की चर्चाएं तो होती हैं। लेकिन Corruptions समाज में निचले स्तर तक गरीब आदमी को इस प्रकार से लूटता रहा है, इस प्रकार से पैसे बर्बाद होते रहे हैं,ये मैंने भलीभांति देखा है। हमने आधार कार्ड को आधार नम्बर को सरकारी योजनाओं से जोड़ा और सरकारी योजना से जुड़ने के कारण, भाइयों-बहनों एक समय था जब हम ये देखते थे कि विधवा Pension हो, scholarship हो, दिव्यांगों के लिए कोई व्यवस्था हो, minority के लिए कोई व्यवस्था हो। सरकारी खजाने से पैसे जाते थे। लाभार्थियों की सूची भी आती थी। लेकिन जब हमनें जरा गहराई से देखा तो हमारे ध्यान में आया कि जिनका जन्म भी नहीं हुआ है, इस दुनिया में जिसने जन्म नहीं लिया, ऐसे लोग भी सूची में हैं। और इस प्रकार की योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। ये बिचौलिये अरबों-खरबों रुपया निकाल देते थे और कभी किसी का ध्यान नहीं जाता था। इस आधार व्यवस्था के तहत हमनें ऐसे सारे बिचौलियों को बाहर किया। पैसा direct किया और अनुभव आया कि करोड़ों लोग ऐसे मिले हैं कि जो हैं ही नहीं लेकिन रुपये जाते थे। अरबों-खरबों रुपये जाते थे। अब वो तो बंद हुआ पैसे बच गए लेकिन हमनें कहा जो जरूरतमंद बेचारे बाहर रह गए थे, उनको ढूंढ-ढूंढ करके लाओ और ये बचे हुए पैसे, उनके खजाने में जाने चाहिए, जो अपने हक के लिए लड़ना चाहते हैं। Last man delivery उस दिशा में हमने काम किया है और आज उसको हमने पहुंचाया है।

Transparency का बल, कोयले का Corruption कौन नहीं जानता है। आज कोयले की नीलामी कोई आरोप नहीं, दाग नहीं और हिन्दुस्तान में राज्यों को आने वाले दिनों में जैसे-जैसे कोयला निकलता जाएगा लाखों रुपयों की कमाई होती जाएगी।

Spectrum की नीलामी एक जमाना था, आक्षेपों के घेरे में फंसी पड़ी थी। हमनें onlineउसका auction किया और आज देश का खजाना भी भरा, स्वस्थ Competition भी हुई और उसके कारण देश का लाभ हुआ।

 

ग्लोबल इकोनोमी

भाइयों-बहनों,आजका विश्व एक Global Economy के युग से गुजर रहा है। आज हर देश Inter Connected है, Inter dependent है। आर्थिक विषयों से पूरा विश्व एक प्रकार से किसी न किसी रूप से जुड़ा हुआ है। हम हमारे देश में कितनी ही प्रगति करें। लेकिन इसके साथ-साथ हमें वैश्विक Economy को ध्यान में रखते हुए, Global arena को ध्यान में रखते हुए, हमारे देश को भी वैश्विक मानकों में खरा उतारना पड़ेगा, उसकी बराबरी से लाना पड़ेगा। तब जाकर के हम Relevant रहेंगे, तब जाकर के हम अपना योगदान दे पाएंगे और तब जाकर के वक्त आने पर हम विश्व की अर्थव्यवस्था का नेतृत्व भी कर पाएंगे। और इसलिए हमें अपने आपको हर पल सज्ज करना पड़ेगा। अगर अपने आप को सज्ज करना है तो वैश्विक मानकों के साथ हमें ताल मिलाना होगा। पिछले दिनों आपने देखा होगा world Bank हो, IMF हो, World Economic Forum हो, Credit-Rating Agencies हो, दुनिया में जितनी प्रकार की संस्‍थाएं हैं सबने भारत की प्रगति को सराहा है। भारत के एक के बाद एक निर्णयों के कारण कानूनी सुधार, व्‍यवस्‍था में सुधार, approach में बदलाव इन चीज को दुनिया बराबर देख रही है। Ease of doing business, हमने बहुत तेजी से हमारा ranking में सुधार किया है …निवेश के मामले में Foreign Direct Investment के मामले में हमारे देश में आज दुनिया के अंदर अगर सबसे पसंदीदा कोई देश है तो हिंदुस्‍तान बन गया है। विकास दर में देश की बड़ी-बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था को भी हमने Growth rate की दुनिया में, GDP में हमने पीछे छोड़ दिया है।

भाइयों-बहनों, United Nation की एक संस्‍था ने अभी अनुमान लगाया है कि भारत आने वाले दो साल में क्या होगा? उन्‍होंने अनुमान लगाया है कि जो भारत, आज इस अर्थव्‍यवस्‍था के दायरे में दसवें नम्‍बर पर खड़ा है, उन्‍होंने UN के Institute ने कहा है कि दो साल के भीतर-भीतर यह दसवें नंबर से तीसरे नंबर पर आ जाएंगे। भाइयों-बहनों, वैश्‍विक मानकों में logistic support, infrastructure इन सारी बातों का भी आज लेखा-जोखा होता है। दुनिया के समृद्ध देशों के साथ तुलना होती है। भाइयों-बहनों,World Economic Forum में भारत के इस logistic support के संबंध में,infrastructure के संबंध में analysis करके कहा है पहले से भारत 19 rank ऊपर चला आया है और भारत बहुत तेजीसेऊपर आगे बढ़ रहा है।

भाइयों-बहनों, हमारे देश में जिस प्रकार से हम एक वैश्विक संदर्भ में भी एक गतिशील और predictable अर्थव्‍यवस्‍था को ले करके आगे बढ़ रहे हैं।अभी-अभी जो GST का जो कानून पास हुआ, वो भी उसमें एक ताकत देने वाला काम हुआ है और वो सभी दल उसके लिए अभिनंदन के अधिकारी हैं।

भाइयों-बहनों एक अभियान के संदर्भ में मैंने यही से चर्चा की थी। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ हम कोई काम टुकड़ों में नहीं करते हैं। हमारा एक integrated approach होता है और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ में हमने जो initiative लिए हैं, उसमें अभी भी मुझे समाज के सहयोग की आवश्यकता है। एक-एक मां-बाप को सजग होने की आवश्‍यकता है। हम बेटियों का सम्‍मान बढ़ाएं, बेटियों की सुरक्षा करें, सरकार की योजनाओं का लाभ लें। हमने सुकन्‍या समृद्धि योजना से करोड़ों परिवारों को जोड़ा है। जो बेटी बड़ी होगी तो उसकी गांरटी ले लेता है, हमने महिलाओं को लाभ हो, उस प्रकार की बीमा योजनाओं को सबसे ज्‍यादा बल दिया है। उसके कारण इनको फायदा होने वाला है। हमने इंद्रधनुष टीकाकरण की योजना, क्‍यों‍कि माताओं, बहनों को एक आर्थिक सशक्‍तीकरण, और एक health की भी सशक्‍तीकरण अगर यह दो काम कर लिए, शिक्षित कर लिया, आप मान कर चलिए घर में एक महिला भी अगर शिक्षित है, शारीरिक रूप से सशक्‍त है, आर्थिक रूप से स्‍वतंत्र हैं, एक महिला गरीब से गरीब परिवार को भी गरीबी से बाहर निकालने की ताकत रखती है। और इसलिए गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने में महिलाओं का सशक्‍तीकरण, महिलाओं का स्‍वास्‍थ्‍य, महिलाओं की आर्थिक सम्‍पन्‍नता, शारीरिक सम्‍पन्‍नता उस पर बल दे करके हम काम कर रहे हैं और इसलिए मेरे भाइयों-बहनों मुद्रा योजना, मुझे खुशी हुई मुद्रा योजना का लाभ साढ़े तीन करोड़ से ज्‍यादा परिवारों ने लिया और उसमें अधिकतम नये लोग थे, जो बैंक केदरवाजें पर पहुंचे। उसमें भी 80% करीब-करीब SC, ST, OBC के थेऔर उसमें भी बैंक में, मुद्रा बैंक में लोन लेने वाली 80% महिलाएं हैं। ये महिलाएं कैसे आर्थिक विकास में योगदान करेंगी। इसकी ओर आप ध्‍यान देते हैं।

भाइयों-बहनों पिछले हफ्ते हमने निर्णय किया, जो हमारी माताएं-बहनें आज विकास यात्रा में भागीदार बनी हैं, लेकिन प्रसूति के बाद उसको छुट्टी चाहिए। पहले वो छुट्टी कम मिलती थी। अब हमने ये छुट्टी 26 हफ्ते की कर दी है, ताकि मां अपने बेटे का लालन- पालन कर सके।

हमारे यहां बुनकर, Textile में काम करने वाले लोग, इनको, जो धागा बनाते हैं, धागे का लच्छा बनाते हैं। पहले उनको 100 रुपए मिलता था, हमने उसको 190 रुपए कर दिया ताकि मेरी वो मां, मेरी वो बहन, जो तार बनाने का काम करती हैं, उसको एक ताकत मिलेगी। जो सिल्क के काम में लगी हुई माताएं-बहनें हैं, जो बुनकर लगे हैं, उनके दाम में हमने 50 रुपये प्रति मीटर बढ़ा दिया और ये फैसला किया कि ये 50 रुपया व्यापारी को नहीं जाएगा, दलाल को नहीं जाएगा, बिचौलियों को नहीं जाएगा, जिस बुनकर ने उस सिल्क पर काम किया है, प्रति मीटर 50 रुपए सीधा उसके खाते में आधार के द्वारा जमा हो जाएंगे, मेरा बुनकर सशक्त बनेगा। उस दिशा में हमने ये योजनाएं है और उस योजनाओं का प्रभाव छोड़ रहा है।

मेरे प्यारे देशवासियों, जब रेल को देखते हैं, डाकघर को देखते हैं तो हमें भारत की एकता भी नजर आती है। हम जितना ज्यादा भारत को जोड़ने वाले प्रकल्पों को आगे बढ़ाएंगे, हमारी व्यवस्थाओं में बदलाव लाएंगे, देश की एकता को बल देगा।और इसलिए हमने किसानों के लिए मंडी e-NAM की योजना की है। आज किसान अपना माल online हिंदुस्तान की किसी भी मंडी में बेच सकता है। अब वो मजबूर नहीं होगा कि अपने खेत से 10 किलोमीटर की दूरी की मंडी पर मजबूरन माल देना पड़े, सस्ते में देना पड़े और उसकी मेहनत की कमाई न हो। अब देशभर में e-NAM के द्वारा एक ही प्रकार की मंडी का Network खड़ा हो रहा है।

GST के द्वारा Taxation का एक प्रकार से एक समानता का, समान व्यवस्था का परिणाम आने वाला है। जो भारत जोड़ने का भी एक काम करेगा।

हमने बिजली में, आपको हैरानी होगी, एक इलाके में बिजली रहती थी कोई लेना वाला नहीं था और दूसरा इलाका बिजली के लिए तड़पता था, अंधेरे में जीता था, कारखाने बंद हो जाते थे और उसको बदलाव लाने के लिए One Nation-One Grid-One Price उसमें हमने सफलता पाई है और बहुत तेजी से जो कभी गर्मी में 10 रुपया यूनिट का दाम देना पड़ता था। मैं पिछले दिनों तेलंगाना गया था, उस दिन 1 रुपया 10 पैसे दाम था जो कभी 10 रुपया हुआ करता था ये One Price का परिणाम देश को जोड़ने के लिए काम होता है।

हमारे देश का मजदूर एक जगह पर काम करता है, एक-दो साल के बाद नौकरी बदलता है, EPF में उसका पैसा कटता है लेकिन पैसा Transfer नहीं होता था और आपको हैरानी होगी, जब मैं सरकार में आया मेरे देश के मजदूरों को 27 हजार करोड़ रुपया EPF में पड़े थे कोई गरी‍ब – मजदूर लेने वाला नहीं था क्योंकि उसको इसकी पद्धति नहीं थी।

हमने इस समस्या का समाधान करने के लिए एक Universal Account Number दिया हमारे मजदूरों को और उसके कारण अब उसके पैसे वो जहां जाएगा EPF का fund transfer होगा। मजदूर जब retire होगा तो उसके रुपए उसके हाथ जाएंगे, किसी सरकारी खजाने में सड़ते नहीं पड़े रहेंगे, उस काम को हमने किया है।

चाहे भारतमाला हो, चाहे सेतूभारतम हो, चाहे Bharat Net हो ऐसे अनेक प्रकल्पों को हमने बल दिया है। इन सारे प्रकल्पों का हमारा उल्लेख भारत को जोड़ने की दिशा में भी हो, भारत के आर्थिक विकास की दिशा में भी हो, उस दिशा में काम कर रहे हैं।

भाइयों-बहनों ये वर्ष अनेक प्रकार के महत्व का है। देश दक्षिण के संत श्रीमान रामानुजाचार्य जी की1000वीं जयंती मना रहा है, देश महात्मा गांधी के गुरू श्रीमद राजचंद्र जी जिनकी 150वीं जयंती मना रहा है, देश गुरू गोबिंद सिंह जी के 350वीं साल की जयंती मना रहा है, देश पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की शताब्दी का वर्ष मना रहा है। आज जब मैं रामानुजाचार्य जी को याद करता हूं तो एक बात मैं कहना चाहता हूं, हजार साल पहले, आज जब सामाजिक तनाव देखते हैं तो रामानुजाचार्य जी संत पुरुष, उन्होंने देश को क्या संदेश दिया था। रामानुजाचार्य जी कहते थे भगवान के सभी भक्‍तों को,भेदभाव और ऊंच-नीच का ख्‍याल किए बिना सेवा करो। उम्र-जाति के कारणों की वजह से किसी का भी अनादर मत करो, हर किसी का सम्‍मान करो। जो बात गांधी ने कही, जो बात अम्‍बेडकर ने कही, जो बात रामानुजाचार्य ने कही, जो भगवान बुद्ध ने कही, जो हमारे शास्‍त्रों ने कही, जो हमारे सभी आचार्य-महंतों, गुरूओं ने शिक्षको, ने कही वो है हमारी सामाजिक एकता की। समाज अगर टूटता है, साम्राज्‍य बिखर, ऊंच-नीच में बंट जाता है, स्‍पृश-अस्‍पृश में बंट जाता है तो भाइयो-बहनों वो समाज कभी टिक नहीं सकता है। बुराइयां हैं, सदियों पुरानी बुराइयां हैं, लेकिन बुराइयां अगर पुरानी हैं तो उपचार भी जरा ज्‍यादा कठोरता से करने पड़ेंगे, ज्‍यादा संवेदनशीलता से करने पड़ेंगे। होती है, चलती है, से सामाजिक समस्‍याओं का समाधान नहीं हो पाएगा, और ये दायित्‍व सवा सौ करोड़ देशवासियों का है। सरकारों ने समाज ने मिल करके समाज में जो टकराव की स्थितियां पैदा होती हैं, उसमें से हमें निकलना होगा।

सामाजिक बुराई के खिलाफ लड़ाई

 

और भइयों-बहनों हम सबको, हम सबको सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ना होगा। हमने सबने अपने व्‍यवहार से सामाजिक बुराइयों से ऊपर उठना होगा, हर नागरिक को उठना पड़ेगा, और तभी जा करके हमसशक्‍त हिन्‍दुस्‍तान बना सकते हैं। सशक्‍त हिन्‍दुस्‍तान, सशक्‍त समाज के बिना नहीं बन सकता है। सिर्फ आर्थिक प्रगति सशक्‍त हिन्‍दुस्‍तान की गारंटी नहीं है, सशक्‍त समाज, सशक्‍त हिन्‍दुस्‍तान की गारंटी है और सशक्‍त समाज बनता है सामाजिक न्‍याय के अधिष्‍ठान पर। सामाजिक न्‍याय के अधिष्‍ठान पर ही सशक्‍त समाज निर्माण होता है और इसलिए हमारा सबका दायित्‍व है कि सामाजिक न्‍याय पर हम बल दें। दलित हो, पीड़ित हो, शोषित हो, वंचित हो, मेरे आदिवासी भाई हों, ग्रामवासी हों या शहरवासी हो, पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़ हो, छोटा हो या बड़ा हो, सवा सौ करोड़ देशवासी हमारा परिवार है, हम सबने मिलकर के देश को आगे बढ़ाना है और उसी दिशा में हमें काम करना होगा।

भाइयो-बहनों, आज पूरे विश्‍व का ध्‍यान भारत की उस बात पर जाता है कि भारत एक युवा देश है। Eight hundred million , 65 प्रतिशत जनसंख्‍या, जिस देश के पास 35 साल से कम उम्र की हो, वो देश अपनी युवा शक्ति के द्वारा क्‍या कुछ नहीं कर सकता है। और इसलिए मेरे भाइयों-बहनों, युवाओं को अवसर मिले, युवाओं को रोजगार मिेले, ये हमारे लिए समय की मांग है।

आज जब हम पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय जी की जन्‍मशती की ओर आगे बढ़ रहे हैं तब, पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय जी कह रहे थे, जो महात्मा गांधी के भी विचार थे कि ‘आखिरी मानव का कल्‍याण’। पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय अंत्‍योदय के विचार को ले करके चले। आखिरी छोर के इन्‍सान के कल्‍याण, ये पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय जी की political philosophy का केंद्रवर्ती विचार था। आखिरी व्‍यक्ति के विचार में वो कहते थे, हर नौजवान को शिक्षा उपलब्‍ध होनी चाहिए, हर नौजवान के हाथ में हुनर होना चाहिए, हर नौजवान को अपने सपने साकार करने के लिए अवसर होना चाहिए। पंडित दीनदयाल जी के उन सपनों को पूरा करने के लिए देश के eight hundred million युवाओं के आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए हमने अनेक initiativesलिए हैं। जिस प्रकार से सड़क बढ़ रही है, देश में सबसे ज्‍यादा गाडि़यों का उत्‍पादन हो रहा है, देश में ज्‍यादा, सबसे ज्‍यादा Software निर्यात हो रहा है, देश में 50 से ज्‍यादा नई मोबाइल की फैक्ट्रियां लगी हैं, ये सारी बातें नौजवानों के लिए अवसर देती हैं। अगर दो करोड़ door toilet बनते हैं, तो उसने किसी न किसी को रोजगार दिया है। कहीं से सीमेंट लिया है, कहीं से लोहा लिया है, कहीं से लकड़ी का काम हुआ है। काम का व्‍याप जितना बढ़ेगा, रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी, आज हमने उस दिशा में बल दिया है।

 

स्किल डेवलपमेंट

 

उसी प्रकार से कोटि-कोटि युवकों के हाथ में हुनर हो। Skill development को mission के रूप में काम कर रहे हैं। हमने एक ऐसा कानून बदला। दिखने में बहुत छोटा है Model Shop and Establishment Act हमने राज्‍यों को advisory भेजी है कि क्‍या कारण है कि बड़े-बड़े mall तो 365 दिन चले, रात को 12 बजे तक चले, लेकिन गांव में एक छोटा-सा दुकान चलाने वाले को शाम के बाद दुकान बंद करनी पड़े? हर गरीब से गरीब व्‍यक्‍ति भी दुकान चलाता है, उसको 365 दिन मौका देना चाहिए। क्‍या कारण है कि हमारी बहनों को रात को काम करने का अवसर न दिया जाए? हमने कानूनन व्‍यवस्‍था की है कि रात को भी हमारी बहनें काम पर जा सकती हैं। उनकी सुरक्षा और व्‍यवस्‍था का प्रबंध होना चाहिए लेकिन काम का अवसर मिलना चाहिए। ये चीजें हैं जो रोजगार बढ़ाने वाली चीजें हैं और भाइयों-बहनों हमारी इस दिशा में कोशिश है कि हम करने के लिए तैयार हैं।

भाइयो-बहनों, हम वो इंसान है, ये वो सरकार है, हम चीजों को टालने में विश्‍वास नहीं करते हैं। हम टालना नहीं, टकराना जानते हैं और इसलिए जब तक हम समस्‍याओं को सामने होकर के भिड़ते नहीं हैं, नहीं होता है। हमारे देश में, मेरे देश के लिए जीने-मरने वाले सेना के जवान, आज जब हम आजादी का जश्‍न मनाते हैं, कोई मेरा जवान सीमा पर गोलियों को झेलने के लिए तैयार खड़ा होगा, कोई बंकरों में बैठा होगा, कोई कभी रक्षाबंधन पर अपनी बहन को भी नहीं मिल पाता होगा। फौज में, सेना में कितने जवान काम कर रहे हैं। आजादी के बाद 33 हजार से ज्‍यादा, हमारे पुलिस के जवानों का बलिदान हुआ। हम क्‍यों भूल जाए उनको? हम उनको कैसे भूल सकते हैं। यही तो लोग हैं जिनके कारण हम सुख-चैन की जिन्‍दगी जी सकते हैं। इसलिए यह पर्व उनको भी नमन करने का है और कई वर्षों से ‘One Rank-One Pension’ का मसला लटका पड़ा था। हम टालने वालों में से नहीं, हम टकराने वालों में से हैं। हमने उसको पूरा किया, ‘One Rank-One Pension’. हर हिन्‍दुस्‍तान के फौजी के घर में खुशहाली पहुंचा दी, इस काम को किया।

हमारे देश के लोगों की भावना थी कि नेताजी सुभाष बाबू की फाइलें, लोगों के सामने खुलें। आज मैं सर झुकाकर के कहता हूं कि जो काम असंभव था, टालने में, टाला जा रहा था, जो भी होगा हमने उन फाइलों को खोलने का निर्णय कर दिया। परिवार को बुलाकर के फाइलें रख दी और वो निरंतर प्रक्रिया आज भी जारी है। दुनिया के देशों को भी मैंने कहा है कि आपके यहां जो फाइलें है, आप उसको खोलिए, दीजिए। हिन्‍दुस्‍तान को सुभाष बाबू और भारत के इतिहास को जानने का हक है। उस दिशा में हमने काम किया।

बांग्‍लादेश, जिस दिन हिन्‍दुस्‍तान का विभाजन हुआ तब से लेकर के सीमा विवाद चले हैं। बांग्‍लादेश बना, तब से हमारा सीमा विवाद चला है। कई दशक चले गए। भाइयों-बहनों सभी दलों ने मिलकर के भारत-बांग्‍लादेश की सीमा विवाद का निपटारा कर दिया। संविधान में भी हमने बल दे दिया।

 

मध्यवर्ग

भाइयो-बहनों, मध्‍यम वर्ग का व्‍यक्‍ति अपना मकान बनाना चाहता है, फ्लैट लेना चाहता है लेकिन बिल्‍डरों की जमात, वो बड़ा अच्‍छा printed booklet दिखाते हैं। वो भी बेचारा उसमें जुड़ जाता है। उसे technical knowledge तो होती नहीं, पैसे देता रहता है। समय के अंदर मकान नहीं मिलता है। जो कहा गया वो मकान नहीं मिलता है। मध्‍यम वर्ग के व्यक्‍ति के जीवन में एक बार ही तो मकान बना होता है। पूरी पूंजी लगा देता है। भाइयो-बहनों, हमने Real estate bill लाकर के नकेल डाल दी है, ताकि मध्‍यम वर्ग का परिवार जो भी व्‍यक्‍ति अपना घर बनाना चाहता होगा, आज उसको कोई रुकावट नहीं आएगी। इन कामों को करने की दिशा में हमने काम किया है।

भाइयों-बहनों, मैंने पहले ही कहा श्रीमद राजचंद्र जी, जिनकी 150वीं जयंती है। महात्‍मा गांधी उन्‍हें अपना गुरु मानते थे और श्रीमद राजचंद्र जी के साथ जब वो साउथ अफ्रीका में थे, तब भी श्रीमद राजचंद्र जी के साथ पत्र व्‍यवहार करते थे। एक पत्र में श्रीमद राजचंद्र जी ने गांधी जी के साथ हिंसा और अहिंसा की चर्चा की थी और राजचंद्र जी कह रहे थे कि जिस समय हिंसा का अस्‍तित्‍व रहा है, उसी समय से अहिंसा का भी सिद्धांत आया है। दोनों में अहम ये है कि हम किसे महत्‍व देते है या फिर इनमें किसका उपयोग मानव हित में हो रहा है।

भाइयो-बहनों, हिंसा-अहिंसा की चर्चा हमारे देश में बहुत स्‍वाभाविक है।मानवता हमारी रगों में है। हम एक महान विराट संस्कृति के लोग हैं। ये देश विविधताओं से भरा हुआ है, रंग-रूप से भरा हुआ है। ये भारत मां का गुलदस्ता ऐसा है, जिसमें हर प्रकार की खुशबू है, हर प्रकार के रंग हैं, हर प्रकार के सपने हैं। भाइयों-बहनों, विविधता की एकता, ये हमारी सबसे बड़ी ताकत है, एकता का मंत्र हमारी जड़ों से जुड़ा हुआ है। भाइयों-बहनों, जिस देश की 100 से ज्यादा भाषाएं हों, सैंकड़ों बोलियां हों, अनगिनत पहनाव हों, अनगिनत जीवन पद्धतियों हों, उसके बाद भी ये देश सदियों से एक रहा है, उसका मूल कारण हमारी सांस्कृतिक विरासत है। हम सम्मान देना जानते हैं, हम सत्कार करना जानते हैं, हम समावेश करना जानते हैं इस महान परंपरा को लेकर के हम चले हैं और इसलिए हिंसा और अत्याचार का हमारे देश में कोई स्थान नहीं है। अगर भारत के लोकतंत्र को मजबूत बनाना है, भारत के सपनों को पूरा करना है तो हमारे लिए हिंसा का मार्ग कभी कामयाब नहीं होगा।

आज कहीं, जंगलों में माओवाद के नाम पर, सीमा पर उग्रवाद के नाम पर, पहाड़ों में आतंकवाद के नाम पर, कंधे पर बंदूक लेकर के निर्दोषों को मारने का खेल चला जा रहा है। त्राहि-त्राहि हो गया, ये धरती माता रक्त से रंजित होती गई हैं, लेकिन इस आतंकवाद के रास्ते पर जाने वालों ने कुछ नहीं पाया है। मैं उन नौजवानों को कहना चाहता हूं। ये देश हिंसा को कभी सहन नहीं करेगा, ये देश आतंकवाद को कभी सहन नहीं करेगा, ये देश आतंकवाद के सामने कभी झुकेगा नहीं, माओवाद के सामने कभी झुका नहीं। लेकिन मैं उन नौजवानों को कहता हूं अभी भी समय है, लौट आइए, अपने मां-बाप के सपनों की ओर देखिए, अपने मां-बाप की आशा-आकांक्षाओं की ओर देखिए, मुख्यधारा में आइए, एक सुख-चैन की जिंदगी जिए। हिंसा का रास्ता कभी किसी का भला नहीं करता है।

 

विदेश नीति

भाइयों-बहनों, हम जब विदेश नीति की बातें करते हैं, मैं उसका लंबा-चौड़ा जिक्र करना नहीं चाहता हूं, लेकिन जिस दिन हमने शपथ लिया था, सार्क देशों के नेताओं को बुलाया था, हमारा संदेश साफ था कि हम सभी देश, अड़ोस-पड़ोस के हम सभी देश, हम सबकी एक सबसे बड़ी common चुनौती है गरीबी। आओ हम मिलकर के गरीबी से लड़ें, अपनों से लड़ाई लड़के तबाह तो हो चुके हैं, लेकिन अगर गरीबी से लड़ेंगे, तो हम तबाही से निकलकर समृद्धि की ओर चल पड़ेंगे और इसलिए मैं सभी पड़ोसियों को गरीबी से लड़ने का निमंत्रण देता हूं। हमारे देश के नागरिकों को, हर देश के नागरिकों को गरीबी से मुक्ति दिलाना- इससे बड़ी कोई आजादी नहीं हो सकती। हमारे कोई भी पड़ोसी देश का नागरिक जब गरीबी से आजाद होगा, तब हिंदुस्तान कितनी खुशी का अनुभव करेगा, जब हमारे पड़ोसी देश का गरीब, गरीबी से आजादी पाता हो।

भाइयों-बहनों, मानवता की प्रेरणा से पले-बड़े लोग कैसे होते हैं और आतंकवाद को पुरस्‍कार देने वाले लोग कैसे होते हैं। मैं विश्व के सामने दो चित्र रखना चाहता हूं, दो घटनाएं उनके सामने रखना चाहता हूं और मैं विश्व को कहता हूं, मानवता में विश्वास रखने वाले लोगों को कहता हूं कि जरा तराजू से तौलकर के देखिए वो एक घटना जब पेशावर में आतंकवादियों ने निर्दोष बच्चों को मौत के घाट उतार दिया, घटना पेशावर में हुई थी, घटना आतंकवादी थी, निर्दोष-निर्दोष बालकों का रक्त बहाया गया था। ज्ञान के मंदिर को रक्त रंजित कर दिया था, निर्दोष बच्चों को मार दिया गया था।

ये हिन्दुस्तान संसद की आँखों में आंसू थे। भारत का हर स्कूल रो रहा था। भारत का हर बच्चा पेशावर के बच्चों की मौत से सदमा अनुभव कर रहा था। उसकी आँखों से आंसू सूखते नहीं थे। आतंकवाद से मरने वाला पेशावर का बच्चा भी हमें दर्द देता था, दुख देता था। ये है हमारी मानवता से पली बड़ी संस्कृति की प्रेरणा, यही है हमारी मानवता, लेकिन और तरफ़ देख लीजिये कि जब आतंकवादियों को Glorify करने का काम हो रहा था। जहां आतंकवादी घटना में निर्दोष लोग मारे जाएं तो जश्न मनाए जाते हैं। ये कैसा आतंकवाद से प्रेरित जीवन है। कैसे आतंकवाद से प्रेरित सरकारों की रचनाएं हैं। ये दो भेद दुनिया भली भांति समझ लेगी। इतना मेरे लिए काफी है।

 

बलुचिस्तान से बधाई

मैं आज लालकिले की प्राचीर से कुछ लोगों का विशेष अभिनन्दन और आभार व्यक्त करना चाहता हूं। पिछले कुछ दिनों से बलूचिस्तान के लोगों ने, Gilgit के लोगों ने, पाक Occupied कश्मीर के लोगों ने, वहां के नागरिकों ने जिस प्रकार से मुझे बहुत-बहुत धन्यवाद दिया है, जिस प्रकार से मेरा आभार व्यक्त किया है, मेरे प्रति उन्होंने जो सद्भावना जताई है, दूर-दूर बैठे हुए लोग जिस धरती को मैंने देखा नहीं है, जिन लोगों के विषय में मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई है, लेकिन ऐसे दूर सुदूर बैठे हुए लोग हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री को अभिनन्दन करते हैं, उसका आदर करते हैं, तो मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों का आदर है, वो मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों का सम्मान है। और इसलिए ये सम्मान का भाव, धन्यवाद का भाव करने वाले बलूचिस्तान के लोगों का, Gilgit के लोगों का, पाक के कब्जे वाले कश्मीर के लोगों का मैं आज तहे दिल से आभार व्यक्त करना चाहता हूँ।

भाइयों-बहनों, आज जब हम आजादी के 70 साल मना रहे हैं तब देश में स्वतंत्रता सैनिकों का बड़ा योगदान रहा है। इन स्वतंत्र सैनिकों का योगदान रहा है तो। आज मैं इन सभी मेरे श्रद्धेय स्वतंत्रता सैनिक परिवारजनों को, जो उनको सम्मान राशि मिलती है, जो पेंशन मिलती है। उस पेंशन में बीस प्रतिशत की वृद्धि करने का सरकार निर्णय कर रही है। जिस स्वतंत्रता सेनानी को अगर पहले 25 हजार मिलते थे, तो अब उसको 30 हजार रुपये मिलेंगे। और हमारे इन स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग और बलिदान को एक छोटा-सा, एक मेरा पूजा अर्चन का प्रयास है।

भाइयों–बहनों, हमारे देश के आजादी कि इतिहास की बातें होती हैं, तो कुछ लोगों की चर्चा तो बहुत होती है। कुछ लोगों की आवश्यकता से भी अधिक होती हैं। लेकिन आजादी में जंगलों में रहने वाले हमारे आदिवासियों का योगदान अप्रतिम था। वो जंगलों में रहते थे। बिरसा मुंडा का नाम तो शायद हमारे कानों में पड़ता है। लेकिन शायद कोई आदिवासी जिला ऐसा नहीं होगा कि 1857 से लेकर के आजादी आने तक आदिवासियों ने जंग न की हों बलिदान न दिया हो। आजादी क्या होती है? गुलामी के खिलाफ जंग क्या होता है? उन्होंने अपने बलिदान से बता दिया था। लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियों को इस इतिहास से उतना परिचय नहीं है। सरकार की इच्छा है, योजना है। आने वाले दिनों में उन राज्यों में इन स्वतंत्र सेनानी जो आदिवासी थे। जंगलों में रहते थे। अंग्रेजों से जूझते थे। झुकने को तैयार नहीं थे। उनके पूरे इतिहास को समावेश करते हुए, इन वीर आदिवासियों को याद करते हुए एक स्थायी रूप से Museum बनाने के लिए जहां-जहां राज्य के अंदर कोई एकाध जगह हो सकती है जहां सबको समेट करके बड़ा Museum बनाया जा सकता है। और ऐसे अलग-अलग राज्यों में Museum बनाने की दिशा में सरकार काम करेगी, ताकि आने वाली पीढ़ियों को हमारे देश के लिए मर मिटने में आदिवासी कितने आगे थे, उसका लाभ मिलेगा।

 

भाइयों-बहनों, महंगाई में कुछ चीजों की चर्चाएं तो बहुत होती हैं, लेकिन हम अनुभव कर रहे हैं कि गरीब के घर में अगर बीमारी आ जाए, तो उसकी पूरी अर्थ रचना समाप्‍त हो जाती है। बेटी की शादी तक रूक जाती है। बच्‍चों की पढ़ाई तक अटक जाती है, कभी शाम को खाना भी नहीं मिलता है। आरोग्‍य सेवाएं महंगी होती जा रही हैं और इसलिए मैं आज लाल किले की प्राचीर से गरीबी की रेखा के नीचे जीने वाले मेरे इन परिवारों के आरोग्‍य के लिए सरकार एक अहम कदम उठाने जा रही है। हम यह योजना ले करके आए हैं कि आने वाले दिनों में ऐसे किसी गरीब परिवार को आरोग्‍य की सेवाओं का लाभ लेना है, तो वर्ष में एक लाख रुपये तक का खर्च भारत सरकार उठाएगी, ताकि मेरे गरीब भाइयों को, इन आरोग्‍य की सेवाओं के कारण वंचित रहना न पड़े। उनके सारे सपने चूर-चूर न हो जाएं।

कुछ करके दिखायें

 

और इसलिए मेरे प्‍यारे भाइयों-बहनों आजादी के इस पावन पर्व में एक नया संकल्‍प, नई ऊर्जा, नया उमंग ले करके आओ हम चल पड़ें। हमारे लिए जिन्‍होंने आजादी के लिए बलिदान दिया, उनसे प्रेरणा पा करके, आजादी के लिए जीने वालों के लिए प्रेरणा पा करके, देश के लिए मरने का मौका तो नहीं मिल रहा है, लेकिन देश के लिए जीने का मौका जरूर मिल रहा है। हम देश के लिए जी करके दिखाए, देश के लिए कुछ करके दिखाए, अपने दायित्‍वों को भी निभाएं, औरों को दायित्‍व के लिए प्रेरित भी करे। एक समाज, एक सपना, एक संकल्‍प, एक दिशा, एक मंजिल इस बात को ले करके हम आगे बढ़ें। इसी एक भावना के साथ मैं फिर एक बार महापुरूषों को नमन करते हुए जल, थल, नभ में हमारी रक्षा के लिए जान की बाजी लगाने वाले, हमारे पुलिस के नौजवान, 33 हजार शाहदतों को नमन करते हुए, मैं देश के भविष्‍य की ओर सपनों को देखते हुए, अपने आप को समर्पित करते हुए आज लाल किले की प्राचीर से आप सबको पूरी ताकत के साथ मेरे साथ बोलने के लिए कहा रहा हूं भारत माता की जय..

आवाज दुनिया के हर कोने में जानी चाहिए –
भारत माता की जय, भारत की जय।

वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम।

जय हिंद, जय हिंद, जिय हिंद।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

 

By Editor