अपने रिश्तेदारों को घरों पर छोड़, सात समंदर पार रहने वाले कामगारों पर सरकार ने सर्विस टैक्स का तगड़ा प्रहार किया है जिससे हजारों परिवारों में सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ रही है.saudi.note

केंद्र सरकार का यह फैसला  यूं तो सभी देशों से भेजे जाने वाली विदेशी मुद्रा पर पड़ा है पर इसका सबसे व्यापक असर अरब,ओमान, कतर, कुऐत, इराक जैसे मिडिल ईस्ट के देशों में काम करने वालों पर  पड़ रहा है.क्योंकि अकेले अरब देशों से भारत में 60 प्रतिशत तक विदेशी मुद्रा आती है.

सरकार विदेशों से भेजी जाने वाले प्रत्येक दस हजार रुपये पर 123.60 रुपये का सर्विस टैक्स लगा रही है.

 

अरब देशों में काम करने वाले अनेक लोग इसे एक खास समुदाय के खिलाफ उठाया गया कदम मान रहे हैं. अरब में भारतीय मूल के कामगारों की समस्याओं पर पैनी नजर रखने वाले फैसल सुलतान का कहना है कि यह सर्विस टैक्स एक खास समुदाय के खिलाफ पक्षपातपूर्ण रवैया है.

अरब की एक कम्पनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के बतौर काम करने वाले फैसल सुलतान का कहना है कि एनडीए सरकार के इस फैसले के कारण विदेशी मुद्रा के फ्लो पर 40 प्रतिशत तक का असर पड़ सकता है. उनका कहना है कि ऐसे फैसले का व्यापक असर भारत की इकोनॉमी पर भी पड़ेगा.

फैसल सुलतान अरब की एक कम्पनी प्रोजेक्ट मैनेजर हैं
फैसल सुलतान अरब की एक कम्पनी प्रोजेक्ट मैनेजर हैं

बिहार के हजारों कामगार मिडिल ईस्ट के देशों में रहते हैं. इन कामगारों में ज्यादातर स्किल्ड लेबर हैं जो विदेशों में जीतोड़ मजदूरी कर अपने परिवार के उन लोगों के जीवन यापन के लिए पैसे भेजते हैं जो गांवों में रहते हैं.

दूसरी तरफ बिहारी कामगारों के लिए यह टैक्स चिंता का कारण बन गया है.  गोपालगंज के मोहम्मद रैहान कहते हैं कि पहले से ही मनी ट्रांस्फर करने वाली कम्पनियां, पैसे भेजने के लिए काफी रकम लेती हैं. उसके बाद जब पैसे भारत पहुंचते हैं तो प्रति दस हजार पर 123.60 रुपये फिर सरकार लेने लगी है.  रैहान के भाई कुऐत में रहते हैं.  वह कहते हैं   विदेशों में रह रहे भारतीयों, खासकर बिहार के लोगों  को दोहरा मार झेलनी पड़ रही है.

बिहार के सीवान, गोपालगंज, छपरा आदि जिलों के सबसे ज्यादा कामगार अरब देशों में रहते हैं. वे वहां छोटे-मोटे तकनीकी कामों, मजदूरी और अन्य काम में लगे हैं. इन जिलों का हरेक कामगार प्रति माह 20 हजार रुपये से 40 हजार रुपये अपने घरों को भेजते हैं.

वही इस मुद्दे पर  खाड़ी के एक अन्य फर्म में काम करने वाले  अब्दुल रहमान  का कहना है कि सरकार का टैक्स लेने का यह फैसला भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ही नुकसादेह साबित होगा. उनका मानना है कि इस फैसले के कारण लोगों में टैक्स बचाने की प्रवृत्ति बढ़ेगी और भारत में विदेशी मुद्रा का अवैध प्रवाह बढ़ेगा. ओबैदुर्रहमान का यह भी कहना है कि खाड़ी के देशों में मजदूर वर्ग के लोगों की सबसे ज्यादा संख्या है जो काफी कम मजदूरी कमाते हैं. ऐसे में उन पर कर का इतना बोझ लादना कहीं से उचित नहीं है. ओबैदुर्रहमान इस टैक्स को तत्काल वापस नेने की मांग करते हैं.

 

 

सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज ऐंड कस्टम के एक अफसर अभिषेक चंद्र गुप्ता कहते हैं कि सरकार ने सभी बैंकों, डाकखानों और मनी ट्रांस्फर के कारोबार से जुड़ी निजी कम्पनियां जैसे वेस्टर्न युनियन मनी ट्रांस्फर, मनीग्राम आदि को आवश्यक रूप से सर्विस टैक्स कटौती करने का निर्देश दिया है. एक अनुमान के मुताबिक केवल गोपालगंज, सीवान, छपरा आदि जिलों में प्रति माह 3 से 4 करोड़ रुपये भारतीय इकोनॉमी में जुड़ता है, लेकिन सरकार के इस फैसले से नुकसान होना लाजिमी है.

By Editor

Comments are closed.