सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा किसके साथ हैं, न यह पता चलता है और न ही यह कि वह किसके खिलाफ हैं पर वह शतरंज के बिसात के पियादे ऐसे चलते हैं कि बड़े-बड़े चित हो जाते हैं.

मेहेश( बायें), रंजीत (दायें)
मेहेश( बायें), रंजीत (दायें)

इर्शादुल हक

कभी भाजपा 1974 बैचे के बिहार के इस आईपीएस की नियुक्ति के खिलाफ खम ठोक रही थी तो लगा कि वह कांग्रेस के साथ है पर मौका मिलते ही उन्होंने कांग्रेसी दिग्गजों को अदालत के सामने बेनकाब कर दिया.अदालत में हलफनामा दायर कर रंजीत सिन्हा ने जता दिया कि कोल आवंटन मामले में केंद्र सरकार का रवैया ठीक नहीं था. नतीजा यह हुआ की केंद्रीय कानून मंत्री और अटॉर्नी जनरल को सुप्रीम कोर्ट के सामने जिल्लत बर्दाश्त करनी पड़ी.

इधर रेल घूस कांड में रेलमंत्री पवन कुमार बंसल और रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य महेश कुमार को ऐसे लपेटे में लिया कि ये दोनों पानी पानी हो रहे हैं.

अदावत भी शराफत के साथ

महेश कुमार एक इंजिनियर के बतौर रेलवे में पहुंचे थे. पर तरक्की की सीढियां चढ़ते हुए वह महाप्रबंधक के पद से होते हुए रेलवे बोर्ड के सदस्य तक पहुंच गये. पर महेश कुमार और रंजीत सिन्हा की अदावत तब से है जब ममता बनर्जी के कार्यकाल में अपने रसूख का फायदा उठाते हुए महेश कुमार ने रंजीत सिन्हा को नीचा दिखाया था. उस का बदला कई सालों के बाद रंजीत सिन्हा ने महेश कुमार से ले कर ही दम लिया. और बदला भी ऐसा कि महेश कुमार जन्म जन्म तक न भूल पायेंगे.

रंजीत सिन्हा और 90 लाख की घूसकाण्ड में फंसे महेश कुमार की अदावत काफी पुरानी है. ममता बनर्जी के रेलमंत्री रहने के समय महेश कुमार बेंगलुरु में मंडलीय रेल प्रबंधक के तौर पर तैनात थे वही, रंजीत सिन्हा आरपीएफ के डीजी थे, उसी दौरान रंजीत सिन्हा को महेश कुमार ने अपने रसूख का फायदा लेते हुए उनके पद से हटवा दिया था. रंजीत ने इस जहर के घोट के रूप में पी लिया था. और तभी से अपनी बारी के इंतजार में थे.

जब रंजीत सिन्हा सीबीआई के निदेशक बने तब तक महेश रेलवे के महाप्रबंधक हो चुके थे. इसी बीच रंजीत सिन्हा ने तय किया कि रेलवे में पैसे के लिए पद बेचने के बहाने महेश के अपमान का बदला लिया जा सकता है.

पर्दाफाश डॉट कॉम के अनुसार उन्होंने सीबीआई अधिकारियों को महेश कुमार के फोन टेप करने के आदेश दिए. महेश कुमार की सारी बातों को सीबीआई के अधिकारी सुनते थे, इसी बातचीत में घूस देने-लेने की बात सामने आई. रंजीत सिन्हा ने सीबीआई अधिकारियों को ये समझा दिया था कि महेश कुमार और पैसे के बल पर पद बेचने वाले दूसरे दलालों को रंगे हाथ पकड़ना है.महेश कुमार ने पैसे के लिए पद बेचने की डील 2 करोड़ में फाइनल की तो रंजीत सिन्हा के लश्कर ने रिश्वतखोरों के साथ महेश कुमार पर धावा बोल दिया. इस लपेटे में रेलमंत्री पवन कुमार बंसल के भांजे विजय सिंगला भी आ गये, जिन्होंने महेश से 90 लाख रुपये बतौर घूस लिये थे.

रंजीत सिन्हा ने इस घूसकांड का पर्दाफाश कर एक तीर से कई निशाने लगा दिये हैं. जहां उन्होंने अपने पुरानी अदावत का महेश कुमार से पाई पाई का हिसाब ले लिया वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता पवन कुमार बंसल की छवि को दागदार बना कर दम लिया.

1952 में जन्रंमे रंजीत सिन्हा 1974 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. किसी दौर में उन्हें लालू प्रसाद का काफी करीबी माना जाता था. बीजेपी ने रंजीत सिन्हा की नियुक्ति का विरोध लालू के साथ उनकी नजदीकी को लेकर ही की थी. लालू का नाम जब चारा घोटाले में लिया गया था तो रंजीत पर उस समय आरोप लगा था कि उन्होंने लालू यादव की मदद की थी. हालांकि बाद में लालू जब रेलमंत्री बने थे तो रंजीत को आरपीएफ का महानिदेशक बना दिया गया था. जिन्हें बाद में ममता बनर्जी के कार्यकाल में हटा दिया गया था.

By Editor