तो डीआईजी शालीन साहब आपकी यह अदा पसंद आयी. दो पहरी हो या रात के धुंधले अंधेरे. अप पटना में सरेराह गाड़ियों को रोकवाते हैं. ट्रैफिक नियमों का पाल सुनिश्चित करते हैं और गाड़ियों के कागजात चेक करवाते हैं.

बड़ा कठिन है पुलिस का शालीन बने रहना!!
बड़ा कठिन है पुलिस का शालीन बने रहना!!

 

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट इन

सुना है कि इसके लिए आप राजा भोज से ले कर गंगू तक के साथ समान व्यवहार से पेश आते हैं. बीती रात आपने प्रधानसचिव स्तर तक के एक आईएएस अफसर की गाड़ी तो रोकाई ही, एक मंत्री को भी रोका. अच्छा लगा. इस लिए आपकी यह अदा पसंद आई. पर बात सिर्फ इतनी होती तो आपकी तारीफ में, मैं कुछ और कशीदे गढ़ डालता. लेकिन बात हरगिज इतनी नहीं है. आप जिस काम में पिछले एक डेढ़ महीने से लगे हैं वह तलवार की धार पर चलने जैसा है. आप जब बाइकर्स को हेलमेट पहनने की ताकीद करते हैं तो यह आपकी ड्युटी का हिस्सा मालूम पड़ता है, हम इसका समर्थन करते हैं. समर्थन इसलिए भी करते हैं कि यह आप हैं और आपकी टीम है जिसने पटना की सड़कों पर वाहनचालकों में ट्रैफिक सेंस को एक हद तक विकसित करने में सफल हुए हैं. आप इस काम में लगे हैं, संभव है ट्रैफिक के बढ़ते लोड और सिमटती सड़कों से उत्पन्न परेशानियों से लोगों कुछ राहत मिले. अपराध रुके. और बिगड़ैल सामंती प्रवृति के रईसजादों को उनकी औकात पता चले. आखिर रूल ऑफ लॉ सबके लिए है. है ना?

पुलिस में शालीनता भी आये शालीन साहब

पर शालीन साहब. चीजें उतनी सरल नहीं है जितनी मैं बयान कर रहा हूं, या उतनी भी सरल नहीं, जितनी आप समझ रहे हैं. इसलिए आइए कुछ बातें दूसरे पक्ष की भी कर लेते हैं. बात आपसे यानी पुलिस वर्दी से शुरू करते हैं. इंसानी फितरत उस हंसुए की तरह होती है जो अपनी तरफ खीचने से काटता है. पता नहीं कितने लाख रुपये ट्रैफिक नियमों के उल्लंघनकर्ताओं से आपने वसूले हैं. पर बताइए पटना के एसएसपी मनु महाराज पर आपने ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन करने पर कितना फाइन किया? वह रात के अंधेरे में बिना हलमेट बाइक चलाते देखे गये थे. उन पर कितना जुर्माना किया ? चलिए छोड़िए मनु महाराज की बात. बात आपकी भी कर लेते हैं. एक रात आपने कुछ मनचलों को पकड़ा था. उन्होंने, संभव है कुछ बदतमीजी की थी. जवाबन आपने थप्पड़ जड़े थे. यह खबरें अखबारों में आयी थी. याद है न आपको? आप का थप्पड़ जड़ना कौन से रूल ऑफ लॉ का हिस्सा था? पुलिस मैनुअल के किस पैरा में इस नियम का उल्लेख है?

वर्दी, लाठी और थप्पड़

और सुनिये. अभी एक ताजा मामला है आपके ही पुलिस अफसर का. सैली धूरत है उनका नाम. उन्होंने कुछ पत्रकारों के साथ बदतमीजी कर दी. उनके सिपाहियों ने पत्रकारों पर हाथ उठा दिये. यह भी रूल ऑफ लॉ है क्या.सैली को वर्दी की ठसक ऐसी है कि सुना है कि उन्होंने इसके लिए सॉरी तक नहीं कहा. सुनिये शालीन साहब. पुलिस के व्यवहार को हंसुए की तरह मत परोसिए. पुलिस को पीपुल्स फ्रेंडली बनाने की मुहिम कोई और नहीं छेड़ सकता. आपको या आपके सीनियर अफसरों के द्वारा यह शुरुआत करन पड़ेगी. एक बात और. कभी आप सादे लिबास में आम आदमी की तरह सड़कों पर आइए. और देखिए कि एक साधारण सिपाही अपने हाथ में डंडा लिए सड़कों से जाम हटाता है तो एक आम आदमी उसके डंडे भांजने से कितना अपमान महसूस करता है. कभी इस पर भी सोचिये. ऐसा नहीं लगता है वह पशुओं को हांक रहा है?

‘वर्दी वाला गुंडा’ की छवि से निकलिये

और आखिर में एक बात और-बचपन में गुलशन नंदा का एक उपन्यास पढ़ा था- ‘वर्दी वाला गुंडा’. मालूम नहीं आपने उसे पढ़ा है या नहीं. पर सच यह है कि वर्दी हमारे समाज में भय और घृणा का प्रतीक है. ट्रैफिक नियमों को सुधारना तो फिर भी आसान है. पर वर्दी के इस चरित्र को कौन बदलेगा? क्या इसकी उम्मीद आप से की जा कती है? जरा सोचियेगा. और हो सके तो बताइएगा.

By Editor

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