नौकरशाही को करीब से समझने वाले यही मानते रहे हैं कि संयुक्त सचिव या उससे ऊपर के अधिकारियों के खिलाफ जांच के लिए केंद्र की अनुमति जरूरी है पर मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि ऐसा नहीं है.caption id=”attachment_5485″ align=”alignright” width=”130″]मद्रास हाईकोर्ट मद्रास हाईकोर्ट[/caption]

ऐसे दर्जनों मामले सीबीआई के पास लंबित हैं जिनमें उसे केंद्र सरकार की अनुमति लेने संबंधी फाइल धूल फांक रही है. पर मद्रास उच्च न्यायालय के एक हालिया फैसले में इस बात की व्याख्या की गयी है कि जांच करने वाली संस्थाओं को केंद्र सरकार की अनुमित की आवश्यकता नहीं है.

जस्टिस आर बानुमथी और जस्टिस के रविचंद्र बाबू की खंडपीठ ने 29 अप्रेल को कहा जांच एजेंसियों को पूर्व अनुमित की आवश्यकता नहीं है क्योंकि दिल्ली स्टेब्लिशमेंट एक्ट 1946 के सेक्शन 6 ए सिर्फ निर्देशिका है न कि इस पर अमल किया जाना आवश्यक है.

इस फैसले के अनुसार- प्राथमिक तौर पर यह लगता है कि पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है पर हमारी राय में यह अनिवार्य नहीं है क्योंकि सेक्शन 6 ए के सब क्लॉज 2 के अनुसार पूर्व अनुमति की जरूरत नहीं है अगर संबंधित अधिकारी किसी भी तरह से गैरकानूनी लाभ लेते हुए रंगेहाथों पकड़ा जाये तो ऐसी हालत में संयुक्त सचिव या उससे ऊपर के अधिकारी के खिलाफ जांच की कार्रवाई शुरू करने में पूर्व अनुमति की कोई आवश्यकता नहीं है. इस नियम के अनुसार सब क्लॉज 1 के अनुसार कार्रवाई करने में पूर्व अनुमित की जरूरत होगी.

इसी प्रकार राज्यों में सेवारत संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों के खिलाफ भी सेक्शन 6 ए के तहत कोई मदद नहीं मलि सकती. मतलब यह कि उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए भी केंद्र से पूर्व अनुमति की जरूरत नहीं है. आदेश में कहा गया है कि अखिल भारतीय सेवा का कोई अधिकारी केंद्र सरकार की सेवा में प्रत्यक्ष तौर पर नहीं होते वह केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर होते हैं.

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