जद यू प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह का पिछले 17 वर्षों से नियमित आयोजित होने वाला चूड़ा-दही भोज एक उत्सवी परम्परा का  रूप ले चुका है.  इसबार इसमें 15 हजार लोगों के शामिल होने का अनुमान है.

फाइल फोटो
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नवल शर्मा

भारत में राजनीतिक भोजों की परंपरा काफी पुरानी है । ”डिनर डिप्लोमेसी ” चाणक्य के जमाने से ही भारतीय राजनीति का अभिन्न हिस्सा रहा है । पर हम आज चर्चा कर रहे हैं एक ऐसे ‘ पॉलिटिकल डिनर ‘ की जिसमें डिप्लोमेसी की छाया यदि हो भी तो नज़र नही आती ।राज्यसभा सांसद और जद यू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ”दादाजी ”द्वारा मकरसंक्रांति के अवसर पर आयोजित होनेवाला चूड़ा-दही भोज अपनी बहुरंगी सामाजिक छटा और मानवीय स्पर्श के कारण सहज ही आकर्षित कर लेता है ।

साउथ एवेन्यू का धोबी भी, मजदूर भी
वर्ष 1998 में दिल्ली के साउथ एवेन्यू स्थित सांसद आवास से शुरू हुआ यह भोज आज विशाल रूप ग्रहण कर चूका है । 1998 से 2008 तक भोज का केंद्र दिल्ली रहा पर 2009 से पटना मुख्य केंद्र और दिल्ली सहायक केंद्र की भूमिका में आ गया । दिल्ली वाले आयोजन में भैरोंसिंह शेखावत , रामबहादुर रॉय और प्रभाष जोशी समेत अनेक विचारक , चिंतक ,पत्रकार , डॉक्टर ,वकील और विभिन्न सामजिक वर्गों के लोग बड़े उत्साह से भाग लेते थे । पटना के भोज में यह जुटान और ज्यादा वजनदार हो गया है ।जब शेखावत को बताया गया कि आपके साथ सामने जो व्यक्ति बैठा है वो साउथ एवेन्यू का धोबी है और वो सामने बैठा व्यक्ति दिहाड़ी मजदुर है तो वो हतप्रभ रह गए और उनकी मानवीय संवेदना प्रशंसा के रूप में फूट पड़ी । वहीँ प्रभाष जोशी जैसे लोगों की दिलचस्पी चूड़ा- दही के बजाय भोज में जुटी सतरंगी भीड़ को निहारने और उसका रस लेने में रहती थी । लब्बोलुबाब यह की चाहे वह सामान्य नर हो या कोई नरपति , एक रिक्शा चालक हो या कोई मंत्री , सभी एक साथ एक जैसी थाली में और समान आतिथ्यभाव से भोज का आनंद लेते हैं । समशीतोष्ण मौसम में दही -चूड़ा-तिलकुट -भूरा और गरमागरम स्वादिष्ट आलूदम छककर खाते हैं ।

स्वैच्छिक सहोयग का नमूना
इस महाभोज का एक दिलचस्प पहलू भोज्य सामग्री के जुटान से जुड़ा है । बीस हज़ार लोगों के लिए भोजन सामग्री मित्रों ,शुभचिंतकों और कार्यकर्ताओं के स्वैच्छिक सहयोग से चुटकी बजाते ही इकठ्ठा हो जाती है । भोज के प्रति श्रद्धावान बिहार और दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में बिखरे हुए ”दादा” के लोग बढ़चढ़कर स्वैच्छिक भागीदारी निभाते हैं । और लोग भी कैसे कैसे ! कोई क्विंटल में लानेवाला तो किसी की पोटली में दो किलो चूड़ा और किसी के पतीले में श्रद्धा के जोरन से जमी पांच किलो दही !कोई कहीं से नयी फसल की ताज़ा आलू लेकर पहुँच रहा तो कोई फूलगोभी और यह आलू और फूलगोभी झा जी जैसे कुशल रसोइये के हाथों में पड़कर जिस आलूदम का रूप लेते हैं , दही चूड़ा के लपेटन के साथ लोग ऊँगली चाटते रह जाते हैं।

खुला निमंत्रण
यह जानना भी कम रोचक नही है कि इस भोज में शायद निमन्त्रण को लेकर लोग बहुत ज्यादा उत्सुक नहीं रहते । जो निमन्त्रित हैं वो भी गदगद और जो नहीं हैं वो भी वाह वाह ! बस दादा के भोज की तारीख पता चलनी चाहिए , लोग अपने को स्वतः निमन्त्रित मान बैठते हैं । भले ही आज भोज का केंद्र पटना हो पर पटना के भोज के अगले एक दो दिन बाद दिल्ली में आयोजित होनेवाले भोज का सोशल कंसर्न आज भी आकर्षित करता है । दिल्ली की झुग्गियों में ,अनाथों के बीच और तथा ब्लाइंड स्कूल के बच्चों के बीच चूड़ा दही की भोज्य सामग्री और कम्बल आदि वस्तुओं का वितरण आज भी उसी रफ़्तार से जारी है ।
एक ऐसा दौर जब राजनीति में विमर्श का स्तर गिरता जा रहा है , चुनाव जीतने की भौतिकवादी ललक रिश्तों को दूरी में बदल रही है , राजनीति में इस तरह का समावेशी भोज बेहद ही दुर्लभ है । असहिष्णुता के मारे इस नए दौर में आज भी यह भोज अपने सहिष्णु और मानवीय स्पर्श के कारण बरबस ही ध्यान खिंच लेता है ।भिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के लोग आपसी कटुता भूलकर जिस सौहार्द्र से भोज में शिरकत करते हैं , वह आज के दौर में विलक्षण है।

नोट- यह आयोजन इसबार15 जनवरी को वशिष्ठ नारायण सिंह के पटना स्थित आवास पर है.

लेखक जद यू के प्रवक्ता हैं. जो इस आयोजन को करीब से देखते रहे हैं

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