पटना,२० जुलाई। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आज पावस के गीतों की झूमकर वर्षा हुई। कवियों शायरों और कवयित्रियों ने विविध भाव और रस की ऐसी बरसात की कि सुधी श्रोता रस की फुहार में भींगते और आनंद मनाते रहे। अवसर था पावस महोत्सव‘ का,जिसमें सेंट्रल बैक औफ़ इंडिया के महाप्रबंधक और चर्चित कवि मुकेश कुमार बजाजअंजुम‘ की पुस्तक दस्तकका लोकार्पण भी किया गया।

उत्सव का उद्घाटन तथा पुस्तक का लोकार्पण करते हुएत्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल तथा विद्वान साहित्यकार प्रो सिद्धेश्वर प्रसाद ने कहा किहिन्दी के प्रति अभी तक हम वह प्रेम नही ला पाए हैंजो देश हमसे अपेक्षा रखता है। पुस्तक के लेखक श्री बजाज ने,जो एक बैंक के अधिकारी हैंहिंदी में साहित्य का सृजन कर एक सराहनीय कार्य किया है। इनमें सृजन की शक्ति और प्रतिभा दोनो हीं हैं और प्रशंसनीय है।

समारोह के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने लोकार्पित पुस्तक के लेखक श्री बजाज को अपनी शुभकामनाएँ देते हुए कहा किकवि ने इस पुस्तक के माध्यम से हिंदी साहित्य के दरवाज़े पर एक असरदार दस्तक दी है। यह,प्रेम श्रींगार,मनुहारउलाहना,पीड़ा, विरहवेदना आदि कोमल भावों से युक्त गीतग़ज़लमानवीय संवेदना को झकझोर देने वाली कथाकहानियों का,अर्थात विविध भाव और रस के गद्य और पद्य का एक आकर्षक साहित्यिक पुष्पगुच्छ है। श्री बजाज की रचनाओं से इनकी काव्यप्रतिभा और प्रस्तुति के सामर्थ्य का पता चलता है। उम्मीद की जा सकती है किआनेवाली रचनाएँ और अधिक निखर कर पाठकों के समक्ष आएगी। यह एक अत्यंत आकर्षक और प्रभाव शाली प्रवेश है। 

समारोह के मुख्य अतिथि और पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के विद्वान कुलपति प्रो गुलाबचंद्र राम जायसवाल ने मध्यकालीन संत कवियों की रचनाओं को उद्धृत करते हुएपावस का सुंदर चित्रण किया। उन्होंने लोकार्पित पुस्तक की कविताओं की चर्चा करते हुए लेखक के प्रति शुभकामनाएँ प्रकट की।

अपने कृतज्ञताज्ञापन के क्रम में श्री बजाज ने अपनी लोकार्पित पुस्तक से रचनाओं का पाठ करते हुए कहा कि ज़िंदगी क्या हैइक हवा का झोंकाकभी नरमकभी गरमकभी सुखदायी बयार – कभी गरम लू

भारतीय रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय निदेशक नेलन प्रकाश तोपनो,सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्तडा शंकर प्रसाद तथा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

पुस्तक लोकार्पण के पश्चात पावस काव्योत्सव‘ का आयोजन हुआजिसे गीत के शिखर पुरुष और स्मृतिशेष गोपाल दास नीरजको समर्पित किया गया। बिहार हिंदी प्रगति समिति,बिहार के अध्यक्ष औरबिहारगीतके रचनाकार सत्य नारायण ने पावस को इन पंक्तियों से आमंत्रित किया कि, “अजब ये बाबरे बादलसलोन साँवरे बादलकहाँ से आ गए तिरतेगरजते,घुमड़ते घिरते। कि आँजेन आँख में काजलकि बाँधें पाँव में पायल

पावस का रस भरते हुएकवयित्री डा शांति जैन ने कहा– बादल की छाती में छुप कर बिजुरी जीती हैसोने के तारों से काली कथरी सीती है

वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र करुणेशने इन पंक्तियों से पावस की पीड़ा को अभिव्यक्ति दी कि, “गीत क्यों भाव से यों भरा हो गयाज़ख़्म फिर से हरा का हरा हो गया/क्या नज़र थी वो करुणेशपूरी ग़ज़लफिर से जीने का इक आसरा हो गया। शायरा सदफ इक़बाल ने ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा किधूप बन कर अभी आ जाओ सुखा दो मुझको/गीले कपड़े की तरह छत पर पसारी हुई हूँथोड़ी मिट्टीथोड़े पानी से बन जाती हूँचाक पर चढ़ते हीं आसानी से बन जाती हूँ। 

वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा किटप टप नासूरसी टपक रही मडैयाठिठुर रही खोते में भीगी गौरैयानयन हुए बदरा बरसातीज़िंदगी की नाव डगमगातीमनुआ की माई लिखवातीमनुआ के बापू को पाती। कवयित्री आराधना प्रसाद का कहना था कि, “पत्थरों को पिघलने में वक़्त लगेगा/हालात बदलने में वक़्त लगेगा। गीतीधारा के लोकप्रिय कवि विजय गुंजन ने पावस को इन पंक्तियों से स्वर दिए कि,बरसो रे घनबरसो अब तुम कितना तरसाओगे। शायर अबरार मुजीब ने कहा कि “उसकी ठोकर में ताज पहने था/वह मेरा हममिज़ाज पहने थाकिसको फ़ुर्सत है तुमसे मिलने की/ऐ मा इसको रिवाज पहले था। चर्चित युवा कवि समीर परिमल का कहना था कि, “हम फ़क़ीरों के क़ाबिल रही तू कहाँजा अमीरों की कोठी में मार ज़िंदगी। कवि एस पी सिंह ने कहा कि, “तूफ़ान समुद्र के किसी भी हिस्से में आएतबाही तो किनारे की होती है। मशहूर शायर और संचालक शंकर कैमुरी ने इस पावस काव्योत्सव का ख़ूबसूरती से संचालन किया तथा अपनी ग़ज़ल आँख में आँसू दिल में ग़म फिर भी नहीं कुछ कहते हमदिल के लहूँ से रौशन करप्रेम का दीप न हो मद्धम” का सस्वर पाठ भी किया। अपने अध्यक्षीय काव्यपाठ में डा अनिल सुलभ ने इन पंक्तियों से प्रेम की बरसात की कि – “नयन मिले हैं जबसे उनसे क्या हुई है बातमंत्र भारित हो गए हैं हर एक दिन हर रातसंध्या सुंदरी बाहों में भर करती रात को प्रात/सप्तव्योम से हो रही नित प्रेम की बरसात

खचाखच भरे साहित्य सम्मेलन में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंहराज कुमार प्रेमीयोगेन्द्र प्रसाद मिश्रडा मेहता नगेंद्र सिंहडा आर प्रवेश आदि अनेक विद्वान उपस्थित थे।

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