बिहार विधान सभा चुनाव की शुरुआत विकास के दावों के साथ हुई थी। नरेंद्र मोदी गठबंधन और लालू यादव गठबंधन दोनों ने विकास के अपने-अपने दावे कर रहे थे। लेकिन प्रत्‍याशी चयन की प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही विकास से बड़ा मुद्दा जाति हो गयी। जाति के सामाजिक समीकरण, उम्‍मीदवार की जाति और पार्टी का जातीय चरित्र के आधार पर टिकट बांटे गए। अब जबकि टिकट वितरण का काम समाप्‍त गया तो ‘गोवंश’ एक बड़ा मुद्दा बन गया।sushil

वीरेंद्र यादव 

 

‘गोवंश’ जातीय व धार्मिक दोनों समीकरणों के अनुकूल बैठती है। दोनों ही गठबंधन इसकी व्‍याख्‍या अपने-अपने ढंग से कर रहे हैं। भाजपा के वरिष्‍ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने अपने फेसबुक पोस्‍ट पर गोवंशीय पशुओं की रक्षा का संकल्‍प दुहराया है और कानून बनाने की बात कही है। लेकिन सवाल इससे इतर भी है कि क्‍या बिहार के विकास का नारा निष्‍प्रभावी है। ‘अबकी बार भाजपा सरकार’ नकारा हो गया।

 

कहां है भाजपा का विकास

 

नीतीश कुमार सरकार में करीब साढ़ सात वर्षों तक भाजपा भी शामिल थी। सुशील मोदी खुद सरकार के दूसरे मुखिया यानी उपमुख्‍यमंत्री थे। भाजपा कहती है कि विकास के सभी काम भाजपा के साथ हुआ था, उनके ही मंत्रियों ने किये थे। तो आखिर भाजपा ने सरकार से अलग होने के बाद अपना रिपोर्ट कार्ड क्‍यों नहीं जारी किया कि यह काम भाजपा के मंत्रियों ने किये थे और इसका श्रेय भाजपा को ही मिलना चाहिए। आज भाजपा के सभी नेता यही दावा करते हैं कि विकास के कार्य भाजपा के साथ ही हुए। तो भाजपा को भी अपनी उप‍लब्धियों का रिपोर्ट कार्ड पेश करनी चाहिए। इसके विपरीत नीतीश कुमार के रिपोर्ट के खिलाफ भाजपा ने सिर्फ सरकार की विफलता बतायी, अपनी उपलब्धि नहीं। भाजपा को अपने पूर्व मंत्रियों की उपलब्धि के आधार पर भी वोट मांगना चाहिए, ताकि जनता समझ सके कि सुशील मोदी की टीम ने विकास के कौन से मील के पत्‍थर गाड़े थे।

By Editor