अमित शाह का मिशन बिहार जहां भाजपा के लिए उत्साह भरा रहा वहीं इससे जद यू की भवें तन गयी हैं क्योंकि 2009 में भाजपा पर भारी रहने वाला जदयू अब 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा की बी टीम बनने पर एक तरह से राजी हो गया है. 

 

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

यह समय का फेर है. लोगों को याद है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में जदयू और भाजपा ने साथ चुनाव लड़ा था. तब जदयू ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि भाजपा ने महज 15 पर. 2013 में भाजपा को झटक कर खुद से अलग कर देने वाले जद यू को अब उसकी कीमत 2019 चुनाव में चुकानी पड़ेगी. क्योंकि 2014 के चुनाव में जदयू ने अकेले दम पर चुनाव लड़ा और महज दो सीटें बचा पाया था. उस चुनाव में भाजपा ने नये साथियों के साथ लड़ाई लड़ा. और उसके कुल चालीस सीटों में से 31 प्रत्याशी जीत गये.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह गुरुवार को इन्हीं मुद्दों पर राज्य के भाजपा नेताओं के साथ लम्बा विमर्श किया. और जदयू के साथ आ जाने की स्थिति से उभरे बिंदुओं पर गौर किया. सूत्रों का कहना है कि नये हालात में जद यू को ज्यादा से ज्यादा 9 सीटें दी जा सकती हैं. क्योंकि  लोजपा के खाते में चार और रालोसपा को दो सीटें दिया जाना  तय है. उधर रालोसपा से बागी हुए अरुण कुमार, जो फिलवक्त सांसद हैं, के लिए उनकी मौजूदा सीट उन्हें ही दिया जाना है. ऐसे में जद यू के लिए , 2009 के फार्मुले पर गौर करने का कोई औचित्य भी नहीं है. अमित शाह की इस बैठक का सीधा सार यही है कि अब संसद में जदयू को भाजपा की बी टीम बन कर ही रहना पड़ेगा. जद यू इस नये हालात में किसी तरह का बारगेन कर भी पायेगा,इसकी संभावना नहीं के बराबर है.

अमित शाह ने इस दौरे में बिहार में जदयू के किसी शीर्ष नेतृत्व से इस मुद्दे पर कोई बात की हो, ऐसी कोई सूचना बाहर नहीं आई है. हालांकि अमित शाह के लिए इस मुद्दे पर फिलहाल जदयू से बात करने का कोई औचित्य भी नहीं था. क्योंकि दोनों दलों को पता है कि पहले रणनीति आंतरिक स्तर पर बनायी जाती है और अपने सहयोगियों को परोक्ष मैसेज ही भेजा जाता है. अमित शाह ने इस बैठक के माध्यम यह मैसेज जदयू को भेज दिया है.

उधर जदयू ने अभी तक इस मुद्दे पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. लेकिन पिछले दिनों, वशिष्ठ नारायण सिंह का बयान आया था. उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी इस बात के लिए तैयार है कि 2019 में ही लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने के लिए वह तैयार है. वशिष्ठ नारायण सिंह का यह बयान, दर असल भाजपा से बारगेन करने का हथियार है. जद यू चाहेगा कि विधानसभा चुनाव में, वह भाजपा को कम से कम सीटें दे. अगर ऐसा हुआ तो लोकसभा में मिलने वाली सीटों को वह मुद्दा बना कर इसकी क्षतिपूर्ति विधानसभा में कर सकता है. अब ऐसी हालत में, अगर हालात में कोई बदलाव नहीं हुआ तो, जदयू के साथ भाजपा, रालोसपा और लोजपा के साथ मांझी की पार्टी हम भी होगी. ऐसे में जाहिर है कि इन तमाम पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे को ले कर विवाद होगा. इस विवाद को कैसे सुलझाया जायेगा यह तो अभी भविष्य की बात है, पर इतना तय है कि एनडीए में शह मात का खेल अब शुरू होगा. अमितशाह के दौरे से इस बात का इशारा तो मिल ही गया है.

 

 

 

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