पटना पुस्तक मेले में शनिवार (9 दिसंबर) को पूर्व सांसद अली अनवर पर केंद्रित ‘अली अनवर’ शीर्षक पुस्तक पर विचार-गोष्ठी तथा परिचर्चा का आयोजन किया जाएगा। कार्यक्रम में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद मुख्य अतिथि होंगे, जबकि वक्ताओं में संत समाज समिति के अध्यक्ष आचार्य प्रमोद कृष्णम, पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी व पुस्तक के प्रकाशक ‘द मार्जिनलाइज्ड प्रकाशन’ के संयोजक संजीव चंदन शामिल रहेंगे।

शनिवार को पटना पुस्‍तक मेला होगी परिचर्चा

 

इस किताब का संपादन पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता राजीव सुमन ने किया है। यह किताब  ‘भारत के राजनेता’ नामक पुस्तक श्रृंखला का हिस्सा है, जिसके श्रृंखला-संपादक फारवर्ड प्रेस पत्रिका के प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन हैं। प्रमोद ने बताया कि इस योजना के तहत देश के विभिन्न हिस्सों से चयनित 30 प्रमुख समाज-राजनीति कर्मियों पर किताबें प्रकाशित की जानी हैं। इसमें ऐसे  सामाजिक-राजनीतिक नेताओं को जगह दी गई है, जिनका न सिर्फ सामजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण योगदान रहा हो, बल्कि जिनकी वैचारिकी मौलिक और भारतीय समाज और  राजनीति की गतिकी की दिशा मोड़ने वाली रही हो। इस श्रृंखला के तहत बिहार से लालू प्रसाद यादव, महाराष्ट्र से आरपीआई के नेता रामदास अठावले, तमिलनाडु से सीपीआई के नेता डी. राजा व सीपीएम के सीताराम येचूरी पर किताबें शीघ्र प्रकाशित होंगी। अन्य पुस्तकों के लिए चयन-प्रक्रिया जारी है।

 

प्रमोद रंजन ने बताया कि इस योजना के तहत अली अनवर को चुनने का मुख्य आधार भारतीय राजनीति को उनके द्वारा ‘पसमांदा’ शब्द से परिचित करवाना रहा है। यह अकेला शब्द आज भारत की राजनीति में दलित और पिछड़े मुसलमानों की आवाज बुलंद करने का माध्यम बन गया है। उन्होंने पहले बतौर पत्रकार-लेखक इस शब्द के पीछे की अवधारणा को लेकर मुहिम चलाई और बाद में एक सामाजिक संगठन ‘पसमांदा मुस्लिम महाज’ खड़ा किया। पसमांदा का अर्थ है– वे दलित-पिछड़े मुसलमान, जिनकी सामाजिक-शैक्षणिक स्थित हिंदू दलित-पिछड़ों से कहीं अधिक बुरी रही है, लेकिन उन्हें विभिन्न संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा गया है। विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार पसमांदा मुसलमानों की संख्या कुल मुसलमानों की 70 फीसदी से ज्यादा है। पसमांदा शब्द और पसमांदा राजनीति ने अली अनवर के नेतृत्व में सबसे पहले बिहार की राजनीति में जगह बनाई, उसके बाद यह आंदोलन विभिन्न राज्यों में फैल गया।

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