भाजपा विधान मंडल दल के सुशील कुमार मोदी ने आज कहा कि राज्य के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति को सरकार केस मुकदमों में उलझा कर यहां के अभ्यर्थियों को वंचित करना चाहती है।  श्री मोदी ने यहां कहा कि 11 वर्षों के बाद राज्य के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के 3364 पदों पर नियुक्ति के लिए बीपीएससी के माध्यम से विज्ञापन निकला गया है । आवेदन के लिए अहर्ता का निर्धारण विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के 2009 के रेगुलेशन के आधार पर पीएचडी और नेट परीक्षा उत्तीर्ण होना तय किया गया है।

 

भाजपा नेता ने कहा कि बिहार में ऐसा एक भी अभ्यर्थी नहीं है, जिसने यूजीसी के 2009 के रेगुलेशन के आधार पर पीएचडी किया हो।   श्री मोदी ने कहा कि विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसरों के करीब 60 प्रतिशत पद रिक्त है और इस वजह से पढ़ाई बाधित है। वर्ष 2003 के बाद पहली बार नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने 19 मार्च, 2013 को व्याख्याता और असिस्टेंट प्रोफसरों की नियुक्ति शैक्षिक सत्र 2014-15 में करने का निर्णय लिया था, लेकिन संदेह है कि ये नियुक्तियां सत्र 2015-16 तक भी हो पाए।

 

श्री मोदी ने कहा कि इसी साल 18 सितम्बर को शिक्षा मंत्री वृषिण पटेल ने घोषणा की थी कि यूजीसी की 2009 की गाइड लाइन से पहले भी पीएडी करने वाले वैसे अभ्यर्थी जो इस साल दिसम्बर में होने वाली नेट परीक्षा में पास हो जाएं तो उन्हें साक्षात्कार के लिए आयोग बुलायेगा लेकिन इस दिशा में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। बीपीएससी और शिक्षा विभाग इस तरह की घोषणा पर अनिभज्ञता जता रहा है।   श्री मोदी ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि यूजीसी के रेगुलेशन 2009 के पूर्व भी पीएचडी किए अभ्यर्थी को नेट की परीक्षा उत्तीर्ण होने से मुक्त किया जा सकता है, अगर वे यूजीसी के 11 मानदंडों में से छह पर खरे उतर रहे हों। उन्होंने बिहार सरकार से भी इस फैसले के आलोक में बीपीएससी को अहर्ताओं में संसोधन करने का निर्देश देने की मांग की।

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